भारत से टकराने की गुस्ताखी करना महंगा पड़ेगा मालदीव को
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: January 9, 2024 11:03 AM2024-01-09T11:03:55+5:302024-01-09T11:14:44+5:30
मालदीव को सबक सिखाना जरूरी था। भारत के सख्त तेवर ने उसे घुटने के बल आने पर मजबूर कर दिया।
मालदीव को सबक सिखाना जरूरी था। भारत के सख्त तेवर ने उसे घुटने के बल आने पर मजबूर कर दिया। मालदीव की चीन समर्थक सरकार के तीन मंत्रियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस माह की शुरुआत में की गई लक्षद्वीप यात्रा पर कटाक्ष किया। यह न केवल हमारे प्रधानमंत्री और हमारे देश की गंभीर अवमानना थी बल्कि यह एक तरह से भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने की चेष्टा भी थी।
मालदीव सरकार को प्राकृतिक रूप से बेहद खूबसूरत लक्षद्वीप में प्रधानमंत्री मोदी का जाना और महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल के रूप में उसकी प्रशंसा करना नागवार गुजरा। उसके तीन मंत्रियों ने मोदी की यात्रा को लेकर गंभीर रूप से आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी। मोदी अपने देश में कहां जाते हैं, किसकी प्रशंसा करते हैं, यह भारत का आंतरिक मामला है।
भारत के किसी हिस्से में कितने पर्यटक जाते हैं और वहां कितनी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध हैं, यह भी भारत का आंतरिक मामला है। भारत से किसी भी मामले में मालदीव अपनी तुलना ही नहीं कर सकता। अरब सागर में बसा मालदीव एक छोटा सा मगर सामरिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण देश है लेकिन वहां शासन कर रही मोहम्मद मोइज्जू की सरकार यह भूल रही है कि उसके देश का अस्तित्व बहुत कुछ भारत पर निर्भर करता है।
जब-जब मालदीव पर कोई संकट आया, चीन नहीं भारत उसके साथ खड़ा रहा। यह भारत ही है, जिसके सहयोग के कारण मालदीव अब तक चीन का आर्थिक गुलाम बनने से बचा हुआ है। पिछले साठ सालों से भी ज्यादा समय से मालदीव को भारत राजनीतिक, सैनिक और आर्थिक सहायता प्रदान करता आया है।
चीन जहां सामरिक रूप से महत्वपूर्ण छोटे देशों को कर्ज के जाल में फांसता जा रहा है, वहीं भारत मालदीव, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार, मारीशस, भूटान जैसे देशों की नेकनीयत से मदद करता आया है। इन तमाम देशों पर जब कभी प्राकृतिक, आर्थिक या अन्य किसी तरह का बाहरी या आंतरिक संकट आया, भारत ने नि:स्वार्थ भाव से उनकी सहायता की।
मालदीव में अस्सी के दशक में जब चीन के इशारे पर तत्कालीन अब्दुल कयूम की सरकार का तख्ता पलटने की साजिश हुई थी, तब भारत ने तत्काल हस्तक्षेप कर इस देश को राजनीतिक उथल-पुथल से बचाया था। तीन साल पहले भारत ने मालदीव में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 50 करोड़ डॉलर की सहायता देने की घोषणा की थी। चीन समर्थक ताकतों को भारत की मालदीव के प्रति उदार नीति रास नहीं आई और उन्होंने ‘इंडिया आउट’ अभियान मालदीव में शुरू कर दिया।
वर्तमान सरकार भी ‘इंडिया आउट’ अभियान की समर्थक और पोषक है। उसका झुकाव चीन की ओर है। मालदीव की अर्थव्यवस्था पूरी तरह पर्यटन पर निर्भर है और चीन उसकी इस कमजोरी का फायदा उठाकर उसे भी कर्ज के जाल में फंसाने की साजिश रच रहा है। चीन अपनी इस साजिश के तहत मालदीव में भारत विरोधी भावनाएं भड़का रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी की लक्षद्वीप यात्रा पर मालदीव सरकार के तीन मंत्रियों का कटाक्ष चीन के इशारे पर हुआ है। मालदीव की प्रतिक्रिया अपने हाथों अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने की कहावत को चरितार्थ करती है। मालदीव को सबसे ज्यादा आमदनी भारतीय पर्यटकों से होती है। अब भारत में ‘बायकाट मालदीव’ अभियान शुरू हो गया है।
हजारों भारतीयों ने मालदीव जाने की योजना रद्द कर दी है और मालदीव को जवाब देने के लिए वे लक्षद्वीप का रुख करने लगे हैं। भारतीयों के बहिष्कार से मालदीव का पर्यटन उद्योग ध्वस्त हो सकता है जिसका सीधा असर इस छोटे से देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। भारत ने अगर अपना रुख और कड़ा कर दिया तथा असहयोग का रास्ता अपना लिया तो चीन भी मालदीव को बर्बाद होने से बचा नहीं सकता।
भारत की क्षमताएं तथा संसाधन अपार हैं। मालदीव जैसे कई खूबसूरत द्वीप भारत के पास हैं जहां हर वर्ष लाखों नहीं, करोड़ों सैलानी आते हैं। वे भारत के पर्यटन स्थलों पर उपलब्ध बुनियादी सुविधाओं तथा आवभगत से बहुत संतुष्ट हैं। समुद्र ही नहीं भारत के पहाड़, रेगिस्तान और नदी तट, जंगल, झरने, झीलें तथा ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक स्थल दुनियाभर में आकर्षण का केंद्र हैं।
मालदीव में जितने पर्यटक सालभर में आते हैं, उससे अधिक सैलानी भारत में लक्षद्वीप, अंडमान निकोबार के समुद्री तटों का आनंद लेने आते हैं। मालदीव को जमीनी हकीकत समझना चाहिए। भारत से किसी भी प्रकार का टकराव उसके हित में नहीं है। भारत के स्वाभिमान पर चोट कर वह अपने अस्तित्व पर चोट करने की गलती कर रहा है।