पाकिस्तानः एक परमाणु शक्ति के हाथ में भीख का कटोरा, कुल जीडीपी का 84 फीसदी कर्ज
By राजेश बादल | Published: January 17, 2023 03:36 PM2023-01-17T15:36:50+5:302023-01-17T15:37:23+5:30
अमेरिकी डॉलर की कीमत 225 रुपए हो गई है। वाहन उद्योग, कपड़ा उद्योग और अन्य तमाम क्षेत्रों के कल-कारखानों में ताला पड़ा है। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के तो और भी बदतर हाल हैं। आटे का दस किलो का पैकेट 3000 रुपए में मिल रहा है। राशन कार्ड से गेहूं का वितरण ठप है। लोगों के भूखों मरने की नौबत आ चुकी है।
कौन यकीन कर सकता है? दशकों पहले जो मुल्क संसार में परमाणु शक्ति होने का दावा कर चुका था, वह आज वेंटिलेटर पर सांसों की गिनती कर रहा है। किसी भी देश के इतिहास में ऐसी नौबत नहीं आई है। पाकिस्तान में आ गई। अब प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ को शर्म आ रही है कि देश परमाणु शक्ति संपन्न है, सौ से अधिक परमाणु बम रखता है लेकिन नागरिकों का पेट भरने के लिए उन्हें दुनिया भर में भीख का कटोरा लेकर चक्कर लगाना पड़ रहा है। दोस्त और शुभचिंतक साथ छोड़ रहे हैं। आलोचकों की संख्या बढ़ती जा रही है। जिन ताकतवर राष्ट्रों ने उसके परमाणु कार्यक्रम को प्राणवायु प्रदान की, अब वे ही कन्नी काटने लगे हैं। अवाम अब अपनी किस्मत को कोस रही है।
शाहबाज शरीफ ने शनिवार को पाकिस्तानी फौज के कार्यक्रम में कहा कि हमें हर बार और हर जगह जाकर भीख मांगनी पड़ती है। आखिर कब तक हम कर्ज लेते रहेंगे। यह देश चलाने का सही तरीका नहीं है। इससे मुल्क सही दिशा में जाता नहीं लगता। अंततः कर्ज चुकाना भी पड़ेगा। स्पष्ट है कि शाहबाज का सेना के लिए संदेश क्या है। यही बात तो चला चली की बेला में इमरान खान भी कहने लगे थे। यानी दोनों नेताओं का निशाना इन दिनों फौज है, जिसने पाकिस्तान के जन्म से लेकर अभी तक अपने स्वार्थों से समझौता नहीं किया है। वह मुल्क की ऐसी मालिक बन बैठी है, जिसे प्रजा की कोई चिंता नहीं है। सेना की आड़ में आला अधिकारी निजी धंधे चला रहे हैं। फौज को पानी, बिजली और रोटी की समस्या नहीं है। इस तरह एक पाकिस्तान में दो पाकिस्तान बन गए हैं।
वहां के प्रधानमंत्री की हालिया यात्राओं का हाल जानना दिलचस्प होगा। वे दिसंबर-जनवरी में तीन राष्ट्रों की यात्रा पर गए थे। इनमें पुराना दोस्त सऊदी अरब भी है। उसने शाहबाज शरीफ और सेनाध्यक्ष आसिम मुनीर को पहले तो पांच अरब डॉलर की सहायता देने का भरोसा दिया, पर जब आमने-सामने बैठे तो पल्ला झाड़ लिया। उसने कहा कि दो अरब डॉलर तो पहले ही पाकिस्तान की इज्जत बचाने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार में जमा किए गए थे। अब अधिक से अधिक तीन अरब डॉलर डिपॉजिट की शक्ल में वह और दे सकता है। इससे अधिक नहीं। पाकिस्तान इसमें से एक पाई खर्च नहीं कर सकता और सऊदी अरब 36 घंटे के नोटिस पर पैसा वापस ले सकता है। यह गारंटी का पैसा है। पाकिस्तान को इसका ब्याज भी भरना पड़ेगा। तीन साल पहले भी सऊदी अरब के शहजादे पाकिस्तान आए थे। उन्होंने 10 अरब डॉलर की सहायता का वादा किया था। आज तक यह वादा पूरा नहीं हुआ। कमोबेश यही बात संयुक्त अरब अमीरात ने कही। यानी एक और पुराना मित्र मदद से मुकर गया।
