संकट में शेख हसीना को मिलता दिल्ली में सहारा
By विवेक शुक्ला | Updated: November 22, 2025 06:15 IST2025-11-22T06:14:19+5:302025-11-22T06:15:25+5:30
देश में वापस जाने की कोई संभावना भी नहीं है. देखा जाए तो दिल्ली उनके लिए दूसरे घर की तरह है, क्योंकि 1975 से 1981 तक छह साल उन्होंने यहीं निर्वासन में बिताए थे.

file photo
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को सोमवार को जब ढाका की एक अदालत ने मौत की सजा सुनाई तब वे नई दिल्ली के अपने आवास में सुरक्षित बैठी थीं. उन्हें इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल ने जुलाई 2024 के छात्र आंदोलन के दौरान हुई हत्याओं का मास्टरमाइंड बताया. वहीं दूसरे आरोपी पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां खान को भी 12 लोगों की हत्या का दोषी माना और फांसी की सजा सुनाई. शेख हसीना नई दिल्ली के एक अज्ञात स्थान पर हैं. सुरक्षा कारणों से उनके आवास की जानकारी गुप्त रखी गई है. वे अपने देश में पिछले साल हुए हिंसक प्रदर्शनों के बाद आनन-फानन में नई दिल्ली आ गई थीं.
शेख हसीना ने बीते दिनों भारत के कुछ खास अखबारों को इंटरव्यू देते हुए अपने देश की सरकार की निंदा भी की थी. उन्हें भले ही सजा सुना दी गई है, पर शेख हसीना भारत की राजधानी नई दिल्ली में सुरक्षित हैं. फिलहाल तो उनके अपने देश में वापस जाने की कोई संभावना भी नहीं है. देखा जाए तो दिल्ली उनके लिए दूसरे घर की तरह है, क्योंकि 1975 से 1981 तक छह साल उन्होंने यहीं निर्वासन में बिताए थे.
उन दिनों शेख हसीना नई दिल्ली पंडारा पार्क में रहती थीं. उनके पति डॉ. एम.ए. वाजेद मियां (परमाणु वैज्ञानिक) और दोनों बच्चे भी साथ में थे. उनके पड़ोस में ही भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी भी रहा करते थे. तब समय काटने के लिए शेख हसीना ने आकाशवाणी की बांग्ला सेवा में काम करना भी शुरू कर दिया था.
वरिष्ठ पत्रकार मनमोहन शर्मा याद करते हैं, “शेख हसीना उस दौर में नियमित रूप से संसद मार्ग स्थित आकाशवाणी भवन में आया करती थीं.” दरअसल 15 अगस्त 1975 को ढाका के धानमंडी स्थित घर में उनके पिता बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान, मां और तीन भाइयों की हत्या कर दी गई थी.
उस वक्त शेख हसीना अपने पति और बच्चों के साथ जर्मनी में थीं, इसलिए बच गईं. परिवार के नरसंहार से वे पूरी तरह टूट चुकी थीं. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें भारत में राजनीतिक शरण दी. इंदिरा और मुजीबुर्रहमान के बीच घनिष्ठ संबंध थे. आज, जब वो फिर से नई दिल्ली में हैं, तो यह इतिहास का एक विडंबनापूर्ण दोहराव लगता है और भारतीय राजधानी फिर से उन्हें संकट में सुरक्षा दे रही है.