शोभना जैन का ब्लॉगः श्रीलंका का गहराता राजनीतिक संकट
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: November 17, 2018 14:42 IST2018-11-17T14:42:23+5:302018-11-17T14:42:23+5:30
इस पूरे घटनाक्रम पर अमेरिका सहित अंतर्राष्ट्रीय मंचों से खुल कर गहरी चिंता जताई गई है.

शोभना जैन का ब्लॉगः श्रीलंका का गहराता राजनीतिक संकट
श्रीलंका का राजनीतिक संकट गहराता जा रहा है. पिछले तीन हफ्तों से जारी राजनीतिक संकट के समाधान का कोई ओर-छोर नजर नहीं आ रहा है. गहन आर्थिक संकट और अल्पसंख्यक समुदाय की चिंताओं से घिरे देश में राजनीतिक अनिश्चितता बढ़ती जा रही है.
इसी उथल-पुथल में वहां की संसद ने श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्नीपाला श्रीसेना द्वारा गत 26 अक्तूबर को नियुक्त किए गए प्रधानमंत्नी महिंदा राजपक्षे की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में मतदान किया जो कि राष्ट्रपति श्रीसेना के लिए एक बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है. निश्चय ही इस कदम से प्रधानमंत्नी रनिल विक्रमसिंघे का पक्ष मजबूत हुआ है, लेकिन राजनीतिक संकट और गहरा गया है. इस घटनाक्रम के बाद भी संसद में हंगामा बरपा रहा और हालत यह आ गई कि संसद में खुल कर सिर फुटौव्वल हुआ, पक्ष-विपक्ष के बीच ही नहीं अपितु स्पीकर कारू जयसूर्या तक पर किताबें, डस्टबिन फेंके गए.
इस पूरे घटनाक्रम पर अमेरिका सहित अंतर्राष्ट्रीय मंचों से खुल कर गहरी चिंता जताई गई है. दरअसल श्रीसेना का एक के बाद एक कदम देश को गहरे राजनीतिक संकट की तरफ ले जा रहा है. श्रीसेना के कदम असंवैधानिक रहे हैं तथा 2015 के संवैधानिक सुधारों के खिलाफ हैं जिसमें राष्ट्रपति के निर्बाध अधिकार सीमित कर दिए गए थे.
श्रीलंका घटनाक्र म के इस क्षेत्न पर पड़ने वाले प्रभाव की बात करें तो श्रीलंका में चीन ने बड़े पैमाने पर निवेश किया है. श्रीलंका चीन का कजर्दार भी है. दूसरी तरफ भारत भी श्रीलंका के विकास में मददगार रहा है और दोनों देश सांस्कृतिक कारणों से भी एक दूसरे के कहीं ज्यादा नजदीक हैं या यूं कहें ये रिश्ते व्यावहारिकता से ज्यादा भावनात्मक हैं. इसी क्रम में अगर हम देखें तो कुछ समय पूर्व विक्रमसिंघे के एक समर्थक ने चीन पर आरोप लगाया था कि चीन अनिश्चितता के इस दौर में राजपक्षे के लिए समर्थक जुटाने के लिए थैलियां खोल रहा है.
वे तमिल टाइगर्स के दमनचक्र और देश की सिविल वार से निबटने में सख्ती या यूं कहें कि नृशंसता के दोषी माने जाते हैं और चीन से उनकी नजदीकी भी छिपी नहीं है. उनके कार्यकाल में श्रीलंका में आधारभूत क्षेत्न में बड़े पैमाने पर निवेश हुआ. दूसरी तरफ विक्रमसिंघे चीन की नीतियों से सतर्क रहते हैं लेकिन भारत की तरफ से निश्चिंत. ऐसे में भारत श्रीलंका के गहराते राजनीतिक संकट पर निगाह तो बनाए हुए है लेकिन सतर्कता भी बरते हुए है.
गत 26 अक्तूबर को श्रीसेना ने लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित विक्रमसिंघे को हटा कर राजपक्षे को प्रधानमंत्नी नियुक्त कर दिया था तब भारत ने महज यही कहा कि वह श्रीलंका के राजनीतिक घटनाक्रम पर निगाह बनाए हुए है. उसने कहा कि एक निकट पड़ोसी और लोकतांत्रिक देश होने के नाते भारत को उम्मीद है कि लोकतांत्रिक मूल्यों व संवैधानिक प्रक्रिया का सम्मान किया जाएगा.