वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः शी-बाइडेन की बातचीत से लेनी चाहिए सीख

By वेद प्रताप वैदिक | Published: September 13, 2021 12:22 PM2021-09-13T12:22:51+5:302021-09-13T12:25:21+5:30

संयुक्त राष्ट्र में भी दोनों देशों के प्रवक्ता एक-दूसरे का विरोध करने से बाज नहीं आते। अमेरिका को डर है कि चीन उसे विश्व-बाजार में कहीं मात न दे दे। उसका सस्ता और सुलभ माल उसे अमेरिका के मुकाबले बड़ा विश्व-व्यापारी न बना दे।

vedpratap vaidik's blog lessons to be learned fromamerican president joe biden and xi jinping talk | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः शी-बाइडेन की बातचीत से लेनी चाहिए सीख

वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः शी-बाइडेन की बातचीत से लेनी चाहिए सीख

Highlightsअमेरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से खुलकर बात पहली बार हुई हैदोनों राष्ट्रपतियों ने अपने मामले बातचीत से सुलझाने की बात कही है

जब से जो बाइडेन अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से उनकी खुलकर बात पहली बार हुई है। यह डेढ़ घंटे चली। दोनों राष्ट्रपतियों ने अपने मामले बातचीत से सुलझाने की बात कही। दोनों ने जलवायु-प्रदूषण और परमाणु खतरे पर एक-जैसे विचार व्यक्त किए लेकिन दोनों राष्ट्रों के बीच कई मुद्दों पर जबर्दस्त टकराव है। इस समय पिछले कुछ वर्षो से अमेरिका और चीन के बीच वही माहौल बन गया है जो 50-60 साल पहले सोवियत रूस और अमेरिका के बीच था यानी शीत युद्ध का माहौल! दोनों देशों की फौजों की चाहे सीधी टक्कर दुनिया में कहीं भी नहीं हो रही है लेकिन हर देश में चीनी और अमेरिकी दूतावास एक-दूसरे पर कड़ी नजर रख रहे हैं। दोनों देशों में एक-दूसरे के राजनयिकों पर भी काफी सख्ती रखी जाती है।

संयुक्त राष्ट्र में भी दोनों देशों के प्रवक्ता एक-दूसरे का विरोध करने से बाज नहीं आते। अमेरिका को डर है कि चीन उसे विश्व-बाजार में कहीं मात न दे दे। उसका सस्ता और सुलभ माल उसे अमेरिका के मुकाबले बड़ा विश्व-व्यापारी न बना दे। अमेरिका को सामरिक खतरे भी कम महसूस नहीं होते। चीन जो अरबों-खरबों रुपए खर्च करके रेशम-पथ बना रहा है, वह पूरे एशिया के साथ-साथ यूरोप और अफ्रीका में चीनी प्रभाव को कायम कर देगा। लातिनी अमेरिका में भी चीन ने अपने पांव पसार लिए हैं। उसने एशिया में अमेरिका के हर विरोधी से गठजोड़ बनाने की कोशिश की है। ईरान-अमेरिका के परमाणु-विवाद का फायदा चीन जमकर उठा रहा है। उसने ईरान के साथ तगड़ा गठजोड़ बिठा लिया है। पाकिस्तान तो बरसों से चीन का हमजोली है।

इन दोनों देशों की ‘इस्पाती दोस्ती’ अब अफगानिस्तान के तालिबान के ऊपर भी मंडरा रही है। भारत के सभी पड़ोसी देशों पर चीन ने डोरे डाल रखे हैं। मध्य एशिया के पांचों मुस्लिम गणतंत्नों के साथ उसके संबंध बेहतर बनते जा रहे हैं। अमेरिका को नीचा दिखाने के लिए आजकल चीन ने रूस से हाथ मिला लिया है। अमेरिका भी कम नहीं है। उसने दक्षिण चीनी समुद्र में चीनी वर्चस्व को चुनौती देने के लिए जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत के साथ मिलकर एक चौगुटा खड़ा कर लिया है। वह ताइवान के सवाल पर भी डटा हुआ है।

जाहिर है कि इतने मतभेदों और परस्पर विरोधी राष्ट्रहितों के होते हुए दोनों नेताओं के बीच कोई मधुर वार्तालाप तो नहीं हो सकता था लेकिन एक-दूसरे के जानी दुश्मन राष्ट्रों के दो नेता यदि आपस में बात कर सकते हैं तो हमारे प्रधानमंत्नी क्यों नहीं? यह ठीक है कि गलवान में हमारी मुठभेड़ हो गई लेकिन जब हमारे फौजी अफसर चीनियों से बात कर सकते हैं तो शी जिनपिंग से हमारे प्रधानमंत्री सीधी बात क्यों नहीं कर सकते?

Web Title: vedpratap vaidik's blog lessons to be learned fromamerican president joe biden and xi jinping talk

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