रहीस सिंह का ब्लॉग: भारत से सौदेबाजी कर रहे अमेरिका और चीन!

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: July 28, 2019 12:35 PM2019-07-28T12:35:28+5:302019-07-28T12:35:28+5:30

अमेरिका इंडो-पैसिफिक के साथ-साथ फारस की खाड़ी में अपनी शक्ति की पुनप्र्रतिष्ठा चाहता है और उसे इन मोर्चो पर भारत की जरूरत है. ईरान मसले पर भारत आधा-अधूरा उसके साथ है और यही स्थिति इंडो-पैसिफिक में बने अलायंस की भी है.

Rahas Singh's blog: America and China are negotiating with India! | रहीस सिंह का ब्लॉग: भारत से सौदेबाजी कर रहे अमेरिका और चीन!

रहीस सिंह का ब्लॉग: भारत से सौदेबाजी कर रहे अमेरिका और चीन!

शु क्रवार यानी 26 जुलाई को चीन ने भी अमेरिकी सुर में सुर मिला दिया. चीनी विदेश मंत्रलय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने विदेश मंत्रलय की जनरल ब्रीफिंग के दौरान कहा कि भारत और पाकिस्तान, दोनों के पड़ोसी के रूप में चीन को पूरी उम्मीद है कि पाकिस्तान और भारत सद्भाव के साथ रह सकते हैं. हम उम्मीद करते हैं कि दोनों देश बातचीत के माध्यम से कश्मीर मुद्दे और अन्य द्विपक्षीय विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझा सकते हैं और दक्षिण एशिया में शांति व स्थिरता के लिए ठोस प्रयास कर सकते हैं.

यहां तक तो सब ठीक था लेकिन इसके बाद उन्होंने जो कहा वह भारत की विदेश नीति के लिए चुनौती से कम नहीं है. उन्होंने इस क्रम में दो बातें कहीं. प्रथम यह कि भारत और पाकिस्तान को शांति से कश्मीर मुद्दे और अन्य विवादों को बातचीत के माध्यम से सुलझाना चाहिए और दूसरी यह कि चीन भारत-पाक संबंधों को सुधारने के लिए ‘रचनात्मक भूमिका’ निभाने में अमेरिका सहित अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का समर्थन करता है.

सवाल यह उठता है कि भारत सरकार की तरफ से ट्रम्प के दावे का खंडन आने के बाद चीन ने यह हिमाकत कैसे कर दी? क्या वैश्विक शक्तियों का भारत के प्रति इस प्रकार का व्यवहार हमारी विदेश नीति के  समृद्घ और शक्तिशाली होने का संकेत है या फिर नि:शक्तता का? एक सवाल यह भी है कि आखिर अमेरिका और चीन ऐसी हरकत क्यों कर रहे हैं? हम क्या मानें कि भारत को अपनी विदेश नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए और आक्रामक विदेश नीति का अनुसरण करना चाहिए या फिर वह इसी र्ढे पर चलती रहे?

हम मानते हैं कि भारतीय विदेश नीति अपने मूलभूत सिद्घांतों से विचलित नहीं हुई है. हम यह भी मानते हैं कि हमारे प्रधानमंत्री ने अमेरिकी राष्ट्रपति से कश्मीर मुद्दे पर कुछ नहीं कहा होगा, लेकिन हमें यह तो सोचना चाहिए कि आखिर अमेरिकी राष्ट्रपति ने कश्मीर मुद्दे को क्यों चुना? क्या यह वक्त इस मुद्दे के लिए कोई विशेष महत्व रखता है? हमें यह सोचना चाहिए वह चीन जो अमेरिका से ट्रेड वॉर लड़ रहा है वह भी अमेरिकी सुर में सुर क्यों मिला रहा है?

इसकी वजह यह है कि हमने जिस फास्ट ट्रैक पॉलिसी का चुनाव किया था, उसकी समीक्षा नहीं की. हमने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर एक अलायंस तैयार कर लिया जिसका मुख्य लेकिन छुपा हुआ उद्देश्य है चीन को घेरना. वहीं दूसरी तरफ हम शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में भी पहुंच गए जिसे नाटो अपना प्रतिद्वंद्वी सैन्य गठबंधन मानता है. क्या हमने विरोधाभास को गंभीरता से देखा और क्या इसके परिणामों की समीक्षा की?

