शशांक द्विवेदी का ब्लॉग: जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप से सुलझेंगे अंतरिक्ष के अनेक रहस्य

By शशांक द्विवेदी | Published: January 28, 2022 10:49 AM2022-01-28T10:49:04+5:302022-01-28T10:53:27+5:30

जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप की तस्वीर वर्चुअल टेलीस्कोप प्रोजेक्ट में एक रोबोटिक यूनिट के द्वारा ली गई है। जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप को अंतरिक्ष में पृथ्वी की नई आंख कहा जाता है और पिछले 30 दिनों की यात्ना के बाद टेलीस्कोप धरती से 16 लाख 9 हजार 344 किमी की दूरी पर स्थिति अपनी कक्षा में पहुंचा है।

Many mysteries of space will be solved with the James Webb Space Telescope | शशांक द्विवेदी का ब्लॉग: जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप से सुलझेंगे अंतरिक्ष के अनेक रहस्य

शशांक द्विवेदी का ब्लॉग: जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप से सुलझेंगे अंतरिक्ष के अनेक रहस्य

Highlightsलैगरेंज प्वाइंट अंतरिक्ष में वे स्थितियां हैं जहां पिंडों को स्थिर स्थिति में रखा जा सकता है। लैगरेंज 2 की इस स्थिति से टेलीस्कोप पृथ्वी के साथ एक ही रेखा में बना रहेगा और वह पृथ्वी के हिसाब से ही सूर्य का चक्कर लगाता रहेगा। इतनी ऊर्जा खत्म करने पर अगले 10 सालों तक ये टेलीस्कोप काम करता रहेगा।

अपने प्रक्षेपण के एक महीने बाद दुनिया का सबसे शक्तिशाली जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप अंतरिक्ष में पृथ्वी से लगभग 16 लाख किमी दूर अपनी कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित हो गया है। नासा की रिपोर्ट के मुताबिक, रोम में वर्चुअल टेलीस्कोप प्रोजेक्ट 2.0 ने जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप की पहली छवि को कैप्चर किया है। लांचिंग के एक महीने की लंबी यात्ना के बाद जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप दूसरे लैगरेंज बिंदु (एल2) पर स्थापित हो गया है। सेकेंड़ लैगरेंज प्वाइंट पर स्थापित किए जाने से इसे अपने अन्वेषण कार्यो में बहुत ज्यादा फायदा होगा और वह कई संवेदनशील संकेतों को पकड़ पाने में सक्षम रहेगा। 

जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप की तस्वीर वर्चुअल टेलीस्कोप प्रोजेक्ट में एक रोबोटिक यूनिट के द्वारा ली गई है। जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप को अंतरिक्ष में पृथ्वी की नई आंख कहा जाता है और पिछले 30 दिनों की यात्ना के बाद टेलीस्कोप धरती से 16 लाख 9 हजार 344 किमी की दूरी पर स्थिति अपनी कक्षा में पहुंचा है। यानी अपनी कक्षा तक पहुंचने के लिए जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप ने हर दिन 53 हजार 644 किमी की यात्ना की है।

लैगरेंज प्वाइंट अंतरिक्ष में वे स्थितियां हैं जहां पिंडों को स्थिर स्थिति में रखा जा सकता है। इन स्थितियों में सूर्य और पृथ्वी जैसे दो विशाल भारों के गुरुत्व खिंचाव ऐसे होते हैं कि वह पिंड (टेलीस्कोप या उपग्रह) छोटे पिंड (यानी पृथ्वी) के साथ-साथ ही चलता है। इन अंतरिक्ष बिंदुओं पर यान या टेलीस्कोप को अपनी तुलनात्मक स्थिति बनाए रखने के लिए ईधन की जरूरत नहीं होती। लैगरेंज 2 की इस स्थिति से टेलीस्कोप पृथ्वी के साथ एक ही रेखा में बना रहेगा और वह पृथ्वी के हिसाब से ही सूर्य का चक्कर लगाता रहेगा। इससे उसको सूर्य से आने वाले ताप से भी सुरक्षा मिलती रहेगी। इस स्थिति को इटली-फ्रांस के गणितज्ञ जोसेफी-लुइस लैगरेंज के सम्मान में नाम दिया गया है।

नासा एडमिनिस्ट्रेटर कीथ पैरिश के मुताबिक, टेलीस्कोप को ऑर्बिट में बनाए रखने के लिए हर 21 दिनों पर वैज्ञानिक इसके थ्रस्टर्स को कुछ सेकेंड्स के लिए ऑन करेंगे। इतनी ऊर्जा खत्म करने पर अगले 10 सालों तक ये टेलीस्कोप काम करता रहेगा। हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि इस टेलीस्कोप में इतना ईधन है कि ये अगले 20 सालों तक काम कर सकता है। यह टेलीस्कोप ब्रह्मांड की सुदूर गहराइयों में मौजूद आकाशगंगाओं, एस्टेरॉयड, ब्लैक होल्स, ग्रहों, एलियन ग्रहों, सौर मंडलों आदि की खोज करेगा। ये आंखें मानव द्वारा निर्मित बेहतरीन वैज्ञानिक आंखें हैं। जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप की आंखें यानी गोल्डन मिरर की चौड़ाई करीब 21.32 फुट है। 

ये एक तरह के रिफ्लेक्टर हैं जो 18 षटकोण टुकड़ों को जोड़कर बनाए गए हैं। ये षटकोण बेरिलियम से बने हैं। हर षटकोण के ऊपर 48.2 ग्राम सोने की परत लगाई गई है। नासा के अनुसार टेलीस्कोप के लिए एक महीने की यात्ना ही सबसे कठिन थी जिसे उसने सही सलामत पूरा कर लिया है। उसके बाद उसके 18 षटकोण को एलाइन करके एक परफेक्ट मिरर बनाना दूसरी बड़ी चुनौती थी, ताकि उससे पूरी इमेज आ सके। एक भी षटकोण सही नहीं सेट हुआ तो इमेज खराब हो जाएगी।

नासा अब तक अंतरिक्ष की जानकारियां जुटाने के लिए हबल टेलीस्कोप का इस्तेमाल किया करता था और अब तक इंसानों ने अंतरिक्ष को लेकर जो भी जानकारियां जुटाई हैं, उनमें हबल टेलीस्कोप का बहुत बड़ा योगदान रहा है। लेकिन जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप, हबल टेलीस्कोप से कई गुना ज्यादा शक्तिशाली है। जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप को हबल टेलीस्कोप का उत्तराधिकारी माना जा रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह हबल टेलीस्कोप की जगह लेगा। नासा ने अप्रैल 1990 में अपने पहले अंतरिक्ष टेलीस्कोप हबल को अंतरिक्ष में स्थापित किया था। 

इस टेलीस्कोप की मदद से ही ब्रह्मांड की उम्र 13 से 14 अरब वर्ष के बीच आंकी गई थी। हालांकि 6 महीने पहले हबल स्पेस टेलीस्कोप ने अचानक काम करना बंद कर दिया था। अब जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप इसकी भरपाई करेगा। जेडब्ल्यूएचटी यानी जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप खगोलविदों को ब्रह्मांड में बनने वाली कुछ शुरुआती आकाशगंगाओं की खोज करने में मदद करेगा और हमें यह समझने में मदद करेगा कि कैसे हमारी अपनी आकाश गंगा जैसी आकाश गंगाएं अस्तित्व में आईं। यानी अरबों साल पहले क्या था, उसका पता जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप लगाएगा, इसीलिए इसे टाइम मशीन कहा जा रहा है।

Web Title: Many mysteries of space will be solved with the James Webb Space Telescope

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