Israel Hezbollah iran War: तीसरे विश्वयुद्ध की ओर बढ़ रहा मध्य-पूर्व?

By रहीस सिंह | Updated: October 10, 2024 05:29 IST2024-10-10T05:29:45+5:302024-10-10T05:29:45+5:30

Israel Hezbollah iran War: ईरान के प्रॉक्सी से निरंतर युद्ध करके इजराइल खुद को थका डालने का रिस्क ले रहा है?

Israel Hezbollah iran War Middle East heading towards Third World War blog Rahees Singh | Israel Hezbollah iran War: तीसरे विश्वयुद्ध की ओर बढ़ रहा मध्य-पूर्व?

इजराइल-अमेरिका

Highlightsइजराइल को लें तो सवाल यह उठता है कि इजराइल का असली दुश्मन कौन है?असली दुश्मन हिजबुल्ला और हमास नहीं हैं बल्कि ईरान है. लेबनान में हिजबुल्ला, गाजा में हमास और यमन में हूती की तरह उसका हाथ है.

Israel Hezbollah iran War: ईरान और इजराइल सधा हुआ युद्ध लड़ना चाहते हैं अथवा वे युद्ध के साथ बचने के रास्ते भी तलाश रहे हैं? क्या इस निष्कर्ष पर पहुंचना थोड़ी जल्दबाजी होगी कि मध्य-पूर्व का टकराव तीसरे विश्वयुद्ध में बदल सकता है? पिछले दिनों इजराइली प्रधानमंत्री ने यूएन जनरल असेंबली में कहा था कि लक्ष्य पूरा होने तक हमले जारी रहेंगे. दूसरी तरफ ईरान के विषय में अभी यह पूरी तरह से तय नहीं है कि वह सीधे लड़ेगा अथवा प्रॉक्सी युद्ध को और अधिक ताकत देगा. हालांकि उसका सीधे लड़ना मुश्किल होगा क्योंकि सैन्य इनवेजन के जरिए वह लड़ नहीं सकता और हवाई युद्ध में वह इजराइल के सामने टिक नहीं पाएगा. ऐसी स्थिति में अभी किन्हीं परिणामों तक पहुंचना जल्दबाजी होगी. दूसरी तरह इजराइल को लें तो सवाल यह उठता है कि इजराइल का असली दुश्मन कौन है?

असली दुश्मन हिजबुल्ला और हमास नहीं हैं बल्कि ईरान है. जैसा कि कभी इजराइली प्रधानमंत्री बेनेट कह चुके हैं कि तेहरान ऑक्टोपस का सिर है तो लेबनान में हिजबुल्ला, गाजा में हमास और यमन में हूती की तरह उसका हाथ है. तो ऐसा तो नहीं है कि ईरान के प्रॉक्सी से निरंतर युद्ध करके इजराइल खुद को थका डालने का रिस्क ले रहा है?

वैसे इजराइल ने दक्षिणी लेबनान में सैन्य इनवेजन शुरू कर दिया है, यह संभवतः उसके हित में नहीं होगा. ठीक वैसे ही जैसे कि वियतनाम युद्ध अमेरिका के हित में नहीं रहा था. हालांकि इजराइल एयर स्ट्राइक्स को हिजबुल्ला के रॉकेट और मिलिट्री स्टैब्लिशमेंट को ध्वस्त करने के लिए जरूरी मानता है, जो है भी क्योंकि हिजबुल्ला लेबनानी नागरिकों को ‘ह्यूमन शील्ड’ की तरह इस्तेमाल कर रहा है.

वह अपने मिसाइल और रॉकेट्स को इनके यहां छुपा कर अटैक करता है. लेकिन ईरान इसे इजराइल द्वारा किया गया ‘मास मर्डर’ मानता है जिसका बदला लेने के लिए वह प्रतिबद्ध है. वह इजराइल को कई बार चेतावनी दे चुका है कि वह रेड लाइन क्रॉस कर चुका है. अब देखना यह है कि वह इजराइल के खिलाफ ‘ऑल आउट वार’ का चुनाव करता है या फिर प्रॉक्सी वॉर के जरिए ही आगे बढ़ेगा?

यह सवाल बार-बार आता है कि युद्ध के नतीजे किसके पक्ष में जाएंगे? प्रथमदृष्टया तो इजराइल उत्तर आता है. पिछले नतीजे देखें तो इजराइल ने डिफेंस स्ट्रैटेजी, रियल टाइम इंटेलिजेंस और रियल टाइम टारगेट, रणनीति के जरिए हमास और हिजबुल्ला पर बड़ी विजय प्राप्त करने में सफलता पाई है. ध्यान रहे कि 1992 से 2006 के बीच नसरल्ला और हिजबुल्ला की प्रगति को देखते हुए इजराइल ने यह समझ लिया था कि हिजबुल्ला को खत्म करना आसान नहीं है. इसलिए उसने हिजबुल्ला को कमजोर करने के लिए उसके कमांडरों को मारने की रणनीति अपनाई.

