रहीस सिंह का ब्लॉग: दक्षिण एशिया के लिए चेतावनी हैं श्रीलंका में हुआ हमला
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 24, 2019 07:57 AM2019-04-24T07:57:06+5:302019-04-24T07:57:06+5:30
श्रीलंका में वर्ष 2006 में इसी तरह का भीषण हमला हुआ था जिसे तमिल विद्रोही संगठन लिट्टे ने अंजाम दिया था. हालांकि ताजा हमलों की जिम्मेदारी अभी तक किसी भी संगठन ने नहीं ली है लेकिन जो सूचनाएं मिल रही हैं उनके मुताबिक इस हमले में नेशनल तौहीद जमात नाम के एक आतंकी संगठन का हाथ होने की आशंका जताई जा रही है.
लगभग दो दशक तक सिंहली, बौद्घ, तमिल तनाव ङोलने के बाद एक दशक से शांत श्रीलंका में ईस्टर के मौके पर चर्च और पंचसितारा होटलों सहित विभिन्न जगहों पर जो 8 विस्फोट हुए हैं उनमें मरने वालों की संख्या 300 के ऊपर पहुंच चुकी है. चर्च को निशाना बनाने का मतलब है एक धर्म विशेष के लोगों को टारगेट करना. यह ठीक उसी तरह का हमला है जैसा कि अभी कुछ दिन पहले ही न्यूजीलैंड में मस्जिद पर हुआ था. इस तरह के कृत्य में कई आयाम मिलते हैं अर्थात आतंकवाद के साथ-साथ ¨हंसा जिसमें अलग तरह की नस्लीय या सांप्रदायिक घृणा भी शामिल है. दूसरा पाश्चात्य संस्कृति वाला पक्ष भी प्रतीत होता है क्योंकि पंचसितारा होटलों को भी निशाना बनाया है. ऐसे में यह प्रश्न भी उठता है कि क्या यह उन्माद श्रीलंका को एक नए दौर में ले जाएगा? दूसरा यह कि क्या यह श्रीलंका तक ही सीमित रहेगा या फिर दक्षिण एशिया, पूर्वी एशिया अथवा दक्षिण पूर्व एशिया को भी अपने कब्जे में लेगा?
श्रीलंका में वर्ष 2006 में इसी तरह का भीषण हमला हुआ था जिसे तमिल विद्रोही संगठन लिट्टे ने अंजाम दिया था. हालांकि ताजा हमलों की जिम्मेदारी अभी तक किसी भी संगठन ने नहीं ली है लेकिन जो सूचनाएं मिल रही हैं उनके मुताबिक इस हमले में नेशनल तौहीद जमात नाम के एक आतंकी संगठन का हाथ होने की आशंका जताई जा रही है. यह संगठन श्रीलंका के कट्टरपंथी समूह श्रीलंका तौहीद जमात से अलग होकर वजूद में आया है. ब्रसेल्स स्थित साउथ एशिया डेमोक्रेटिक फोरम के दक्षिण एशिया मामलों के विशेषज्ञ का कहना है कि इस समय यह कह पाना मुश्किल है कि इन धमाकों के पीछे किसका हाथ हो सकता है लेकिन इस दक्षिण एशियाई देश के अशांत इतिहास और वहां लगातार जारी राजनीतिक तनावों को देखते हुए कुछ ऐसे संभावित समूहों की पहचान की जा सकती है जो इस हमले के पीछे हो सकते हैं.
बहरहाल, यह श्रीलंका के लिए ही नहीं बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए अलार्मिग टाइम है. इसका कारण यह है कि एक तो दक्षिण एशिया कई प्रकार के संघर्षो से जूझ रहा है और दूसरी तरफ आईएस करीब 100 देशों के चरमपंथी संगठनों से अपने आपको जोड़ चुका है. दुनिया जिस तरह के टकरावों से गुजर रही है, उनमें इस तरह के चरमपंथी संगठनों को अपना आधार विकसित करने में बहुत अधिक दिक्कत नहीं होती. वैसे भी इस्लामिक स्टेट के पांव मध्य-पूर्व से उखड़ चुके हैं इसलिए अब उसका मूल फोकस अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा क्षेत्र से होते हुए दक्षिण एशिया तथा पूर्वी व दक्षिण पूर्व एशिया होगा. ऐसे में यह जरूरी है कि पूर्वी और दक्षिण एशिया के देश मिलकर तत्काल साझा रणनीति निर्मित करें.