रहीस सिंह का ब्लॉग: जनआंदोलनों से आखिर क्यों डर रहा है मजबूत चीनी गणराज्य?

By रहीस सिंह | Published: October 6, 2019 11:26 AM2019-10-06T11:26:00+5:302019-10-06T11:26:00+5:30

इसमें कोई संशय नहीं होना चाहिए कि गरीबी के आधार पर समाजवादी व्यवस्था नहीं बनाई जा सकती. लेकिन क्या यह भी सच नहीं होना चाहिए कि केवल आंकड़ों के बल पर आर्थिक समृद्धि, समानता और न्याय की स्थापना भी नहीं की जा सकती. अगर ऐसा होता तो चीन दुनिया का रोल मॉडल बनता.

Rahees Singh Blog: Why is the strong Chinese Republic afraid of public movements? | रहीस सिंह का ब्लॉग: जनआंदोलनों से आखिर क्यों डर रहा है मजबूत चीनी गणराज्य?

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग। (फाइल फोटो)

माओत्से तुंग ने जब चीनी लोक गणराज्य (पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना) की स्थापना की थी तब उनका उद्देश्य था- समानता और लाभ में सभी की बराबर की हिस्सेदारी. इसकी 70वीं वर्षगांठ पर राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी एकता, विकास और मजबूती पर जोर देते दिखे. यहां दो सवाल हैं. पहला यह कि क्या माओ के चीन ने माओ को अभी तक आत्मसात कर रखा है? दूसरा- क्या शी जिनपिंग जिन तीन विषयों पर अपनी प्रतिबद्धता जता रहे हैं वे चीन ने हासिल कर लिए हैं अथवा चीन सही अर्थो में उनमें से कम से कम दो मामले में काफी दूर है?

डेंग जियांग पिंग ने अब से 40 साल पहले जिस नए चीन की बुनियाद रखी थी वह माओ की सांस्कृतिक क्रांति से अलग कृत्रिम समाजवादी अथवा पूंजीवादी तत्वों से निर्मित थी. इसे ही जियांग जेमिन, हू जिंताओ और शी जिनपिंग ने आगे बढ़ाया. परिणाम यह हुआ कि चार दशक में माओ के चीन का मौलिक स्वरूप बदल गया.

माओ के बाद के चार दशकों में चीन विकास दर के मामले में डबल डिजिट तक पहुंचा और दुनिया का सबसे तेज गति से विकास करने वाला देश बना. चीनी निर्यातों ने दुनिया में भर में घूम मचाई, भुगतान संतुलन चीन के पक्ष में किया, विदेशी मुद्रा भंडार को समृद्घ बनाया और चीन की अर्थव्यवस्था को दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बना दिया. लेकिन उसकी इस विकास गाथा में बहुत सी बीमारियां छुपी थीं, जिनका खुलासा करने से चीनी नेतृत्व कतराता रहा. यही वजह है कि वह अपनी आर्थिक नीतियों के जरिए माओ को मारता गया लेकिन राजनीतिक व्यवस्था में जिंदा रखता रहा ताकि लोगों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित रखने में सफल हो सके.

इसमें कोई संशय नहीं होना चाहिए कि गरीबी के आधार पर समाजवादी व्यवस्था नहीं बनाई जा सकती. लेकिन क्या यह भी सच नहीं होना चाहिए कि केवल आंकड़ों के बल पर आर्थिक समृद्धि, समानता और न्याय की स्थापना भी नहीं की जा सकती. अगर ऐसा होता तो चीन दुनिया का रोल मॉडल बनता. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बल्कि इसके विपरीत चीन के अंदर से ही उसके इस मॉडल को चुनौती मिल रही है, फिर चाहे वह मकाऊ  हो, हांगकांग हो, ताइवान हो या फिर तिब्बत और शिनजियांग में बौद्घों तथा वीगरों का आंदोलन हो. इन स्थितियों का मूल्यांकन करने और उन्हें हैंडल करने की बजाय शी जिनपिंग लोगों को यह सपना दिखा रहे हैं कि वर्ष 2049 तक चीन को ‘एडवांस्ड सोशलिस्ट कंट्री’ में परिवर्तित करना है ताकि चीन दुनिया की सबसे बड़ी सैनिक, आर्थिक, सांस्कृतिक ताकत बन सके.

Web Title: Rahees Singh Blog: Why is the strong Chinese Republic afraid of public movements?

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