रहीस सिंह का ब्लॉग: शीतयुद्ध की ओर खिसकती जा रही है स्वार्थ की लड़ाई
By रहीस सिंह | Updated: September 28, 2020 14:16 IST2020-09-28T14:14:45+5:302020-09-28T14:16:06+5:30
डोनाल्ड ट्रम्प ने चीन को कोरोना महामारी के प्रसार के लिए एक बार फिर जिम्मेदार ठहराया और इसके लिए चीन की जवाबदेही तय करने की बात कही.

सांकेतिक तस्वीर (फाइल फोटो)
पिछले कुछ समय से अमेरिका और चीन के बीच जो तनाव दिख रहा है, उसे देखते हुए एक धारणा यह बन रही है कि दुनिया या तो शीत युद्ध के मुहाने पर पहुंच चुकी है अथवा पहुंचने वाली है.
हालांकि अभी नाटो के मुकाबले में वारसा पैक्ट जैसा सैन्य संगठन सामने नहीं आया है और न ही दुनिया अभी वाशिंगटन और बीजिंग को उस रूप में देख रही है जिस तरह से शीतयुद्ध काल में वाशिंगटन और मास्को को देखा गया था. लेकिन अमेरिका और चीन के बीच में लम्बे समय से ‘लव-हेट गेम’ चल रहा है इसलिए इस टकराव को शीतयुद्ध का संकेत माना जाए या फिर उच्चस्तरीय प्रहसन?
इन दोनों देशों के बीच तनाव की चर्चा संयुक्त राष्ट्र महासभा के 75वें सत्र में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और शी जिनपिंग के वक्तव्यों से उपजी प्रतिध्वनियों में कुछ हद तक महसूस की गई. डोनाल्ड ट्रम्प ने चीन को कोरोना महामारी के प्रसार के लिए एक बार फिर जिम्मेदार ठहराया और इसके लिए चीन की जवाबदेही तय करने की बात कही.
हालांकि जिनपिंग यह कहते दिखे कि चीन किसी भी देश के साथ शीत युद्ध में उतरने का कोई इरादा नहीं रखता है. कहीं शी जिनपिंग इस वक्तव्य के जरिए अमेरिका को शीतयुद्ध की धमकी तो नहीं दे रहे थे? या फिर वचरुअल मंच को कुरुक्षेत्र की तरह प्रस्तुत करने वाला एक राजनीतिक ड्रामा था? हालांकि ट्रम्प का यह कहना सही है कि शुरुआती दिनों में जब कोरोना संक्रमण फैला तो चीन ने घरेलू उड़ानों पर तो प्रतिबंध लगा दिया लेकिन अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को उसने नहीं रोका.
वे चीन से बाहर जाती रहीं और दुनिया को संक्रमित करती रहीं जबकि उसने अपने यहां घरेलू उड़ानों पर रोक लगा दी थी और अपने नागरिकों को घरों में कैद कर दिया था. ट्रम्प का आरोप है कि चीन ने महामारी से जुड़ी सूचनाओं को छिपाया.
इस बात में कोई संशय नहीं है कि चीन ने इस महामारी में संदिग्ध आचरण अपनाया जिसके कारण चीन का ट्रस्ट डेफिसिट पूरी दुनिया में बहुत बढ़ गया. लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि इसके बावजूद दुनिया न ही उससे
किनारा कर पाई और न उसके खिलाफ कोई कार्रवाई. आखिर वजह क्या है?
तो क्या इसका अर्थ यह निकाला जा सकता है कि चीन के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका अकेला पड़ गया है? यदि ऐसा है तो क्यों? इसलिए कि दुनिया अब चीन को महाशक्ति के रूप में स्वीकारने लगी है या फिर इसलिए कि अमेरिका अपने स्वार्थ की लड़ाई लड़ रहा है? आखिर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के इस वक्तव्य के कुछ तो मायने होने ही चाहिए कि महामारी के इस दौर में स्वार्थ की कोई जगह नहीं है.
एक सवाल और भी है कि आखिर पूरी दुनिया को जिस प्रतिबद्धता के साथ एक वायरस से लड़ना चाहिए था, वह पापुलिज्म और नेशनलिज्म के विषयों में उलझी क्यों दिख रही है? दुनिया को यह बात गंभीरता से स्वीकार करनी चाहिए कि इन्हीं वजहों से वायरस के खिलाफ लड़ाई जटिल होती गई यानी विचारधाराएं लड़ती रहीं और वायरस मनुष्यों को मारता रहा.
इस पापुलिज्म और नेशनलिज्म नामक सिंड्रोम के शिकार तो दोनों ही देश हैं, फिर गलत कौन है? चीन तो स्पष्ट रूप से है, लेकिन अमेरिका को भी इस आरोप से मुक्त नहीं किया जा सकता क्योंकि जब अमेरिका को इस बीमारी के खिलाफ वैश्विक अभियान का नेतृत्व करना चाहिए था तब राष्ट्रपति ट्रम्प अमेरिका फस्र्ट के सुराख से प्रतिबंध-प्रतिबंध की कौड़ियां खेल रहे थे.
कुछ वैश्विक नेताओं का मानना है कि आज दुनिया को अमेरिका और चीन के बीच प्रतियोगिता के लिए नहीं छोड़ा जा सकता. कुल मिलाकर यह कहना गलत नहीं होगा कि दुनिया में एक नया वल्र्ड ऑर्डर तय हो रहा है. यानी दुनिया सिरे से संगठित हो रही है और चीजें बदल रही हैं.
डर यह है कि पुर्नसगठन और पुर्नसयोजन की यह प्रक्रिया किसी किस्म के द्वंद्वों को पैदा न कर दे जो मानव जीवन और वैश्विक शांति के लिए खतरनाक साबित हों. वैश्विक संस्थाओं और दुनिया की उभरती शक्तियों को इसे गंभीरता से देखना और समझना होगा.