सेना, चरमपंथ और इमरान के त्रिकोण पर नजर रखें
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: July 28, 2018 05:06 IST2018-07-28T05:06:06+5:302018-07-28T05:06:06+5:30
पाकिस्तान इस समय आर्थिक संकट के साथ-साथ आतंकवाद के संकट से भी गुजर रहा है। इसलिए उन्हें दोनों के बीच संतुलन बनाना होगा। संतुलन बनाने के लिए यह भी संभव है कि वे चरमपंथियों का सहयोग लें जो सेना की भी पसंद होगी।

सेना, चरमपंथ और इमरान के त्रिकोण पर नजर रखें
रहीस सिंह
पाकिस्तान में 25 जुलाई को संपन्न हुए आम चुनाव के जो नतीजे आए हैं, वे पूर्वापेक्षित और प्रत्याशित हैं। लेकिन जिस तरह से इमरान खान की तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी को सफलता हासिल हुई है वह अभी तक सर्वग्राही न बनी है और न ही बन पाएगी। ऐसा दो कारणों से है। एक- इमरान इसी तरह के नकारात्मक पिच के खिलाड़ी रहे हैं और नवाज के साथ उन्होंने एक मौलाना को लेकर सबसे पहले विरोध किया था या यूं कहें कि इस्लामाबाद की सरकार को सेना के इशारे पर मौलाना के साथ मिलकर हाइजैक करने की कोशिश की थी। स्वाभाविक है कि अब उसी तरह की प्रतिक्रिया उनके खिलाफ होगी। दूसरा पक्ष यह है कि इमरान की जीत के पीछे पाकिस्तान की फौज अहम भूमिका में रही। फौज यदि नवाज को और उनकी पार्टी को न्यायपालिका के जरिए न बिखेरती तो इमरान खान का रास्ता इतना आसान न होता।
पाकिस्तान इस समय आर्थिक संकट के साथ-साथ आतंकवाद के संकट से भी गुजर रहा है। इसलिए उन्हें दोनों के बीच संतुलन बनाना होगा। संतुलन बनाने के लिए यह भी संभव है कि वे चरमपंथियों का सहयोग लें जो सेना की भी पसंद होगी। इस स्थिति में इमरान डीप स्टेट या रियल स्टेट एक्टर (यानी सेना और आईएसआई) और नॉन स्टेट एक्टर (यानी चरमपंथी) के व्यूह का हिस्सा बनेंगे। चूंकि पहला भारत को दुश्मन नम्बर एक मानता है, दूसरा सनातन शत्रु और इमरान स्वयं भारत विरोधी मनोविज्ञान से सम्पन्न हैं, इसलिए भावी व्यवस्था भारत के समक्ष नई चुनौतियां उत्पन्न करेगी।
इमरान खान ने इसका संकेत चुनाव प्रचार के दौरान ही दे दिया है। उन्होंने नवाज शरीफ को इंडिया का एजेंट कहा क्योंकि उनका नजरिया भारत के प्रति सकारात्मक रहता था। 23 जुलाई को अपने एक भाषण में इमरान ने यह भी कहा था कि वे भारत के साथ शांति बनाए रखने पर ध्यान देंगे, इसके बाद भी जंग होती है तो भारत को ही ज्यादा नुकसान होगा।
यही नहीं इमरान ने यह भी कहा है कि मैं नवाज को दिखाऊंगा, मोदी को जवाब कैसे दिया जाता है। उन्होंने जीत के बाद भी जो वक्तव्य दिया उसमें चीन सबसे पहले और भारत सबसे बाद में है, यही पसंद फौज की भी है। इसलिए ऐसा लग रहा है कि पाकिस्तान में जो सेना चाहेगी वही होगा और सेना कभी भी भारत के साथ बेहतर संबंध नहीं चाहेगी। अब यदि इमरान खान सेना के इशारे पर चलते रहे तो सब कुछ ठीक रहेगा लेकिन यदि उन्होंने सेना द्वारा खींची लकीर से हटने की कोशिश की तो सेना उन्हें भी उसी जगह पहुंचा देगी जहां नवाज पहुंच गए हैं।
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