यह एक लंबी रणनीति थी जिसे आप ‘मोइंग द ग्रास स्ट्रैटेजी’ नाम दे सकते हैं. इजराइल सतत रूप से इस पर कार्य करता रहा जिसमें रियल टाइम इंटेलिजेंस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इसका सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण पेजर बम है जिसमें लगभग 3000  हिजबुल्ला लड़ाके घायल हुए. इसी की वजह से इजराइल ‘रियल टाइम टारगेट’ रणनीति में सफल हुआ और 27 सितंबर को बेरूत में बम गिराकर नसरल्ला को मारने में सफल रहा. अब देखना होगा कि ईरान की फॉरवर्ड डिफेंस डॉक्ट्रिन और इजराइल की बेगन डॉक्ट्रिन में कौन सी ज्यादा बेहतर परिणाम लाएगी.

उल्लेखनीय है कि 1979 की इस्लामी रिवोल्यूशन के बाद ईरान में स्थापित इस्लामी स्टैब्लिशमेंट ने इजराइल को ‘इललेजिटिमेट जाइनिस्ट रेजीम’ माना और उसके खिलाफ एक प्रॉक्सी युद्ध आरंभ करने के लिए हिजबुल्ला और हमास जैसे लड़का समूहों को स्थापित किया जो उसकी ‘फारवर्ड डिफेंस डॉक्ट्रिन’ का परिणाम थे.

यह डॉक्ट्रिन कहती है कि आप अपने पॉवर को बॉर्डर्स के बाहर कैसे इस्तेमाल करें, वह भी बिना प्रत्यक्ष युद्ध अथवा टकराव के. इस तरह से ईरान ने प्रॉक्सी का निर्माण किया. इसी दौर में ईरान ने न्यूक्लियर प्रोग्राम शुरू कर मध्य-पूर्व में न्यूक्लियर ताकत बनने की कोशिश की. इजराइल यह अच्छी तरह से जानता था कि ईरान यदि अपने इस मिशन में सफल हो गया तो वह इजराइल को बहुत नुकसान पहुंचाएगा.

महत्वपूर्ण बात यह है कि सुन्नी दुनिया के देश भी यह नहीं चाहते थे कि ईरान एक न्यूक्लियर पॉवर बने इसलिए इजराइल ने ‘बेगन डॉक्ट्रिन’ की शुरुआत की जिसका उद्देश्य था अपने आसपास के देशों में ‘मॉस डिस्ट्रक्शन’ यानी न्यूक्लियर हथियारों के निर्माण संबंधी गतिविधियों को रोकना. इस दृष्टि से ईरान और इजराइल दोनों ही अपने मकसद में कामयाब रहे.

इसके बावजूद, इजराइल एक तरफ हिजबुल्ला, दूसरी तरफ हमास और तीसरी तरफ हूती और ईरान से घिरा हुआ है. पहली तीनों शक्तियां इजराइल को लगातार टक्कर दे रही हैं. यह कुछ तालिबानियों जैसा ही है जिनके गुरु ने कभी कहा था कि हम अमेरिका को हरा नहीं सकते लेकिन थका सकते हैं. कमोबेश तालिबान जैसा स्ट्रक्चर हिजबुल्ला का भी है.

यह बिखरा हुआ है लेकिन इसकी अपनी मिलिट्री स्ट्रेंथ है जो इजराइल से लंबे समय तक लड़ सकती है. उसके पास बड़ी संख्या में प्रशिक्षित लड़ाके हैं. उसके पास बड़े पैमाने पर रॉकेट और मिसाइलें हैं, बंकर्स और डिफेंस सिस्टम्स है. हम कह सकते हैं कि यह दुनिया का सबसे बड़ा नान स्टेट एक्टर है. फिर तो इजराइल के लिए भी यह लड़ाई आसान नहीं होगी.

यदि इसे अंतिम परिणामों तक पहुंचाने के लिए अमेरिका कूदता है तो फिर संभव है कि इसमें ऐसे आयाम जुड़ें कि लड़ाई विश्वयुद्ध में बदल जाए. जो भी हो, आज स्थिति यह है कि मिडिल ईस्ट की दो प्रमुख शक्तियां आमने-सामने आ चुकी हैं, प्रॉक्सी पीछे छूटता हुआ दिख रहा है, मध्य पूर्व धीरे-धीरे तीसरे विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि निर्मित करता हुआ दिख रहा है. फिर भी अभी ऐसे निष्कर्ष तक पहुंचना मुश्किल होगा कि दुनिया का सामना जल्द ही तीसरे विश्वयुद्ध से होगा.

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