विजय दर्डा का ब्लॉग: यदि पाकिस्तानी कोर्ट निष्पक्ष नहीं होता तो...

By विजय दर्डा | Published: April 11, 2022 03:26 PM2022-04-11T15:26:26+5:302022-04-11T15:28:00+5:30

पाकिस्तान में भ्रष्ट राजनीति, असफल ब्यूरोक्रेसी और आतंकवाद के बीच न्यायपालिका पर टिकी अवाम की आखिरी उम्मीद...

Vijay Darda's blog: Pakistan court fair decisions history, Imran Khan and political crisis | विजय दर्डा का ब्लॉग: यदि पाकिस्तानी कोर्ट निष्पक्ष नहीं होता तो...

पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

हिंदुस्तान में तो न्यायपालिका पूरी तरह से स्वतंत्र भी है और लोकतांत्रिक शक्ति से परिपूर्ण भी लेकिन पाकिस्तान की स्थिति किसी से छिपी नहीं है. वहां चौतरफा दबाव है, इसके बावजूद वहां की सर्वोच्च अदालत ने जिस तरह से खुद का वजूद कायम रखा है वह काबिले तारीफ है. अवाम की उम्मीदें न्यायालय पर टिकी हुई हैं क्योंकि वहां राजनीति और ब्यूरोक्रेसी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुकी है. हां, हिंदुस्तान सार्वभौम देश है. इसकी अपनी निष्पक्ष अंतरराष्ट्रीय नीति है. हिंदुस्तान न किसी से डरता है और न किसी को डराता है.

इमरान भाई, सच कहा आपने. अच्छा लगा आपके मुंह से यह सब सुनकर. रामनवमी का जश्न मनाने में हमें कुछ ज्यादा ही मजा आया क्योंकि प्रभु श्री रामचंद्र की छाया पाकिस्तान पर भी रही है. हमारे मित्र जावेद जब्बार ने अवार्ड विनिंग फिल्म ‘रामचंद पाकिस्तानी’ बनाई थी. उसकी शूटिंग हिंदुस्तान में भी हुई थी और पाकिस्तान में उसे लेकर बवंडर भी मचा था. यह सब तो आपको पता ही होगा इमरान भाई!

लगे हाथ हम आपको यह भी बता दें कि हिंदुस्तान की न्यायपालिका का पूरी दुनिया में बहुत सम्मान है क्योंकि पूरी दुनिया जानती है कि हिंदुस्तान में न्यायपालिका पूरी तरह से स्वतंत्र है और बगैर किसी दबाव के काम करती है. यही कारण है कि भारतीय न्यायाधीशों ने कई बार इंटरनेशनल कोर्ट में भी न्याय की कमान संभाली है. अपने दौर में अथाह शक्तिशाली प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चुनाव को भी न्यायालय ने अवैध ठहरा दिया था. भारतीय न्यायालय की निष्पक्षता और शक्ति की और भी बहुत सारी मिसालें हैं.

कहने का आशय यह है कि हमारे यहां तो यह परंपरा रही है लेकिन पाकिस्तान में अदालतें जो न्यायप्रियता दिखा रही हैं, उससे आश्चर्य भी होता है और न्याय के प्रति आस्था भी जगती है.

बहरहाल, विपक्ष की गुगली पर इमरान खान ने जब छक्का मारने की कोशिश की तो सबकी निगाहें जाकर पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट पर टिक गईं. विपक्ष जब तक अदालत पहुंचता तब तक खुद अदालत ने ही इस मामले का संज्ञान ले लिया. लंबी बहस हुई और अंतत: सर्वोच्च अदालत ने वही फैसला सुनाया जो कानून सम्मत था. संसद बहाल हो गई और अविश्वास प्रस्ताव पारित होते ही इमरान खान हिट विकेट हो गए.

इमरान ने स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का इस्तीफा दिलवा दिया, खुद सदन में नहीं आए. इसका भी न्यायालय ने गंभीरता से संज्ञान लिया है. अभी यह निर्णय होना बाकी है कि क्या इमरान ने सर्वोच्च अदालत की अवमानना की? इस पर न्यायालय का फैसला आना बाकी है. जाहिर सी बात है कि पाकिस्तान जैसे देश में न्यायालय का इतना हिम्मती और न्यायप्रिय होना वाकई काबिले तारीफ है क्योंकि वहां ढेर सारे दबाव काम करते रहते हैं.

कुछ लोगों को शंका हो सकती है कि वहां की सैन्य शक्ति और खुफिया एजेंसी आईएसआई जजों को प्रभावित करने की कोशिश जरूर करती होंगी लेकिन समय-समय पर अदालत के फैसलों ने साबित किया है कि किसी भी दबाव को उसने एंटरटेन नहीं किया है. पिछले साल सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष अली अहमद कुर्द ने आरोप लगाया कि सैन्य शक्ति के दबाव के कारण पाकिस्तान की न्यायपालिका रूल ऑफ लॉ इंडेक्स में काफी पीछे चली गई है.

