वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: फ्रांस में मैक्रों की वापसी के मायने
By वेद प्रताप वैदिक | Published: April 28, 2022 01:38 PM2022-04-28T13:38:08+5:302022-04-28T13:40:36+5:30
फ्रांस में बेरोजगारी और महंगाई की वजह से लोग परेशान हैं. इमैनुएल मैक्रों ने पिछले चुनाव में बढ़-चढ़कर जो दावे किए थे, उन्हें वे पूरा नहीं कर सके. इसके बावजूद वे जीत वापस सत्ता में लौटे हैं.
बीस वर्षों में यह दूसरा मौका है, जब कोई नेता लगातार दूसरी बार फ्रांस का राष्ट्रपति बना है. इमैनुएल मैक्रों दूसरी बार भी जीत गए लेकिन दो तथ्य ध्यान देने लायक हैं. पहला, 2017 के पिछले चुनाव के मुकाबले इस चुनाव में मैक्रों को वोट कम मिले. पिछले चुनाव में उन्हें अपने प्रतिद्वंद्वी मरीन ल पेन से लगभग दुगुने वोट मिले थे लेकिन इस बार यह फासला काफी कम हो गया.
मैक्रों को 58.5 प्रतिशत तो ल पेन को 41.5 प्रतिशत वोट मिले. ल पेन एक ऐसी फ्रांसीसी महिला नेता हैं, जो धुर दक्षिणपंथी हैं. जबकि मैक्रों वामपंथी नहीं हैं. वे मध्यममार्गी हैं. फ्रांस के इस चुनाव ने लोगों का दम फुला रखा था. यदि ल पेन जीत जातीं तो लोगों को डर था कि वे यूक्रेन के मामले में रूस का समर्थन कर देतीं, क्योंकि व्लादीमीर पुतिन से उनके संबंध काफी अच्छे हैं. वे उग्र राष्ट्रवादी हैं.
इसलिए शंका यह भी थी कि जैसे ब्रिटेन यूरोपीय संघ से बाहर निकल आया, ल पेन फ्रांस को भी यूरोपियन संघ और शायद नाटो से भी बाहर निकालने की कोशिश करें.
फ्रांस में बेरोजगारी और महंगाई ने लोगों की कमर तोड़ रखी थी. मैक्रों ने पिछले चुनाव में बढ़-चढ़कर जो दावे किए थे, उन्हें वे जमीन पर नहीं उतार सके. मैक्रों ने अपनी जीत के बाद जो बयान दिया, वह फ्रांस की राजनीति का प्रामाणिक आईना है. उन्होंने कहा है कि उनकी समस्त कमजोरियों के बावजूद फ्रांस की जनता ने उन्हें इसीलिए जिताया है कि वह फ्रांस को दक्षिणपंथी उग्रवादियों के हवाले नहीं करना चाहती.
मैक्रों की उम्र इस समय सिर्फ 44 साल है. वे राजनीति में आने के पहले बैंकर थे. उम्मीद है कि वे अगले पांच साल में फ्रांस की आर्थिक स्थिति में कई सुधार ले आएंगे. उन्होंने यूक्रेन-युद्ध के दौरान पुतिन और जेलेंस्की दोनों से संवाद कायम किया. भारत से भी पिछले पांच वर्षों में फ्रांस के आर्थिक और सामरिक संबंध घनिष्ठ हुए हैं.
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में यद्यपि फ्रांस चौगुटे का सदस्य नहीं है लेकिन भारत और उसकी नीतियों में काफी समानता है. यूरोपीय संघ के साथ भारत के जो ताजा आर्थिक और राजनीतिक समीकरण बने हैं, उनमें फ्रांस की भूमिका महत्वपूर्ण होगी क्योंकि फ्रांस यूरोपीय संघ का शक्तिशाली राष्ट्र है.