रहीस सिंह का ब्लॉग: यूक्रेन संकट- कठघरे में अकेले रूस ही नहीं है
By रहीस सिंह | Published: March 2, 2022 08:50 AM2022-03-02T08:50:21+5:302022-03-02T08:50:21+5:30
यूक्रेन संकट: सोवियत संघ के खंडहरों पर उगे स्वतंत्र देशों को जिस प्रकार से यूरोपीय संघ और नाटो का सदस्य बनाने की कोशिश की गई उसके विरुद्ध ऐसी ही प्रतिक्रिया स्वाभाविक थी.
यूक्रेन की राजधानी कीव पर कब्जे के लिए रूस भीषण हमले कर रहा है. सवाल यह उठता है कि रूस को इस जंग का निर्णय क्यों लेना पड़ा? हम यह तो स्पष्ट तौर पर कह सकते हैं कि यह जंग समय की मांग पर तो बिल्कुल नहीं हुई है, ठीक वैसे ही जैसे इराक में अमेरिका ने लड़ी थी. फिर इसके लिए दोषी किसे मानें? रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन को या फिर यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की को अथवा जो बाइडेन को?
क्या इसकी एक वजह अमेरिका का अनिर्णय, अनिश्चय और अंतर्विभाजन का शिकार होना भी है जिसके कारण नाटो नि:शक्त हुआ है और चीन के साथ मिलकर पुतिन मजबूत? सवाल यह भी है कि इस खेल में चीन कितना बड़ा खिलाड़ी है?
युद्ध से पहले पुतिन ने एक घंटे के अपने लंबे भाषण में कुछ बातें कही थीं. ये बातें इशारा कर रही थीं कि यह लड़ाई यूक्रेन की जमीन पर केवल लड़ी जा रही है लेकिन असल बैटल ग्राउंड नहीं है. पुतिन की बातों पर ध्यान दिया जाए तो स्थिति काफी साफ हो जाएगी. उनका कहना है कि 1991 में सोवियत यूनियन बिखरा तो रूस पर डाका डाल दिया गया.
यह बयान ठीक वैसा ही है जैसा कि कभी हिटलर ने प्रथम विश्वयुद्ध के बाद वर्साय की संधि को राजमार्ग की डकैती कहते हुए दिया था. खास बात यह है कि यहीं दूसरे विश्वयुद्ध की बुनियाद पड़ गई थी. पुतिन भी कुछ ऐसे बोल रहे थे मानो पिछले 20 वर्षो से सोवियत संघ की पुरानी कड़ियों को जोड़ते हुए वे अंदर ही अंदर एक युद्ध लड़ रहे हों.
उनके अनुसार उन्हें दोस्त बनाने की बजाय एक दुश्मन बना दिया गया. हालांकि यह पूरा सच नहीं है लेकिन पूरा झूठ भी नहीं. इसके पीछे ठोस वजह है. पहली यह कि 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका ने नाटो के जरिये विस्तार जारी रखा जो रूस को निरंतर मुंह चिढ़ा रहा था.
सोवियत संघ के खंडहरों पर उगे स्वतंत्र देशों को जिस प्रकार से यूरोपीय संघ और नाटो का सदस्य बनाने की कोशिश की गई उसके विरुद्ध ऐसी ही प्रतिक्रिया स्वाभाविक थी. चूंकि अमेरिका और पश्चिमी शक्तियां सीधे टकराने के बजाय अक्सर मोहरों के जरिये युद्ध लड़ती रही हैं, इससे वे बिना किसी नुकसान के लाभांश पाने का पुख्ता इंतजाम कर लेती थीं.
नाटो के जरिये ऐसे बहुत से देशों को मोहरा बनाया गया. यूक्रेन उनका ऐसा ही मोहरा है. पुतिन ने बस इतना किया कि इससे पहले कि इस पर अमेरिका या नाटो देश अपना प्रभुत्व जमाएं, रूस वहां प्रवेश कर नियंत्रण स्थापित कर ले.
वैसे इस सवाल के लिए तो अभी भी जगह है कि सोवियत संघ के विघटन और वर्साय पैक्ट के समाप्त होने के बाद भी नाटो भंग क्यों नहीं हुआ? नाटो निरंतर विस्तारवादी क्यों बना रहा? दोनों तरफ से परमाणु रेस जारी क्यों रही? यूक्रेन में रूस विरोधी शक्तियों को पश्चिमी देशों द्वारा लगातार हवा क्यों दी जाती रही? इन सवालों का उत्तर यदि मिला तो यूक्रेन में खेले जा रहे ग्रेट गेम का सच पता चल जाएगा.
19 जनवरी 2022 को जो बाइडेन ने कहा था कि उन्हें लगता है कि व्लादीमीर पुतिन यूक्रेन में दखल देंगे लेकिन एक मुकम्मल जंग से बचना चाहेंगे. सवाल यह उठता है कि जो बाइडेन अपना अनुमान व्यक्त कर रहे थे अथवा या निष्कर्ष बता रहे थे? यदि उनकी खुफिया एजेंसियां सक्षम हैं तो फिर यह निष्कर्ष रहा होगा? और यदि निष्कर्ष था तो वे अब तक क्या कर रहे थे?
उनकी अनिर्णय की स्थिति बहुत कुछ बयां करती है. इसमें तो किसी को कोई संशय ही नहीं होना चाहिए कि चीन और रूस की दोस्ती, साझेदारी व रणनीति स्पष्ट है. दोनों ही यह मानकर चल रहे हैं कि अमेरिका का एक शक्ति के रूप में पराभव हो चुका है. वर्ष 2008 में इसकी प्रस्तावना लिखी गई थी और अगस्त 2021 में उपसंहार. घरेलू राजनीति में विभाजन, ध्रुवीकरण और सामंजस्य की कमी से जूझते अमेरिका में पैन अमेरिका का धीरे-धीरे पराभव होता दिख रहा है. यही अमेरिका की असल ताकत थी.
सबसे अहम पक्ष यहां पर यह है कि पहले विश्व युद्ध में जिस स्थिति में अमेरिका था, उस पोजीशन पर आज चीन दिख रहा है. इसलिए इतिहास को दोहराने वाला कोई भी युद्ध यदि होता है तो बीजिंग एक धुरी के रूप में चुनौतीविहीन ताकत बन जाएगा. यह भारत और अमेरिका सहित पूरी दुनिया के हित में नहीं होगा.
इसलिए यह घड़ी भारत के लिए भी निर्णायक है कि वह रूस का साथ दे अथवा अमेरिका का. चीन की एकपक्षीय आक्रामकता भारत को अमेरिका का साथ देने का दबाव बनाती है तो भू-रणनीतियां स्थितियां रूस का साथ देने का. अमेरिका हमारा मेजर स्ट्रैटेजिक पार्टनर है. दूसरी तरफ रूस भारत का परंपरागत स्ट्रैटेजिक साझीदार है. इसलिए भारत दोनों देशों के बीच संतुलन साधते हुए आगे बढ़ेगा.