क्या पश्चिम के अस्वीकृत राष्ट्रवाद को अपना रहे हैं एशिया के देश?

By विकास कुमार | Published: March 26, 2019 07:20 PM2019-03-26T19:20:59+5:302019-03-26T19:20:59+5:30

चीन लोकतंत्र के नाम से ही चिढ़ जाता है लेकिन मानवीय संवेदनाओं को कैद कर संपूर्ण विकास का दावा नहीं किया जा सकता. चीन का डेवलपमेंट यूरोप से अपनी तुलना नहीं कर सकता. शी जिनपिंग को यह दावा करने के लिए देश की राजनीतिक व्यवस्था को उदारवादी बनाना होगा.

Western nationalism is acceptable in asia countries like china, india and pakistan | क्या पश्चिम के अस्वीकृत राष्ट्रवाद को अपना रहे हैं एशिया के देश?

क्या पश्चिम के अस्वीकृत राष्ट्रवाद को अपना रहे हैं एशिया के देश?

Highlightsभारत एक ऐसा देश है जिसने राष्ट्र से ज्यादा एक सभ्यता और संस्कृति के रूप में जीना पसंद किया है.राष्ट्र हित और राष्ट्रवाद को अलग-अलग नजरिये से देखने की जरूरत है.राष्ट्रवाद की कट्टर पाठशाला ने जर्मनी में हिटलर, इटली में मुसोलनी और रूस में स्टालिन को पैदा किया.

पूरी दुनिया में राष्ट्रवाद इस वक्त उफान पर है. भारत से लेकर अमेरिका और चीन से लेकर रूस तक राष्ट्रवादी सरकारें सत्ता में हैं. जाहिर सी बात है कि जब सत्ता में राष्ट्रवाद का बोलबाला है तो किसी भी देश का आर्थिक मॉडल भी इसी के इर्द-गिर्द घूमेगा. डोनाल्ड ट्रंप का चीन के साथ जारी ट्रेड वॉर और चीन का साउथ चाइना सी से लेकर 'वन बेल्ट वन रोड' के जरिये अमेरिकी बादशाहत को चुनौती देना उसी राष्ट्रवाद की धधकती अग्नि में प्रज्जवलित होने का एक मात्र उदाहरण भर है.

रूस में पुतिन की सरकार और यूक्रेन को फिर से अपना बनाने का दीवानापन राष्ट्रवाद की दीवानगी का ही हैंगओवर है. ये तो बात हुई अंतरराष्ट्रीय मॉडल की जिसे प्रायः पश्चिम का राष्ट्रवाद कहा जाता है. लेकिन आज राष्ट्रवाद के मामले में पूर्व का मॉडल भी पश्चिम को जबरदस्त टक्कर दे रहा है. 

भारत का राष्ट्रवाद  

भारत एक ऐसा देश है जिसने राष्ट्र से ज्यादा एक सभ्यता और संस्कृति के रूप में जीना पसंद किया है. हमेशा नया खोजने की चाह और अपने आध्यात्मिक विचारों को नए ज्ञान के स्रोतों से नवीनीकृत करते रहना भारत को एक स्थापित राष्ट्रवाद से हमेशा दूर रखा. कबीर, नानक, रमन महर्षि, स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस जैसे महान लोगों ने  इस देश को समय-समय  पर रास्ता दिखाया है जिसके कारण सामाजिक स्तर पर मानवीय चेतना को जिंदा रखने में मदद मिली. 

देश के प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने देश के लोगों से आजादी के बाद राष्ट्रवाद को त्यागने का आह्वान किया था. उनका मानना था कि राष्ट्रवाद का रोल देश की आजादी तक ही सीमित था. इसके बाद इसका इस्तेमाल देश के अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हो सकता है. 

मौजूदा मोदी सरकार को राष्ट्रवादी कहा जाता है. पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट में एयरस्ट्राइक, मोदी सरकार द्वारा लिए गए इस फैलसे को उग्र राष्ट्रवाद से जोड़ा गया. राष्ट्र हित और राष्ट्रवाद को अलग-अलग नजरिये से देखने की जरूरत है.  इसमें कोई शक नहीं है कि भारत की जरूरत इस वक्त देश को गरीबी के भंवर से निकालना है और इस मुद्दे को प्राथमिकता की सूचि में सबसे ऊपर रख कर सर्वांगीण विकास के लक्ष्य को हासिल करना चाहिए.

