कृष्णप्रताप सिंह का ब्लॉग: भुखमरी से जंग जीतने की जद्दोजहद करती दुनिया

By कृष्ण प्रताप सिंह | Published: July 15, 2022 02:40 PM2022-07-15T14:40:57+5:302022-07-15T14:42:42+5:30

रिपोर्ट कहती है कि अब दांव पर यही नहीं है कि ये चुनौतियां आगे भी जारी रहेंगी या नहीं, बड़ा सवाल यह है कि भविष्य के संकटों से निपटने के इरादे से कोई साहसिक कार्रवाई आगे बढ़ाई जाएगी या नहीं. रिपोर्ट में किए गए विश्लेषण के अनुसार, वर्तमान हालात में वैश्विक आर्थिक पुनर्बहाली के बावजूद वर्ष 2030 में करीब 67 करोड़ लोगों यानी दुनिया की आबादी के आठ प्रतिशत लोगों के भुखमरी झेलने को मजबूर होने की आशंका है. 

The world struggling to win the war against hunger | कृष्णप्रताप सिंह का ब्लॉग: भुखमरी से जंग जीतने की जद्दोजहद करती दुनिया

कृष्णप्रताप सिंह का ब्लॉग: भुखमरी से जंग जीतने की जद्दोजहद करती दुनिया

Highlightsसंयुक्त राष्ट्र एजेंसियों की इस रिपोर्ट का सबसे बड़ा संदेश यही है कि हालात दृढ़ इच्छाशक्ति से नए कारगर उपाय करने से ही परिवर्तित होंगे. संदर्भित रिपोर्ट अपनी प्रस्तावना में भुखमरी के बढ़ते जाने के कई और कारणों की ओर ध्यान आकर्षित करती है.

संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों-खाद्य एवं कृषि संगठन, अंतरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष, विश्व खाद्य कार्यक्रम और विश्व स्वास्थ्य संगठन की नई साझा रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021 में दुनिया भर में भुखमरी की मार झेलने वाले बढ़कर 82.80 करोड़ हो गए. निस्संदेह, यह इस बात का सबूत है कि दुनिया ‘खाद्य असुरक्षा और कुपोषण के अंत’ के लक्ष्य को पाने के रास्ते से बुरी तरह भटक गई है.

भुखमरी झेलने वालों का यह आंकड़ा इस अर्थ में बहुत चिंताजनक है कि यह वर्ष 2020 के मुकाबले उनकी संख्या में चार करोड़ 60 लाख की भारी बढ़ोत्तरी दर्शाता है. यानी 2020 में जब कोरोना के कारण विश्व अर्थव्यवस्था दरक रही थी, तब भी 2021 के जितने लोग भूख झेलने को अभिशप्त नहीं थे. जाहिर है कि 2020 के बाद से, जैसा कि संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों की रिपोर्ट का नया संस्करण भी कहता है, भीषण महंगाई के कारण स्वस्थ रहने लायक पोषक आहार के आम लोगों की पहुंच से दूर होते जाने के चलते भुखमरी से लड़ाई एकदम उल्टी दिशा में चल पड़ी है. 

इसके कारणों की तलाश करें तो पहली उंगली उन सरकारों की ही ओर उठती है, जो कृषि के लिए अपने मौजूदा समर्थन में बदलाव लाकर आहार की कीमतों में कमी ला सकती थीं. इसके लिए उनके द्वारा अपने संसाधनों का पोषक भोजन के उत्पादन, आपूर्ति और उपभोग को प्रोत्साहन देने में इस्तेमाल करना चाहिए था. लेकिन उन्होंने इसकी इच्छाशक्ति ही प्रदर्शित नहीं की और सार्वजनिक संसाधनों की सीमित उपलब्धता के कारण दूसरे जरूरी उपाय भी नहीं कर पाईं.

यहां संदर्भित रिपोर्ट अपनी प्रस्तावना में भुखमरी के बढ़ते जाने के कई और कारणों की ओर ध्यान आकर्षित करती है. ये हैं: टकराव, चरम जलवायु घटनाएं और बढ़ती विषमताओं के साथ आर्थिक झटके. रिपोर्ट कहती है कि अब दांव पर यही नहीं है कि ये चुनौतियां आगे भी जारी रहेंगी या नहीं, बड़ा सवाल यह है कि भविष्य के संकटों से निपटने के इरादे से कोई साहसिक कार्रवाई आगे बढ़ाई जाएगी या नहीं. रिपोर्ट में किए गए विश्लेषण के अनुसार, वर्तमान हालात में वैश्विक आर्थिक पुनर्बहाली के बावजूद वर्ष 2030 में करीब 67 करोड़ लोगों यानी दुनिया की आबादी के आठ प्रतिशत लोगों के भुखमरी झेलने को मजबूर होने की आशंका है. 

यह आशंका सही हुई तो 2030 के अंत तक भूख, खाद्य असुरक्षा और कुपोषण का अंत करने के पहले तय किए गए लक्ष्य विफल होकर रह जाएंगे.
भारत के संदर्भ में देखें तो वर्ष 2021 में 116 देशों के वैश्विक भुखमरी सूचकांक में वह 2020 के 94वें स्थान से फिसलकर 101वें स्थान पर आ गया था-अपने पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से भी पीछे. इस सूचकांक में देश में भुखमरी के स्तर को ‘चिंताजनक’ बताया गया था और उसका वैश्विक भुखमरी सूचकांक (जीएचआई) स्कोर भी गिर गया था, जो अल्पपोषण, कुपोषण, बच्चों की वृद्धि दर और बाल मृत्यु दर जैसे संकेतकों के आधार पर तय किया जाता है.

संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों की इस रिपोर्ट का सबसे बड़ा संदेश यही है कि हालात दृढ़ इच्छाशक्ति से नए कारगर उपाय करने से ही परिवर्तित होंगे. इन उपायों को इसलिए भी फौरन शुरू करने की जरूरत है कि दुनिया कोरोना संकट के घातक प्रभावों से निपट भी नहीं पाई थी कि रूस-यूक्रेन युद्ध से उत्पन्न परिस्थितियों के चलते अनाज, पेट्रोलियम पदार्थों व खाद आदि के दाम बढ़ने से नई और कहीं ज्यादा विकट चुनौती के सामने जा खड़ी हुई है. इससे स्थिति इतनी भयावह हो गई है कि पिछले दशक में भुखमरी, खाद्य असुरक्षा तथा कुपोषण को दूर करने के लिए दुनिया भर में जो प्रयास किए गए थे, उन पर पानी फिरता नजर आ रहा है.

दुनिया में खाद्य संकट से सर्वाधिक प्रभावित देशों में बारह अफ्रीका से हैं जबकि अफगानिस्तान व यमन एशिया से. कैरीबियन देश हैती भी इन्हीं की श्रेणी में आता है. यहां श्रीलंका का जिक्र न करना गलत होगा, क्योंकि वहां के नागरिकों को भूख से ही नहीं, दूसरे नाना प्रकार के अभावों से भी जूझना पड़ रहा है.

Web Title: The world struggling to win the war against hunger

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