शोभना जैन का ब्लॉग : आतंकवादियों की सरकार की कथनी-करनी पर दुनिया की नजर

By शोभना जैन | Published: September 10, 2021 11:01 AM2021-09-10T11:01:03+5:302021-09-10T11:32:56+5:30

तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे के 23 दिन बाद बाद विभिन्न तालिबान गुटों के बीच सरकार में शामिल होने और अहम पद पाने को लेकर चल रही अंदरूनी कलह के बीच अंतरिम सरकार के चेहरों का ऐलान कर दिया गया ।

the whole world see and listen the deeds of taliban | शोभना जैन का ब्लॉग : आतंकवादियों की सरकार की कथनी-करनी पर दुनिया की नजर

फोटो सोर्स - सोशल मीडिया

Highlightsअफगानिस्तान में अब शरीयत के कानून होंगे , देश का भी नाम बदल गयातालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जें के 23 दिन बाद बाद विभिन्न तालिबान गुटों के बीच सरकार में शामिल होने और अहम पद पाने को लेकर चल रही अंदरूनी पाकिस्तान और चीन नई तालिबान सरकार का दे रहें साथ

तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जें के 23 दिन बाद बाद विभिन्न तालिबान गुटों के बीच सरकार में शामिल होने और अहम पद पाने को लेकर चल रही अंदरूनी कलह और रस्साकशी के बीच आखिरकार नई ‘अंतरिम’ सरकार के चेहरों का ऐलान कर दिया गया. तालिबानी सरकार ने अफगानिस्तान में अपना एजेंडा दुनिया को दिखाते हुए इसका नया नामकरण भी कर दिया. अफगानिस्तान अब इस्लामिक अमीरात है, जहां शरीयत के कानून लागू होंगे.

तालिबान की नई सरकार के अब तक घोषित कुल 33 मंत्रियों में से 17 संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका द्वारा घोषित दुर्दात आतंकवादी हैं. इन नए मंत्रियों में ज्यादातर वही हैं जो 1996-2001 में तालिबान सरकार में मंत्नी रह चुके हैं. सत्ता के बंटवारे में सबसे अहम बात यह है कि देश के गृह मंत्नालय का कार्यभार तालिबान के हक्कानी गुट के दुर्दात आतंकी सिराजुद्दीन हक्कानी को दिया गया हैं. यह बात जगजाहिर है कि हक्कानी नेटवर्क के पाकिस्तान की गुप्तचर एजेंसी आईएसआई के साथ घनिष्ठ संबंध हैं. भारत के लिए खास तौर पर हक्कानी गुट का इस सरकार में बढ़ता वर्चस्व चिंता बढ़ाने वाला है. 2008 में काबुल में भारतीय दूतावास में हुए हमले में हक्कानी नेटवर्क का हाथ माना जाता है.

वैसे भी अफगानिस्तान में एक ही आतंकवादी गुट नहीं है बल्कि वहां लश्कर, जैश जैसे भारत विरोधी गुट भी खासे सक्रिय हैं. इसलिए भारत की चिंता बढ़ना स्वाभाविक है, खास तौर पर कश्मीर को लेकर तालिबान का हाल का पक्ष. नई सरकार के गठन से पहले तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने कहा, ‘एक मुसलमान के तौर पर, भारत के कश्मीर में या किसी और देश में मुस्लिमों के लिए आवाज उठाने का अधिकार हमारे पास भी है.’ ऐसी स्थिति में जबकि वहां 1.0 की रंगत वाली ही नई सरकार के चेहरे सामने आए हैं, भारत सहित दुनिया भर की सरकारों के सम्मुख निश्चय ही यह एक गंभीर चुनौती है कि इस सरकार के साथ कैसे संबंध रखें या मान्यता दें. शायद यही वजह है कि कतर, रूस, चीन और तो और पाकिस्तान ने भी अभी तक नई सरकार से दोस्ताना रिश्ते रखने की बात कहते हुए भी मान्यता देने के बारे में कुछ नहीं कहा है.

अफगानिस्तान में तेजी से बदलते घटनाक्रम के बीच भारत के साथ-साथ रूस और अमेरिका भी चिंतित हैं. इसी सप्ताह अमेरिकी खुफिया एजेंसी, सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी यानी सीआईए प्रमुख विलियम बर्न्‍स, रूस के सुरक्षा प्रमुख जनरल निकोलाई पात्नुशेव अफगानिस्तान की स्थिति पर भारत से मंत्नणा करने यहां आए थे. वर्चुअल ब्रिक्स सम्मेलन में अफगान स्थिति को लेकर गहन मंत्नणा हुई. इसमें भारत के अलावा रूस और चीन ने भी हिस्सा लिया. 

तालिबान सरकार अब एक हकीकत है. अगर तालिबानी समङों तो उनकी जिम्मेदारी देश के सुचारु प्रबंधन की है, जहां की कुल 3.5 करोड़ की आबादी में से तकरीबन आधे लोग गरीबी में गुजर-बसर कर रहे हैं. सबकी साझा सरकार की बजाय सिर्फ तालिबान के प्रतिनिधित्व वाली सरकार बनी है. वहां कैसा संविधान बनेगा, चुनाव कब होंगे यह सब तो बाद की बातें हैं फिलहाल तो स्थिति यह है कि वहां कल के आतंकी सरकार बनाने के बाद अब भी आतंकियों जैसा ही काम कर रहे हैं. उनके काम के आधार पर ही न केवल देश की जनता के बीच उनकी स्वीकार्यता तय होगी और देश में आंतरिक शांति स्थापित होगी बल्कि दुनिया के साथ रिश्ते भी तय होंगे. अफगानिस्तान मसले पर भले ही भारत बहुत कुछ बदलने की स्थिति में नहीं है, लेकिन अफगानिस्तान के साथ भारत के सदियों पुराने ऐतिहासिक, समाजिक, आर्थिक, समाजिक रिश्ते रहे हैं या यूं कहें कि इससे भी ज्यादा अफगान जनता के साथ सीधे गहरे रिश्ते रहे हैं. भारत उनके लिए भरोसेमंद दोस्त रहा है.

पिछले बीस सालों में भारत ने वहां बड़ी तादाद में विकास कार्य किए हैं. ऐसे में देखना होगा कि पाकिस्तान और चीन के साथ खड़ी नई तालिबान सरकार अपनी जमीन को दोहा वार्ता के अनुरूप आतंकी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल नहीं होने दे. दुनिया के साथ-साथ भारत भी सतर्क होकर वहां के नित नए बदलते घटनाक्रम पर नजर रखे हुए है. खास तौर पर भारत के लिए यह और भी चिंता का विषय है क्योंकि भारत के खिलाफ सीमा पार से आतंकी गतिविधियां चलाने वाले पाकिस्तान की इस सरकार पर काफी पकड़ है. अमेरिका ने भी कहा है कि नई सरकार को अपनी वैधता साबित करनी होगी. चीन, पाकिस्तान जैसे निजी स्वार्थो की खातिर तालिबान की पीठ थपथपाने वाले देशों के अलावा दुनिया के देशों के साथ तालिबान सरकार के रिश्ते उस की करनी के आधार पर तय होंगे और होने भी चाहिए.

Web Title: the whole world see and listen the deeds of taliban

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