ब्लॉगः पाकिस्तान में सेना के लिए बड़ा झटका, पहली बार फौज के विरोध में सड़कों पर उतरी अवाम

By राजेश बादल | Updated: May 16, 2023 12:27 IST2023-05-16T12:25:46+5:302023-05-16T12:27:23+5:30

अब अपने इसी हीरो से पाकिस्तान के आम नागरिक का मोहभंग हो रहा है। नागरिकों ने देख लिया है कि सेना उसकी समस्याओं का समाधान करने में नाकाम रही है। देश में महंगाई चरम पर है, बेरोजगारी बढ़ती जा रही है, आतंकवादी वारदातें कम नहीं हो रही हैं, उद्योग-धंधे चौपट हैं, सारे विश्व में पाकिस्तान की किरकिरी हो रही है और यह देश दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गया है।

Blog Pakistan for the first time people took to the streets to protest against army | ब्लॉगः पाकिस्तान में सेना के लिए बड़ा झटका, पहली बार फौज के विरोध में सड़कों पर उतरी अवाम

ब्लॉगः पाकिस्तान में सेना के लिए बड़ा झटका, पहली बार फौज के विरोध में सड़कों पर उतरी अवाम

दो गुट हैं। एक तरफ फौज और शाहबाज शरीफ की गठबंधन सरकार है। दूसरी ओर सर्वोच्च न्यायालय तथा पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी। इन दो पाटों के बीच पिस रही है आम अवाम। पर इस बार लोग सेना से तंग आकर पूरी तरह लोकतंत्र चाहते हैं। पहले फौज और इमरान खान की सरकार एकजुट थी तो नवाज शरीफ के मामले आला अदालत में थे। उस समय भी उनकी पार्टी सुप्रीम कोर्ट के सामने धरने पर बैठी थी। अब न्यायपालिका का पलड़ा इमरान खान के पक्ष में झुका है तो सरकार न्यायपालिका के रवैये के खिलाफ धरने पर बैठी है। सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी को गैरकानूनी बताते हुए उनको रिहा करने के आदेश दिए थे। इमरान खान के खिलाफ पद पर रहते हुए मिले तोहफों की हेराफेरी के आरोप हैं। यह अलग बात है कि इमरान खान के पार्टी कार्यकर्ता देश भर में हिंसा और उपद्रव कर रहे हैं। इस हिंसा में अनेक जानें जा चुकी हैं। लेकिन इन सबके पीछे सकारात्मक बात यह है कि पहली बार पाकिस्तानी जनता का अपनी ही सेना से मोहभंग हुआ है। लोग जान की परवाह न करते हुए फौज के विरोध में सड़कों पर उतर आए हैं। सेना के लिए यह बड़ा झटका है।  

सवाल यह है कि क्या इस तरह सेना का बैकफुट पर जाना पाकिस्तान के भविष्य के लिए बेहतर है। इस देश ने जब से दुनिया के नक्शे में आकार लिया, तब से कुछ अपवाद छोड़कर फौज ही उस पर हुकूमत करती रही है। उसने न तो लोकतंत्र पनपने दिया और न निर्वाचित सरकारें उसके इशारे के बिना ढंग से राज कर पाई हैं। संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की अत्यंत संक्षिप्त सी पारी छोड़ दें तो कोई भी राजनेता सेना के साथ तालमेल बिठाकर ही काम कर पाया  है। हालांकि अंतिम दिनों में जिन्ना भी अपनी छवि में दाग लगने से नहीं रोक पाए थे। उनको उपेक्षित और हताशा भरी जिंदगी जीनी पड़ी थी। वे अवसाद में चले गए थे। फौज शनैः शनैः निरंकुश होती गई और उसके अफसर अपने-अपने धंधे करते रहे। छवि कुछ ऐसी बनी कि यह मुहावरा प्रचलित हो गया कि विश्व के देशों की हिफाजत के लिए सेना होती है, लेकिन एक सेना ऐसी है, जिसके पास पाकिस्तान नामक एक देश है। जाहिर है कि सेना निरंकुश और क्रूर होती गई है।

