राजेश बादल का नजरियाः पाक का आर्थिक अस्तित्व बचाने का आखिरी मौका 

By राजेश बादल | Published: June 11, 2019 05:18 AM2019-06-11T05:18:56+5:302019-06-11T05:18:56+5:30

जिस मुल्क में सत्तर फीसदी आबादी रात होते ही अंधेरे में डूब जाती हो, वहां आम जनता किस तरह बसर कर रही होगी, कल्पना की जा सकती है. देखना है नियति का कौन सा चमत्कार पाकिस्तान को उबार सकता है.

Rajesh Badal's opinion: the last chance to save Pak's economic existence | राजेश बादल का नजरियाः पाक का आर्थिक अस्तित्व बचाने का आखिरी मौका 

राजेश बादल का नजरियाः पाक का आर्थिक अस्तित्व बचाने का आखिरी मौका 

पाकिस्तान वजूद में आने के बाद अब तक की सबसे गंभीर स्थिति में है. आर्थिक सेहत काबू से बाहर है और सारे उपाय एक के बाद एक दम तोड़ते जा रहे हैं. इस पड़ोसी ने दशकों से हिंदुस्तान में आतंक फैलाने के लिए फौज और आईएसआई के मार्फत जितना पैसा बहाया है उतने में तो अनेक देश मालामाल हो जाते. अपने हाथ-पैर पर कुल्हाड़ी मारने का यह संसार का अनूठा उदाहरण होगा. ऐसे में मंगलवार 11 जून को जब पाकिस्तान की संसद अपना बजट पेश करेगी तो मुल्क की अवाम के लिए यह तय करना कठिन होगा कि उस पर हंसे या आंसू बहाए. प्रधानमंत्नी इमरान खान के लिए यह सांप-छछूंदर की स्थिति बन गई है.  

वैसे तो इमरान खान नवाज शरीफ को पटखनी देने के लिए चुनाव प्रचार में एक ही राग लगातार अलापते रहे हैं कि अगर वे सत्ता में आए तो खुदकुशी कर लेंगे लेकिन किसी भी कीमत पर कर्ज नहीं लेंगे. मगर हुआ उल्टा. अब वे कर्ज की खातिर दर-दर भटक रहे हैं और घी भी पीते जा रहे हैं. अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष सैद्धांतिक तौर पर पाकिस्तान को तेरहवीं बार 6 अरब डॉलर का ऋण देने के लिए राजी हो गया है. हालांकि अभी उसके निदेशक मंडल को इस पर भी औपचारिक सहमति देनी है. पाकिस्तान के लिए मुद्राकोष की शर्ते गले की फांस जैसी हैं. उसे कम से कम सात सौ अरब रुपए का खर्च कम करना होगा और नए टैक्स लगाकर खजाने में डालने होंगे. 

पाकिस्तानी वित्त मंत्नालय के अफसरों का कहना है कि कर्ज जाल में रोम-रोम बिंधे देश के लिए ये शर्ते एक तरह से गले का फंदा हैं. इन्हें पाकिस्तान कभी भी मान नहीं पाएगा. अगर नए टैक्स लगाए गए तो उससे गैस, बिजली, पानी सप्लाई, सब्जियां, स्टील, किराना और कपड़ा जैसे सामानों का उपभोक्ता बाजार उच्च मध्यम वर्ग की पहुंच से भी बाहर हो जाएगा. गीजर और एसी जैसे उपकरण वहां जरूरत की नहीं, बल्कि विलासिता की वस्तुएं बन चुकी हैं. सरकार ने औपचारिक सूचना जारी कर इससे बचने की सलाह दी है. जिस मुल्क में सत्तर फीसदी आबादी रात होते ही अंधेरे में डूब जाती हो, वहां आम जनता किस तरह बसर कर रही होगी, कल्पना की जा सकती है. यही हाल गैस का है. एक बार फिर चूल्हा और भट्टी युग लौट रहा है. पहले ही उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं. अब नए टैक्स लगे तो लोग सड़कों पर उतर आएंगे.