पाकिस्तान का इस्लामिक राष्ट्रवाद 

पाकिस्तान के 'इस्लामिक राष्ट्रवाद' का सबसे मजबूत स्तम्भ मोहम्मद अली जिन्ना के बाद कोई भी राजनेता उनके स्तर का राष्ट्रवादी तो छोड़िए उनके इर्द-गिर्द भी भटक नहीं पाया. और इस पूरी विरासत को वहां की सेना और ISI ने मिलकर संभाला. लेकिन पाकिस्तानी सेना के हारे और बुरी तरह पिटे राष्ट्रवाद का नतीजा 1971 में बांग्लादेश के रूप में सामने आया. पाकिस्तान के कुत्सित राष्ट्रवाद से पैदा हुआ बांग्लादेश भी आज उसी के रास्ते पर चल पड़ा है. विकास की बयार तो बह रही है लेकिन देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है. विपक्ष की नेता भ्रष्टाचार के मामले में जेल में बंद हैं और शेख हसीना बिना किसी रोक-टोक के चुनाव जीत रही हैं. 

विश्व युद्ध का कारण बना था राष्ट्रवाद 

20 वीं शताब्दी में पूरी दुनिया में साम्राज्यवाद की जंग हो रही थी और इसके जनक आज मानवता की दुहाई देने वाले पश्चिम के राष्ट्रवादी ही थे. राष्ट्रवाद की कट्टर पाठशाला ने जर्मनी में हिटलर, इटली में मुसोलनी और रूस में स्टालिन को पैदा किया. राष्ट्रवाद के नाम पर पूरी दुनिया को जीत लेने की महत्वाकांक्षा ने प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध जैसे मानवीय त्रासदियों को जन्म दिया, जिसमें कम से कम 10 करोड़ लोग की जान गई. 

यूरोपीय यूनियन और राष्ट्रवाद  

प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में एक दूसरे के लाखों सैनिकों और करोड़ों लोगों को मारने वाले यूरोपीय देश उस क्षणिक सुख देने वाले राष्ट्रवादी मानसिकता से बहुत पहले उबर चुके हैं. यूरोपीय यूनियन में आज 28 देश हैं और बिना किसी रोक-टोक के एक दूसरे के विचार और संस्कृति को साझा कर रहे हैं. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आर्थिक कंगाली के राह पर खड़े यूरोपीय देश आज मानव विकास सूचकांक में अव्वल हैं. 

डेनमार्क विश्व का सबसे खुश रहने वाला देश है और उसके बाद भी इस सूचि में नॉर्वे और आइसलैंड जैसे देश ही हैं. फ्रांस, इटली जर्मनी और लज़म्बर्ग की अर्थव्यवस्था दुनिया के शीर्ष 10 देशों में शुमार किया जाता है. 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ब्लाकचेन और डेटा साइंस जैसे नए तकनीकों से यूरोपीय देश अपने बॉर्डर का डिजीटाईजेशन कर रहे हैं. तकनीक के नए आयामों को साधते हुए और उदारवाद की परिभाषा को नए रूप में लागू करते हुए यूरोपीय यूनियन के देशों ने पूरी दुनिया के सामने सस्टेनेबल डेवलपमेंट का नया मॉडल पेश किया है. 

चीन का राष्ट्रवाद 

माओत्से तुंग ने चीन में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार स्थापित करने के लिए देश को गृह युद्ध में झोंका जिसने करोड़ों लोगों की जान ली. लेनिन ने रूस में जार को हटाने के लिए राष्ट्रवाद का सहारा लिया और उनके बाद स्टालिन ने भी राष्ट्रवाद के नाम पर अपने विरोधियों को ठिकाना लगाया. इस पूरी प्रक्रिया में अनगिनत लोग मारे गए. राजनीतिक इतिहास में स्टालिन को सबसे क्रूर बताया जाता है क्योंकि उन्होंने लाखों राजनीतिक विरोधियों को मौत के घाट उतारा. 

एक तरफ चीन ने अपने देश के 72 करोड़ लोगों को गरीबी से निकाला है जिसने तीसरी दुनिया के देशों के सामने एक आर्थिक मॉडल पेश किया है. तो दूसरी तरफ चीन आज भी अपने देश में उइगर मुस्लिमों को कंसंट्रेशन कैंप में प्रताड़ित कर रहा है और यह सब चीनी पार्टी के कम्युनिस्ट विचारधारा के प्रति वफादारी का अलख जगाने के लिए किया जा रहा है. चीन इसे राष्ट्र हित में लिया फैसला बताता रहा है. 

चीन लोकतंत्र के नाम से ही चिढ़ जाता है लेकिन मानवीय संवेदनाओं को कैद कर संपूर्ण विकास का दावा नहीं किया जा सकता. चीन का डेवलपमेंट यूरोप से अपनी तुलना नहीं कर सकता. शी जिनपिंग को यह दावा करने के लिए देश की राजनीतिक व्यवस्था को उदारवादी बनाना होगा. 
 

Web Title: Western nationalism is acceptable in asia countries like china, india and pakistan

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