यह फौज जुल्फिकार अली भुट्टो को प्रधानमंत्री भी बनवाती है और सरेआम फांसी पर भी लटकाती है, बहुमत से चुनाव जीतने के बाद भी बंगबंधु शेख मुजीब उर रहमान को जेल में डाल सकती है और अपने पागलपन तथा वहशी रवैये से मुल्क के दो टुकड़े भी होने दे सकती है। बेनजीर भुट्टो की हत्या भी ऐसी ही साजिश का परिणाम थी। कारगिल में घुसपैठ कराके अपनी किरकिरी कराने वाली भी यही फौज है। यानी इस सेना को जम्हूरियत तभी तक अच्छी लगती है, जब तक हुक्मरान उसके इशारों पर नाचते रहें। देश का पिछड़ापन और तमाम गंभीर मसले उसे परेशान नहीं करते। वह यह भी जानती है कि हजार साल तक साझा विरासत के साथ रहते आए लोग जब तक हिंदुस्तान से नफरत नहीं करेंगे, तब तक उसकी दुकान ठंडी रहेगी। इसलिए वह जब तब कोशिश करती है कि भारत और पाकिस्तान की अवाम के दिलों में एक-दूसरे के प्रति नफरत और घृणा बनी रहे। काफी हद तक उसके ऐसे प्रयास कारगर भी रहे और मुल्क का एक वर्ग फौज को अपना नायक मानता रहा।

अब अपने इसी हीरो से पाकिस्तान के आम नागरिक का मोहभंग हो रहा है। नागरिकों ने देख लिया है कि सेना उसकी समस्याओं का समाधान करने में नाकाम रही है। देश में महंगाई चरम पर है, बेरोजगारी बढ़ती जा रही है, आतंकवादी वारदातें कम नहीं हो रही हैं, उद्योग-धंधे चौपट हैं, सारे विश्व में पाकिस्तान की किरकिरी हो रही है और यह देश दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गया है। इमरान और शाहबाज शरीफ कल भी फौज की कठपुतली थे, आज भी हैं और कल भी रहेंगे। आज यदि सेना इमरान को प्रधानमंत्री बना दे तो वे फिर फौज के गीत गाने लगेंगे और शाहबाज शरीफ को सेना गद्दी से उतार दे तो वे उसके खिलाफ धरने पर बैठ जाएंगे। 

तात्पर्य यह है कि हुक्मरानों और सेना से जनता त्रस्त हो चुकी है। फौज के खिलाफ आम नागरिक सड़कों पर उतर आएं और फौजी अफसर उनका मुकाबला न कर पाएं, देश के इतिहास में सिर्फ एक बार ऐसा हुआ है, जब जनरल अयूब खान को राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा ने पाकिस्तानी सेना का मुखिया बनाया था। बीस दिन बीते थे कि अयूब खान ने सैनिक विद्रोह के जरिये मिर्जा को ही पद से हटा दिया। वे 11 साल तक पाकिस्तान के सैनिक शासक रहे। इस दरम्यान अवाम कुशासन से त्रस्त हो गई। लोग सड़कों पर उतर आए  और अयूब खान को सत्ता छोड़नी पड़ी। पाकिस्तान के इतिहास में यह सबसे बड़ा जन आंदोलन था। यह अलग बात है कि अयूब खान जब देश छोड़कर भागे तो अपना उत्तराधिकार भी एक जनरल याह्या खान को सौंप गए। इस प्रकार फिर फौजी हुकूमत देश में आ गई।

अयूब खान के बाद यह दूसरा अवसर आया है, जब भारत का यह पड़ोसी लोकतंत्र के लिए सड़कों पर है। जनता अब जम्हूरियत चाहती है। उधर फौज अपना अस्तित्व और साख बचाने के लिए लड़ रही है। राहत की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट नाजुक वक्त पर मजबूती दिखा रहा है। यह पाकिस्तान में लोकतंत्र बहाली के लिए आवश्यक है। भारतीय उपमहाद्वीप भी अब यही चाहता है कि शांति और स्थिरता के लिए पाकिस्तान में लोकतंत्र बहाल हो। एक ऐसा लोकतंत्र, जो अपने पैरों पर खड़ा हो सके और करोड़ों लोगों का भला हो सके।

Web Title: Blog Pakistan for the first time people took to the streets to protest against army

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