दूसरी बात खर्चो में कटौती की है. मुल्क के सरकारी खजाने का साठ फीसदी पैसा कर्मचारियों के वेतन और दफ्तरी रखरखाव पर खर्च होता है. इस पर कटौती का मतलब बड़ी तादाद में नौकरियों में छंटनी करना है. पहले ही आधे पद खाली पड़े हैं. बचे-खुचे पदों पर तैनात कर्मचारियों की छंटनी हुई तो देश की व्यवस्था लड़खड़ा जाएगी. चरम बेरोजगारी ङोल रहे पाकिस्तान में गृह युद्ध की आशंका पैदा हो जाएगी.  

इन दिनों पाकिस्तान में सामाजिक -आर्थिक नजरिए से दो धाराएं बह रही हैं. एक धारा यह मानती है कि मुल्क की रग-रग में फैले भ्रष्टाचार को रोकना बहुत जरूरी है. इसलिए प्रधानमंत्नी इमरान खान वित्तीय हालत सुधारने के साथ-साथ भ्रष्टाचार के सफाए पर भी जोर दे रहे हैं. प्रधानमंत्नी इमरान खान के प्रमुख आर्थिक सलाहकारों में से एक इफ्तिखार दुर्रानी इस भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के अगुआ हैं. उनका मानना है कि एक बार भ्रष्टाचार समाप्त हो जाए तो नए निवेश लाना आसान हो जाएगा.  मुश्किल यह कि आज के पाकिस्तान से भ्रष्टाचार मिटाना टेढ़ी खीर है.

दूसरी धारा इस मत की है कि मौजूदा परिवेश में रातोंरात यह महामारी समाप्त नहीं हो सकती. बाजार और देश को पैसा चाहिए और  बिना बेईमानी देश की गाड़ी आगे नहीं बढ़ सकती. पीपुल्स पार्टी के सुप्रीमो तथा पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने तो साफ साफ कहा है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था सुधारने और भ्रष्टाचार मिटाने का काम एक साथ नहीं चल सकता. अनेक प्रतिपक्षी पार्टियों और उद्योगपतियों ने इसे क्रूर सच्चाई बताते हुए जरदारी के सुर में सुर मिलाया है.

यानी इमरान खान को अब वही करना चाहिए, जिसके लिए वे अपने पूर्ववर्ती नवाज शरीफ को निशाना बनाते रहे हैं. इमरान के आर्थिक सलाहकार अब्दुल हफीज खान भी कह चुके हैं कि टैक्स चोरी सख्ती से रोकनी पड़ेगी. ताज्जुब की बात है कि इन दिनों पाकिस्तान के बड़े कारोबारी, किसान तथा प्रॉपर्टी दिग्गज टैक्स नहीं देते. केवल एक फीसदी आबादी टैक्स भरती है. जब भी वहां टैक्सचोरी के खिलाफकड़े कानून की बात चली तो जैसे पूरा देश ही उसके विरोध में उतर आया.  

व्यापार घाटे के कारण भुगतान असंतुलन बढ़ता ही जा रहा है. आयात बढ़ रहा है और निर्यात शून्य जैसा है. पिछले वित्तीय वर्ष के आखिर तक व्यापार घाटा 60.898 अरब डॉलर तक पहुंच गया था. आर्थिक जानकारों का मानना है कि पाकिस्तान ने चीन और सऊदी अरब के साथ बिना सोचे एकतरफा कारोबारी समझौते किए हैं, जिनसे दोनों देशों को तो लाभ है लेकिन पाकिस्तान को कुछ नहीं मिलने  वाला है. लब्बोलुआब यह कि इमरान खान के लिए अपना पहला बजट कांटों की सेज जैसा है. वे असहाय तथा पराजित योद्धा की तरह नजर आते हैं. देखना है नियति का कौन सा चमत्कार पाकिस्तान को उबार सकता है.

Web Title: Rajesh Badal's opinion: the last chance to save Pak's economic existence

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