ब्लॉग: भारत, अमेरिका और यूरोपीय राष्ट्रों में क्या खरा लोकतंत्र है?
By वेद प्रताप वैदिक | Published: December 13, 2021 09:23 AM2021-12-13T09:23:35+5:302021-12-13T09:27:52+5:30
यह तो ठीक है कि रूस और चीन जैसे दर्जनों राष्ट्रों में पश्चिमी शैली का लोकतंत्र नहीं है लेकिन मूल प्रश्न यह है कि भारत, अमेरिका और यूरोपीय राष्ट्रों में क्या खरा लोकतंत्र है?
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने विश्व लोकतंत्र सम्मेलन आयोजित किया, जिसमें दुनिया के लगभग 100 देशों ने भाग लिया लेकिन इसमें रूस, चीन, तुर्की, पाकिस्तान और म्यांमार जैसे कई देश गैर-हाजिर थे.
कुछ को अमेरिका ने निमंत्रित ही नहीं किया और पाकिस्तान उसमें जान-बूझकर शामिल नहीं हुआ, क्योंकि उसका जिगरी दोस्त चीन उसके बाहर था.
लोकतंत्र पर कोई भी छोटा या बड़ा सम्मेलन हो, वह स्वागत योग्य है लेकिन हम जानना चाहेंगे कि उसमें कौन-कौन से मुद्दे उठाए गए, उनके क्या-क्या समाधान सुझाए गए और उन्हें लागू करने का संकल्प किन-किन राष्ट्रों ने प्रकट किया.
यदि इस पैमाने पर इस महासम्मेलन को नापें तो निराशा ही हाथ लगेगी, खास तौर से अमेरिका के संदर्भ में पहला सवाल तो यही होगा कि बाइडेन ने यह सम्मेलन क्यों आयोजित किया? उनके पहले किसी अमेरिकी राष्ट्रपति को इतनी अच्छी बात क्यों नहीं सूझी?
इसका कारण साफ है. बाइडेन से राष्ट्रपति के चुनाव में हारने वाले डोनाल्ड ट्रम्प अभी तक यही प्रचार कर रहे हैं कि बाइडेन की जीत ही अमेरिकी लोकतंत्र की हत्या थी. उनका कहना है कि राष्ट्रपति का चुनाव भयंकर धांधली के अलावा कुछ नहीं था. इस प्रचार की काट बाइडेन के लिए जरूरी थी.
लोकतंत्र का झंडा उठाने का दूसरा बड़ा कारण चीन और रूस थे. दोनों राष्ट्रों से अमेरिका की काफी तनातनी चल रही है. यूक्रेन को लेकर रूस को और प्रशांत महासागर, ताइवान आदि को लेकर चीन को लोकतंत्र का दुश्मन बताकर अमेरिका अपने नए शीत युद्ध को बल प्रदान करना चाहता है.
यह तो ठीक है कि रूस और चीन जैसे दर्जनों राष्ट्रों में पश्चिमी शैली का लोकतंत्र नहीं है लेकिन मूल प्रश्न यह है कि भारत, अमेरिका और यूरोपीय राष्ट्रों में क्या खरा लोकतंत्र है?
बाइडेन ने अपने भाषण में चुनावों की शुद्धता, तानाशाही शासनों के विरोध, स्वतंत्र न्यायपालिका और मानव अधिकारों की रक्षा पर जोर दिया और हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्रिप्टोकरेंसी और इंटरनेट पर चलने वाली अराजकता को रेखांकित किया.
यहां सवाल यही है कि क्या इन सतही मानदंडों पर भी भारत और अमेरिका के लोकतंत्र खरे उतरते हैं? एक दुनिया का सबसे बड़ा और दूसरा दुनिया का सबसे शक्तिशाली लोकतंत्र है. क्या हमारे लोकतांत्रिक देशों में हर देशवासी को जीवन जीने की न्यूनतम सुविधाएं उपलब्ध हैं?
क्या यह सत्य नहीं है कि दोनों देशों में करोड़पतियों व कौड़ी पतियों की संख्या बढ़ती जा रही है? जिस दिन हमारे नौकरशाहों और नेताओं में सेवा-भाव दिखाई पड़ेगा, उसी दिन सच्चा लोकतंत्र आ जाएगा.