इससे पहले शाहबाज शरीफ जिनेवा गए। वहां जलवायु शिखर सम्मेलन में उन्होंने बाढ़ की तबाही से उबरने के लिए 16 अरब डॉलर के लिए झोली फैलाई। सम्मेलन के सदस्य देशों ने उन्हें 10 अरब डॉलर की सहायता का भरोसा दिलाया। तब से महीना भर होने को आया, एक पैसा पाकिस्तान के खाते में नहीं पहुंचा। इस बीच जिनेवा सम्मेलन की अंतरकथा वहां के लोकप्रिय अखबार डॉन ने प्रकाशित कर दी। इसके मुताबिक शिखर बैठक में किसी मदद का वादा नहीं हुआ बल्कि इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक, एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर बैंक, वर्ल्ड बैंक और एशियन डेवलपमेंट बैंक ने 8.7 अरब डॉलर देने पर विचार करने की बात कही है, मगर यह दान नहीं, शर्तों पर आधारित कर्ज होगा। यह तीन साल तक किश्तों में मिलेगा। मय ब्याज के इसे चुकाना पड़ेगा। कलई खुलते ही सरकार बैकफुट पर आ गई। प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और कुछ अन्य मंत्री पत्रकारों के सामने पहुंचे और सफाई दी। उन्होंने मान लिया कि पैसा वास्तव में कर्ज है, कोई दान या खैरात नहीं। पाकिस्तान ने तो जिनेवा में बिना शर्त मदद मांगी थी। प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री ने चौंकाते हुए कहा कि कर्ज की शर्तें हमें नहीं पता। हम नहीं कह सकते कि कब तक ऋण का पैसा मिलेगा।
पाकिस्तान संभला भी नहीं था कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने एक बार फिर झटका दिया। उसने पाक सरकार का छह अरब डॉलर की मदद का आग्रह ठुकरा दिया। उसने प्रधानमंत्री से कहा था कि वह डीजल-पेट्रोल और ईंधन के दामों में बढ़ोत्तरी करें, तभी वह कर्ज की राशि जारी कर सकता है। मंशा यह थी कि बढ़ी कीमतों से ऋण राशि का ब्याज तो चुकाया जा सकेगा। लेकिन पाकिस्तान सरकार ने मजबूरी बताई। उसने कहा कि खस्ताहाल देश के लिए कीमतें बढ़ाना संभव नहीं होगा। इस तरह मुद्रा कोष की मदद भी खटाई में पड़ गई। अब देश की ताजा तस्वीर यह है कि विदेशी मुद्रा भंडार केवल 4.3 अरब डॉलर रह गया है। यह सिर्फ तीन सप्ताह तक आयात के लायक है। गेहूं, आटा-प्याज तक आयात नहीं हो सकता। बंदरगाहों पर जरूरी खाद्य सामग्री, दवाएं और जीवनोपयोगी वस्तुएं बंद पड़ी हैं। उनके भुगतान के पैसे नहीं हैं। सोयाबीन के जहाज महीनों से बंदरगाहों पर फंसे हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय ने आवश्यक दवाओं की आपूर्ति करने से हाथ खड़े कर दिए हैं। कुल जीडीपी का 84 फीसदी कर्ज हो चुका है। अमेरिकी डॉलर की कीमत 225 रुपए हो गई है। वाहन उद्योग, कपड़ा उद्योग और अन्य तमाम क्षेत्रों के कल-कारखानों में ताला पड़ा है। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के तो और भी बदतर हाल हैं। आटे का दस किलो का पैकेट 3000 रुपए में मिल रहा है। राशन कार्ड से गेहूं का वितरण ठप है। लोगों के भूखों मरने की नौबत आ चुकी है।
पाकिस्तान की यह स्थिति एक दिन में नहीं बनी है। जब इस पड़ोसी राष्ट्र का जन्म हुआ, उस समय हालात आज से कहीं बेहतर थे। लेकिन गलत नीतियों, भ्रष्टाचार,सेना के असीमित दखल और भारत विरोधी भावना ने पाकिस्तान की दुर्गति कर दी है।