प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: अमेरिका में चौड़ी होती नस्लीय भेदभाव की खाई

By प्रमोद भार्गव | Published: April 21, 2021 03:50 PM2021-04-21T15:50:35+5:302021-04-21T15:52:50+5:30

अमेरिका में नस्लीय हमलों के मामले हाल में काफी बढ़े हैं. ये दर्शाता है कि नस्लीय भेदभाव की खाई बढ़ रही है। ये चिंताजनक है।

Pramod Bhargava blog: Racial Discrimination in America | प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: अमेरिका में चौड़ी होती नस्लीय भेदभाव की खाई

अमेरिका में बढ़ रही है नस्लीय भेदभाव की खाई (प्रतीकात्मक तस्वीर)

अमेरिका के इंडियानापोलिस में 16 अप्रैल 2021 को हुए नस्लीय हमले में चार सिख समुदाय के लोग मारे गए हैं. नतीजतन भारतीय समुदाय में भय और अनिश्चितता का महौल है. 

इस घटना को अमेरिका में रहने वाले प्रवासी भारतीय मानकर चल रहे हैं कि यह हमला एशियाई मूल के लोगों और प्रवासियों के खिलाफ श्वेत अमेरिकी नागरिकों में पनप रही नस्लीय नफरत का परिणाम है. कोरोना फैलने के बाद अमेरिका में कालों पर गोरों द्वारा नस्लीय टिप्पणियों और हमलों की संख्या भी ज्यादा बढ़ गई है.

ओबामा जब अमेरिका के दूसरी बार राष्ट्रपति चुने गए थे तब यह बात उजागर हुई थी कि अमेरिका में नस्लीय भेदभाव बढ़ रहा है, क्योंकि 39 फीसदी गैर अमेरिकियों के वोट ओबामा को हासिल हुए थे. इनमें अफ्रीकी और एशियाई मुल्कों के लोग थे. 

मूल अमेरिकियों के केवल 20 फीसदी वोट ओबामा को मिले थे. यह इस बात की तसदीक थी कि अमेरिका में नस्लीय भेदभाव की खाई चौड़ी हो रही है और प्रशासन उसे नियंत्रित नहीं कर पा रहा है. 

अमेरिका में अश्वेतों के साथ इस हद तक बुरा बर्ताव रहा है कि उन्हें नागरिक अधिकारों के प्रति लंबा संघर्ष करना पड़ा, तब कहीं जाकर 1965 में अश्वेतों को गोरे नागरिकों के बराबर मताधिकार दिया गया. 

इस अधिकार के मिलने के बाद ही ओबामा का एक श्वेत राष्ट्र का राष्ट्रपति बनना संभव हुआ. बावजूद गोरों और कालों के बीच सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक असमानताएं बनी हुई हैं. जातीय भेद अमेरिका की कड़वी सच्चाई है. इसी वजह से गोरों की बस्तियों में अश्वेतों के घर बिरले ही मिलते हैं. 

अमेरिका में गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वाले लोग करीब 4.5 करोड़ हैं, इनमें से 80 फीसदी अश्वेत हैं. अभी भी अमेरिका में कुल जनसंख्या के बरक्स अश्वेतों की संख्या मात्न 15 फीसदी है. लेकिन वहां की जेलों में अपराधियों की कुल संख्या में 45 फीसदी कैदी अश्वेत हैं. यह अमेरिकी रंगभेद की बदरंग तस्वीर है. 

आज लगभग पूरी दुनिया में बाजारवादी सोच को बढ़ावा मिल रहा है. इस विस्तारवादी सोच की आड़ में बहुराष्ट्रवाद, राजनीतिक चेतना, समावेशी उपाय और सांस्कृतिक बहुलता पिछड़ते दिखाई दे रहे हैं. परिणामस्वरूप सामाजिक सरोकार और प्रगतिशील चेतनाएं हशिए पर धकेली जा रही हैं.  

अमेरिका और अन्य यूरोपीय मूल के लोगों में ही नहीं, एशियाई और दक्षिण व मध्य एशियाई मूल के लोगों में भी प्रतिरोध की यही धारणा पनप रही है. इन धारणाओं पर अंकुश कैसे लगे, इस परिप्रेक्ष्य में संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं को सोचने की जरूरत है.

Web Title: Pramod Bhargava blog: Racial Discrimination in America

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