विकासशील देशों के लिए संकट बनी अमेरिकी ई-कचरे की सुनामी

By प्रमोद भार्गव | Updated: November 22, 2025 07:14 IST2025-11-22T07:14:12+5:302025-11-22T07:14:16+5:30

ये आमतौर पर स्वयं कचरे का पुनर्चक्रण करने की बजाय इसे लाचार गरीब देशों के बंदरगाहों पर उतार देती हैं

Tsunami of US e-waste poses threat to developing countries | विकासशील देशों के लिए संकट बनी अमेरिकी ई-कचरे की सुनामी

विकासशील देशों के लिए संकट बनी अमेरिकी ई-कचरे की सुनामी

पर्यावरण पर वैश्विक निगरानी रखने वाली सिएटल स्थित संस्था ‘बासेल एक्शन नेटवर्क‘ (बीएएन) की ताजा रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि अमेरिका से लाखों टन खराब इलेक्ट्रॉनिक सामग्री कई देशों में ठिकाने लगाने की दृष्टि से भेजी जा रही है, जिनमें से अधिकांश दक्षिण पूर्व एशिया के विकासशील देश हैं. इन देशों में इस खतरनाक कचरे को सुरक्षित रूप से नष्ट करने का कोई उपाय नहीं है, इसलिए वे इसे लेने को तैयार नहीं हैं. बावजूद, दस अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियां प्रयोग की उम्र समाप्त कर चुके इलेक्ट्रॉनिक्स को एशिया और पश्चिमी एशिया के निर्धन देशों में ठिकाने लगा रही हैं.

रपट के अनुसार यह ई-कचरे की अदृश्य सुनामी है, क्योंकि ये विकासशील एवं गरीब देश इस कचरे का पुनर्चक्रण करने में समर्थ नहीं हैं. फिर भी ताकतवर पूंजीपति देश इन देशों को अपने कचरे का ठिकाना बनाने में बेहिचक लगे हुए हैं. इसका वहां के लोगों के स्वास्थ्य पर कितना असर पड़ेगा, इसका ध्यान किसी को नहीं है. इस कचरे में कम्प्यूटर, लैपटॉप, टैबलेट, मोबाइल और अन्य आईटी उपकरण शामिल हैं.  इनमें सीसा, कैडमियम और पारा जैसी सामग्रियां हैं, जो मूल्यवान होने के साथ विषाक्त भी हैं.  जैसे-जैसे गैजेट्स नए मॉडल के साथ तेजी से बदले जा रहे हैं, वैसे-वैसे पुनर्चक्रित नहीं होने वाला कचरा पांच गुना बढ़ता जा रहा है.

संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ और अनुसंधान शाखा (यूएनआईटीएआर) के अनुसार एकत्रित आंकड़े बताते है कि वैश्विक स्तर पर 2022 में 6.2 करोड़ मीट्रिक टन ई-कबाड़ उत्पन किया गया. 2030 तक इसके उत्पादन की मात्रा 8.2 करोड़ मीट्रिक टन हो जाने का अनुमान है. रपट के अनुसार हर महीने लगभग 2000 कंटेनरों में लगभग 33000 मीट्रिक टन अमेरिका में इस्तेमाल किया गया ई-कचरा अमेरिकी बंदरगाहों से बाहर भेजा जाता है. इन कंटेनरों की खेपों की आपूर्ति करने वाली कंपनियों को ई-कचरा ब्रोकर कहा जाता है.  ये आमतौर पर स्वयं कचरे का पुनर्चक्रण करने की बजाय इसे लाचार गरीब देशों के बंदरगाहों पर उतार देती हैं. यह कचरा लगातार एशियाई देशों में कचरे के बोझ को बढ़ाकर कई तरह के पर्यावरणीय संकट पैदा कर जलवायु और पृथ्वी को प्रदूषित कर रहा है. इस कचरे से घातक लैंडफिल गैसों का भी उत्सर्जन कुछ सालों के बाद होने लगता है. इनसे उत्पन्न जहरीला रसायन जल और मिट्टी को दूषित करता है.

इस कचरे का बहुत बड़ा हिस्सा गरीब लोग अपनी आजीविका चलाने के लिए कबाड़खानों में पहुंचा देते हैं. यहां काम करने वाले मजदूर अक्सर बिना किसी सुरक्षा उपकरण के उन्हें हाथों से जला एवं पिघला कर अलग कर खोलते हैं. इस प्रक्रिया में विषाक्त धुआं निकलता है, जो अत्यंत हानिकारक होता है.  बासेल एक्शन नेटवर्क की संधि के मुताबिक इस्तेमाल किए गए ई-कचरे को एक देश से दूसरे देश भेजने की अनुमति केवल ऐसे कचरे को है, जिसे पुनर्चक्रित करके पुनः इस्तेमाल किया जा सके और जो पर्यावरण को प्रदूषित नहीं करने वाला हो. लेकिन ये कंपनियां ऐसी किसी शर्त का पालन नहीं कर रही हैं.  यही कारण है कि दुनिया में पुनर्चक्रण की तुलना में ई-कबाड़ में पांच गुना वृद्धि हो रही है.

Web Title: Tsunami of US e-waste poses threat to developing countries

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