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राजेश बादल का ब्लॉग: भारत के खिलाफ नेपाल को भड़काने में चीन का हाथ!

By राजेश बादल | Updated: May 19, 2020 05:19 IST

यह पहली बार नहीं है कि नेपाल ने एक एक इंच भूमि भारत से लेने की बात कही है. कालापानी के मसले पर भी नेपाली प्रधानमंत्री ऐसा ही बड़बोलापन दिखा चुके हैं.

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बड़ा झटका है. सदियों पुराने दोस्त नेपाल ने दिया है. सामाजिक और सांस्कृतिक धरातल पर एक ही तराजू में बैठे ये पड़ोसी अब अलग-अलग पाले में हैं. नेपालचीन के छाते तले सांस ले रहा है. इसलिए उसकी भाषा ही बदल गई है. अब वह भारत से अपनी एक एक इंच जमीन लड़कर लेना चाहता है. लिपुलेख पर उसने अपने गार्ड तैनात कर दिए हैं. कभी भारत के राजदूत नेपाल की सरकार का हिस्सा माने जाते थे. वे नेपाल के हुकूमत के सलाहकार भी होते थे. अब वही देश हमारे राजदूत को तलब करता है और अल्टीमेटम देता है. वह जानता है कि भारत से सशस्त्र संघर्ष में कहीं नहीं टिकेगा.

यह पहली बार नहीं है कि नेपाल ने एक एक इंच भूमि भारत से लेने की बात कही है. कालापानी के मसले पर भी नेपाली प्रधानमंत्री ऐसा ही बड़बोलापन दिखा चुके हैं. कुछ महीने पहले उन्होंने एक बयान में कहा था, ‘नेपाल की जमीन से विदेशी सैनिकों को वापस जाना चाहिए. हमें किसी और की जमीन नहीं चाहिए. इस कारण भारत नेपाल की जमीन से अपने सैनिकों को वापस बुलाए. आक्र ामक प्रधानमंत्री कहते हैं कि भारत अपने नक्शे ठीक करे. 

यह तो हम अभी कर सकते हैं. यहीं पर कर सकते हैं. यह नक्शे का मसला नहीं है. मामला जमीन वापस लेने का है. मानचित्र तो प्रेस में प्रिंट हो जाएगा, लेकिन मामला मानचित्र का है ही नहीं. नेपाल जमीन वापस लेने में सक्षम है’. लिपुलेख पर वे कहते हैं कि भारत को यह जमीन लीज पर तो दे सकते हैं, लेकिन मालिकाना हक नहीं छोड़ेंगे.

लिपुलेख भी चीन,भारत और नेपाल के संधि स्थल पर है. भारत ने वहां हाल ही में 22 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण किया है. लिपुलेख के पश्चिम में स्थित कालापानी में 1962 के चीन-भारत युद्ध के बाद से ही भारतीय सेना तैनात है. पिछले साल जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के विभाजन के बाद हिंदुस्तान का नया नक्शा जारी किया गया था. इसमें कालापानी को भी भारत का हिस्सा बताया गया है. कालापानी उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में करीब पैंतीस किलोमीटर की पट्टी है. काली नदी यहीं से निकलती है.

लेकिन परदे के पीछे की कहानी कुछ और ही कहती है. हिंदुस्तान ने गिलगित-बाल्टिस्तान में चुनाव कराने के पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट का विरोध किया है और पाकिस्तान को इलाका खाली करने का अल्टीमेटम दिया है. सारी जड़ इसके पीछे है. भारत ने गिलगित-बाल्टिस्तान का मौसम जारी करना शुरू कर दिया है. इससे पाकिस्तान घबराया है. पाकिस्तान और चीन के बीच रक्षा संधि के मुताबिक पाकिस्तान की किसी भी देश से जंग की स्थिति में चीन उसे अपने पर आक्रमण मानेगा और पाकिस्तान को समर्थन देगा. 

पाकिस्तानी कब्जे वाले इलाके को खाली करने के भारतीय नोटिस से चीन भी नाराज है क्योंकि पाक अधिकृत कश्मीर की लूट का एक साझीदार वह भी है. कश्मीर की शक्सगाम घाटी पाकिस्तान ने चीन को 1963 में एक समझौते के तहत उपहार में दे दी थी. अगर चीन भारत का समर्थन करता है तो उसे भी आने वाले दिनों में यह इलाका खाली करना पड़ सकता है, जो वह कभी नहीं करेगा. ताजी सूचनाओं के अनुसार पाकिस्तान चीन को गिलगित का बड़ा भू भाग मुफ्त देना चाहता है. 

वजह यह है कि पाकिस्तान चीन आर्थिक गलियारे के लिए चीन ने पाकिस्तान को करीब 22 अरब डॉलर कर्ज दिया है. इसे लौटाना पाकिस्तान के लिए कभी संभव नहीं होगा. इसीलिए वह यह हिस्सा चीन को तोहफे के तौर पर देना चाहता है. पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति के आदेश इसीलिए भारत को नागवार हैं.

वास्तव में गिलगित-बाल्टिस्तान पाकिस्तान में होते हुए भी वहां स्वायत्त जैसे रहे हैं. दो बरस से पाकिस्तान वहां लोगों के हक चालाकी से छीन रहा है. भारत चीन-पाक गलियारे का विरोधी है क्योंकि इसमें गिलगित-बाल्टिस्तान का बड़ा क्षेत्र है. भारत कहता है कि यह कश्मीर का हिस्सा है और समूचा कश्मीर भारत का है. भारत का यह नया कदम चीन को चिंता में डालता है. सतही तौर पर कारण जो भी नजर आए, नेपाल का बदला रु ख भी चीन के दबाव का ही नतीजा है. सिक्किम सीमा पर तनाव पैदा करके वह भारत को एक रणनीतिक संदेश देना चाहता है. भारत के लिए यह बेहद नाजुक दौर है.

टॅग्स :नेपालचीन
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