शोभना जैन का ब्लॉगः अमेरिका में समानता के लिए व्यापक सामाजिक सुधार जरूरी

By शोभना जैन | Updated: June 6, 2020 09:07 IST2020-06-06T09:07:39+5:302020-06-06T09:07:39+5:30

फ्रांस की राजधानी पेरिस से लेकर ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड, अर्जेंटीना, कनाडा सहित अनेक देशों में लोग ‘मैं सांस नहीं ले पा रहा’ की तख्तियां लेकर सड़कों पर उतरे और विरोध प्रदर्शन किया. विरोध प्रदर्शन अमेरिका के 40 से अधिक राज्यों में पहुंच गया है.

george floyd death: Comprehensive social reform is necessary for equality in America | शोभना जैन का ब्लॉगः अमेरिका में समानता के लिए व्यापक सामाजिक सुधार जरूरी

अमेरिका में अफ्रीकी अमेरिकी जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद प्रदर्शन। (फाइल फोटो)

नस्लभेदी अन्याय को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहे अमेरिका में अफ्रीकी अमेरिकी जॉर्ज फ्लॉयड के पुलिस बर्बरता में मारे जाने से अमेरिका में न केवल अफ्रीकी अमेरिकियों का जनसैलाब बल्कि विशेष तौर पर युवा श्वेत अमेरिकियों का गुस्सा भी उबाल पर है. अमेरिका के मिनीपोलिस में  गत 25 मई को पुलिस की हिरासत में फ्लॉयड की बर्बर मौत के विरोध की आग से जहां अमेरिका में आक्रोश, विरोध प्रदर्शन   थमने  का नाम नहीं ले रहे हैं, वहीं ये गुस्सा अब दुनिया भर में पहुंच चुका है. 

फ्रांस की राजधानी पेरिस से लेकर ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड, अर्जेंटीना, कनाडा सहित अनेक देशों में लोग ‘मैं सांस नहीं ले पा रहा’ की तख्तियां लेकर सड़कों पर उतरे और विरोध प्रदर्शन किया. विरोध प्रदर्शन अमेरिका के 40 से अधिक राज्यों में पहुंच गया है. अनेक शहरों में कर्फ्यू के बावजूद विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, हालांकि शुरुआती लूटमार और आगजनी की घटनाओं के बाद छिटपुट घटनाओं को छोड़ कर प्रदर्शन कुल मिलाकर शांतिपूर्ण रहे हैं. एक पुलिस कर्मी द्वारा बर्बरता से फ्लॉयड की गर्दन को लगभग नौ मिनट तक दबाए रखे जाने से वह मर गया. 

फ्लॉयड के उस वीडियो के वायरल होने से लोगों का आक्रोश फूट पड़ा जिसमें वह घुटने से अपनी गर्दन दबाने वाले पुलिस कर्मी से घुटना हटाने की मिन्नत कर रहा है. ‘मैं सांस नहीं ले पा रहा हूं’, अब यही वाक्य प्रदर्शनकारियों का नस्लभेद के खिलाफ नारा बन गया है. अलग-अलग शहरों में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच जहां झड़पें हुर्इं और हो रही हैं वहीं अच्छी बात यह रही है कि अनेक स्थानों पर पुलिस प्रदर्शनकारियों से उसी मुद्रा में घुटने दबाकर माफी मांगती नजर आई, गले मिलती नजर आई, लेकिन दूसरी तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के प्रदर्शनकारियों  से शांति बनाए रखने  की अपील के बजाय उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई किए जाने और सेना बुलाने की चेतावनी से प्रदर्शनकारी और भड़क गए. वै

से ट्रम्प के प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सेना के इस्तेमाल की चेतावनी का वहां के पूर्व रक्षा सचिव सहित उच्च सैन्य कमांडरों ने विरोध किया है. इसी बीच एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में व्हाइट हाउस के बाहर प्रदर्शनकारियों से निपटने के लिए सेना को तैनात किए जाने के फैसले से अमेरिका की रक्षा सचिव केस्पर ने भी खुद को अलग कर लिया है. बहरहाल फौरी कदम उठाते हुए अमेरिकी प्रशासन ने दोषी चारों पुलिस कर्मियों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर कड़ी कार्रवाई किए जाने की घोषणा की है, लेकिन जिस तरह से दशकों से अफ्रीकी अमेरिकी अन्याय और अपने लिए पूरी तरह से समान व्यवस्था की गुहार लगातार करते रहे हैं, उसे देखते हुए इस जनांदोलन को सख्ती से दबाने के बजाय वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है कि लोकतांत्रिक संस्थानों की धज्जियां उड़ाकर बार-बार नस्लभेदी अन्याय की सुर्खियों में आते रहे अमेरिका में ऐसे सुधार लाए जाएं जिससे व्यवस्था सही मायने में समानता वाली व्यवस्था कही जा सके.

दरअसल इन प्रदर्शनों में अफ्रीकी अमेरिकियों और अन्य नस्लों के लोगों के अलावा बड़ी तादाद में युवा अमेरिकी भी हिस्सा ले रहे हैं और न्याय और समानता, पुलिस के निष्पक्ष बर्ताव की मांग कर रहे हैं. इनमें छात्र भी शामिल हैं. इनका कहना है कि पुलिस ऐसा कैसे कर सकती है? हम सिर्फ इसलिए चुप नहीं बैठ सकते क्योंकि हम श्वेत हैं, आखिर सांस लेने का हक तो सबको है.  

समय-समय पर अमेरिका में व्याप्त नस्लभेद के खिलाफ जन-आंदोलन होते रहे हैं. इन प्रदर्शनों  से जाहिर होता है कि इस बार के प्रदर्शन बहुत गंभीर हैं. वैसे भी यह वर्ष अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों का वर्ष है. 4 नवंबर को मतदान होना है और 20 नवंबर को नए राष्ट्रपति शपथ ग्रहण करेंगे. ट्रम्प दूसरी बार राष्ट्रपति बनने की तगड़ी दावेदारी कर रहे हैं, ऐसे में उनका अब रवैया क्या रहता है, कड़ी चुनावी टक्कर में इस पर बहुत कुछ उनकी रिपब्लिकन पार्टी की चुनाव संभावनाएं निर्भर करेंगी.

दुनिया भर में कोरोना महामारी का सबसे ज्यादा शिकार अमेरिका  इस वक्त भयंकर मंदी के दौर में है. दुनिया के अन्य देशों की तरह इस विकसित राष्ट्र तक में बेरोजगारी चरम पर है. ऐसे में नस्लभेदी अन्याय के चलते हो रहे विरोध प्रदर्शनों ने हालात और विषम कर दिए हैं. कोरोना से प्रभावी तरीके से नहीं निपटने को लेकर और वैसे भी प्रशासन संबंधी अपने तौर-तरीके,  फैसलों को लेकर ट्रम्प पहले से ही आरोपों के घेरे में हैं और अब इस विषम स्थिति को लेकर खास तौर पर उनके एक के बाद एक आक्रामक ट्वीट्स ने माहौल और बदतर कर दिया है. वे इन तौर-तरीकों की वजह से अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं. बहरहाल इस नाजुक वक्त में  जरूरत है कि अमेरिकी समाज में समान व्यवस्था कायम करने के लिए फौरन संस्थागत सुधार किए जाएं. 

Web Title: george floyd death: Comprehensive social reform is necessary for equality in America

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