तत्कालीन चीफ जस्टिस गुलजार अहमद ने तत्काल इसका खंडन किया और कहा कि मैंने किसी संस्था का दबाव न बर्दाश्त किया है और न ही किसी संस्था की सुनी है. मैंने अपने फैसलों में कभी भी किसी की बात सुनी, देखी, समझी या महसूस नहीं की है. उन्होंने अली अहमद कुर्द को यह सलाह भी दे डाली थी कि आप अदालत में आइए और देखिए कि क्या हो रहा है. गलतबयानी न करें, इससे लोगों का भरोसा उठता है.

पाकिस्तान की अदालतों ने वाकई समय-समय पर ऐसे फैसले दिए हैं जिनसे अदालत की निष्पक्षता साबित होती है. पिछले साल के प्रारंभ में तत्कालीन चीफ जस्टिस गुलजार अहमद की पूरी दुनिया में तारीफ हुई थी जब उन्होंने मंदिर पर भीड़ के हमले को बड़ी गंभीरता से लिया था. सरकार को आदेश दिया कि खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के करक जिले में हिंदू संत श्री परमहंस जी महाराज की ऐतिहासिक समाधि का सरकार फिर से निर्माण कराए.

तत्कालीन चीफ जस्टिस के कड़े रुख का ही परिणाम था कि 100 से ज्यादा लोग गिरफ्तार किए गए और वहां के एसपी को निलंबित किया गया. कोर्ट ने निर्माण का पैसा हमलावर मौलवी शरीफ से वसूलने के आदेश भी दिए. मंदिर तोड़े जाने से पूरी दुनिया में पाकिस्तान की छवि खराब हुई थी तो न्यायालय के कारण छवि सुधरती दिखाई दी.

ऐसे और भी कई मौके आए हैं जब पाकिस्तान की सर्वोच्च अदालत या दूसरी अदालतों ने बगैर शख्सियत का लिहाज किए फैसले सुनाए हैं. सैन्य शासक रहे जनरल परवेज मुशर्रफ को एक अदालत ने बेनजीर भुट्टो की हत्या के मामले में भगोड़ा घोषित कर दिया था. आपको याद ही होगा कि न्यायालय के फैसले के कारण ही नवाज शरीफ को भी सत्ता गंवानी पड़ी थी और वे काफी समय जेल में थे.

राजनीति ने उन्हें जेल से निकाल कर लंदन पहुंचा दिया लेकिन वे अब भी पाकिस्तान लौटने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं तो इसका कारण अदालत का खौफ ही है. अदालत ने जरदारी को भी नहीं बख्शा. आपको याद ही होगा कि कोई दस साल पहले तत्कालीन चीफ जस्टिस इफ्तिखार मुहम्मद चौधरी ने भ्रष्टाचार के मामले को लेकर कई सांसदों को अयोग्य ठहरा दिया था.

पूरी दुनिया में ऐसा माना जाता है कि पाकिस्तान में किसी आतंकवादी के खिलाफ कार्रवाई बहुत मुश्किल काम है. शासन के स्तर पर यह बात सच भी लगती है लेकिन अदालतों ने आतंकवादियों को सजा देने में कोताही नहीं की है. उदाहरण के लिए कुख्यात आतंकी हाफिज सईद को अभी-अभी 31 साल की सजा हुई है. यह अलग बात है कि सरकार उसे कितने दिन सींखचों में रखती है या सींखचों में रखते हुए भी कितनी आजादी देती है.

पाकिस्तान में ईश निंदा के खिलाफ एक ऐसा कानूून है जिसके तहत किसी को भी फांसी के फंदे पर चढ़ाया जा सकता है. इस कानून का शिकार हुई एक महिला को वहां की सर्वोच्च अदालत ने न केवल बरी किया बल्कि उसे देश से बाहर जाने की इजाजत भी दी जबकि वहां के कट्टरपंथी तूफान मचा रहे थे.

पाकिस्तान में मेरे कई पत्रकार साथी हैं और पाकिस्तानी न्यायालय की कार्यप्रणाली को लेकर उनसे मेरी बातचीत होती रही है. वे बताते हैं कि पाकिस्तान में जज होना आसान नहीं है. पचासों तरह के दबाव का सामना करना पड़ता है. उन्हें प्रभावित करने के लिए प्रलोभन भी एक बड़ा रास्ता होता है लेकिन ज्यादातर न्यायाधीश हमेशा ही अपनी ईमानदारी पर अडिग रहते हैं लेकिन कई मामलों में उंगलियां भी उठी हैं.

इसमें सबसे बड़ा मामला तो जुल्फिकार अली भुट्टो को सजा-ए-मौत देने का है. वह कलंक न्यायालय पर से अभी तक मिटा नहीं है लेकिन पाकिस्तानी अदालतों ने वक्त के साथ सबक लिया है. उन्हें पता है कि यदि उन्होंने अपनी रीढ़ की हड्डी सीधी न रखी तो लुटेरों पर अंकुश रखना मुश्किल होगा और देश रसातल में चला जाएगा. अदालतों को पता है कि अवाम की आखिरी उम्मीद वही हैं.

Web Title: Vijay Darda's blog: Pakistan court fair decisions history, Imran Khan and political crisis

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