शायद नहीं. दूसरा पक्ष यह है कि हम अमेरिका के इतने करीब चले गए कि हमारा परंपरागत मित्र रूस हमारे साथ उसी तरह से खड़ा नहीं रह गया जैसे कि पहले खड़ा था. इस पूरे दौर में हम इस बात को लेकर बेहद आत्ममुग्ध हुए कि अमेरिका यह कह रहा है कि भारत उसका ‘मेजर डिफेंस पार्टनर’ है और अब 99 प्रतिशत अमेरिकी रक्षा प्रौद्योगिकियों तक भारत की पहुंच होगी. लेकिन हमने अमेरिकी थिंक टैंक के रिचर्ड ए़ रोसॉ की इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि अमेरिका द्वारा भारत को ‘मेजर डिफेंस पार्टनर’ कहना, टेक्निकल डेजिग्नेशन की अपेक्षा ‘टर्म ऑफ आर्ट’ अधिक है.

 हालांकि फास्ट ट्रैक पर कुछ दूर चलने के बाद ही भारत को पॉलिसी ऑफ रीसेट का सहारा लेना पड़ा और प्रधानमंत्री मोदी को चीन तथा रूस की अनौपचारिक यात्रएं करनी पड़ीं. लेकिन इसने संदेश दे दिया था कि भारत की विदेश नीति में शायद शक्ति और संतुलन की कमी है. चूंकि भारत में ऐसा थिंक टैंक नहीं है जो विदेश नीति की उचित समीक्षा कर सरकार को श्रेष्ठ सलाह दे सके इसलिए नकारात्मक चीजें बाहर नहीं आईं. सरकार ने शायद इसकी जरूरत भी नहीं समझी. गंभीरता से अध्ययन करें तो इस निष्कर्ष पर अवश्य पहुंचेंगे कि वैदेशिक और कूटनीतिक मोर्चे पर भारत को दो तरफ से चुनौतियां मिलनी हैं.

एक अमेरिका की तरफ से और दूसरी चीन की तरफ से. कारण यह है कि अमेरिका इंडो-पैसिफिक के साथ-साथ फारस की खाड़ी में अपनी शक्ति की पुनप्र्रतिष्ठा चाहता है और उसे इन मोर्चो पर भारत की जरूरत है. ईरान मसले पर भारत आधा-अधूरा उसके साथ है और यही स्थिति इंडो-पैसिफिक में बने अलायंस की भी है. वह चीन के साथ चल रहे ट्रेड वॉर में भी भारत का सहयोग चाहता है ताकि चीन को हराया जा सके.

लेकिन भारत इस मामले में अमेरिका के साथ नहीं जा पा रहा है, जाना भी नहीं चाहिए. ठीक इसी तरह से चीन भारत से रणनीतिक युद्ध लड़ रहा है. उसने भारत के चारों तरफ एक घेरा (डिफेंसिव बाउंड्री) तैयार कर लिया है जिसमें न केवल पाकिस्तान को बल्कि मालदीव, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार को भी शामिल कर लिया है. आज की स्थिति यह है कि मालदीव को छोड़कर शेष देश चीन के करीब या तो अधिक दिख रहे हैं या फिर चीन ने अपनी सॉफ्ट पॉवर डिप्लोमेसी के जरिए इन देशों में स्थायी पैठ बना ली है. 

कुल मिलाकर भारतीय विदेश नीति के सन्निकट जो स्थितियां निर्मित हुई हैं या हो रही हैं वे यही बताती हैं कि इनके बीच संतुलन बनाने के लिए भारत को कभी अमेरिका तो कभी चीन की ओर देखना पड़ेगा. इसी का फायदा उठाकर ये दोनों देश लव एंड हेट गेम के साथ-साथ सौदेबाजी का खेल खेलना चाहते हैं. 

Web Title: Rahas Singh's blog: America and China are negotiating with India!

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