वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग : विदेश नीति में दो नई सराहनीय पहल

By वेद प्रताप वैदिक | Published: October 22, 2021 11:02 AM2021-10-22T11:02:45+5:302021-10-22T11:02:45+5:30

भारत ने अमेरिका के साथ मिलकर पश्चिम एशिया में जो चौगुटा बनाया है, वह अफगान-संकट के हल में तो मददगार होगा ही, इस्लामिक जगत से भी भारत के संबंध मजबूत बनाएगा लेकिन भारत को दो बातों का ध्यान जरूर रखना होगा। एक तो वह अमेरिका का पिछलग्गू होने से बचता रहे और दूसरा, इस नए चौगुटे को ईरान के खिलाफ मोर्चाबंदी न करने दे।

two commendable steps of Indian foreign policy | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग : विदेश नीति में दो नई सराहनीय पहल

मॉस्को फॉर्मेट अक्टूबर 2021 (Photo:AFP )


ढाई महीने से गिरती-लुढ़कती हमारी विदेश नीति अपने पांवों पर खड़े होने की कोशिश कर रही है, यह बात मेरे लिए विशेष खुशी की है। मैं बराबर पहले दिन से ही लिख रहा था कि भारत सरकार को तालिबान से सीधे बात करनी चाहिए लेकिन नौकरशाहों के लिए कोई भी पहल करना इतना आसान नहीं होता, जितना कि किसी साहसी और अनुभवी नेता के लिए होता है। जो भी हो, इस समय दो सकारात्मक घटनाएं हुई हैं। पहली, मास्को में तालिबान के साथ हमारी सीधी बातचीत और दूसरी, अमेरिका, इजराइल, यूएई तथा भारत के नए चौगुटे की शुरुआत!

जहां तक मास्को-बैठक का सवाल है, उसमें रूसी विदेश मंत्नी सर्गेइ लावरोव ने साफ-साफ कहा है कि तालिबान की सरकार और नीतियां सर्वसमावेशी होनी चाहिए। उनमें सारे कबीलों और लोगों को ही प्रतिनिधित्व नहीं मिलना चाहिए, बल्कि विभिन्न राजनीतिक शक्तियों का भी उसमें समावेश होना चाहिए यानी हामिद करजई और अब्दुल्ला-जैसे नेताओं को भी शासन में भागीदारी मिलनी चाहिए अर्थात तालिबान सरकार में कुछ अनुभवी और जनता में लोकप्रिय तत्व भी होने चाहिए।

इसके अलावा लावरोव ने इस बात पर भी जोर दिया कि अब अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों में आतंकवाद का निर्यात कतई नहीं होना चाहिए। इस बैठक में चीन, पाकिस्तान और ईरान समेत 10 देश शामिल हुए थे। रूस ने वही बात इस बैठक में कही, जो भारत कहता रहा है। भारत के प्रतिनिधि जे.पी.सिंह, जिन्हें काबुल में कूटनीति का लंबा अनुभव है, मास्को आए, तालिबान नेताओं से खुलकर बात भी की और अफगान जनता की मदद के लिए पहले की तरह 50 हजार टन अनाज और दवाइयां भेजने की भी घोषणा की।

यदि अगले कुछ हफ्तों में तालिबान सरकार का बर्ताव ठीक-ठाक दिखा तो कोई आश्चर्य नहीं कि उसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिलनी शुरू हो जाए, लेकिन गृह मंत्नी सिराजुद्दीन हक्कानी ने तालिबानी खीर में कुछ नीम की पत्तियां डाल दी हैं। उन्होंने ऐसे ‘शहीदों’ का सम्मान किया है और उनके परिजनों को कुछ धनराशि भेंट की है, जिन्होंने पिछली सरकार के फौजियों और नेताओं पर जानलेवा हमले किए थे। ऐसी उत्तेजक कार्रवाई से उन्हें फिलहाल बचना चाहिए था। 

यदि भारत सरकार अपना दूतावास काबुल में फिर से खोल दे तो हमारे राजनयिक तालिबान को उचित सलाह दे सकते हैं। भारत ने अमेरिका के साथ मिलकर पश्चिम एशिया में जो चौगुटा बनाया है, वह अफगान-संकट के हल में तो मददगार होगा ही, इस्लामिक जगत से भी भारत के संबंध मजबूत बनाएगा लेकिन भारत को दो बातों का ध्यान जरूर रखना होगा। एक तो वह अमेरिका का पिछलग्गू होने से बचता रहे और दूसरा, इस नए चौगुटे को ईरान के खिलाफ मोर्चाबंदी न करने दे।

Web Title: two commendable steps of Indian foreign policy

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