भरत झुनझुनवाला का नजरियाः नए अर्थशास्त्र से ही रुकेगी ग्लोबल वार्मिग
By भरत झुनझुनवाला | Published: July 14, 2019 05:17 AM2019-07-14T05:17:54+5:302019-07-14T05:17:54+5:30
नए अर्थशास्त्न के दो सिद्धांत होने चाहिए. पहला सिद्धांत यह कि मनुष्य के अंतर्मन में छुपी इच्छाओं को पहचाना जाए और तदनुसार भोग किया जाए. जैसे यदि व्यक्ति की इच्छा आइसक्रीम खाने की हो और उसे केला खिलाया जाए तो उस भोग से सुख नहीं मिलता है.
ग्लोबल वार्मिग का प्रकोप हम चारों तरफ देख रहे हैं. बीते दिनों चेन्नई में पानी का घोर संकट उत्पन्न हुआ तो इसके बाद मुंबई में बाढ़ का. इन समस्याओं का मूल कारण है कि हमने अपने उत्तरोत्तर बढ़ते भोग को पोषित करने के लिए पर्यावरण को नष्ट किया है और करते जा रहे हैं. जैसे मुंबई से अहमदाबाद बुलेट ट्रेन बनाने के लिए हम हजारों मैंग्रोव पेड़ों को काट रहे हैं. ये वृक्ष समुद्री तूफानों से हमारी रक्षा करते हैं. बिजली के उत्पादन के लिए छत्तीसगढ़ के घने जंगलों को काट रहे हैं. ये जंगल हमारे द्वारा उत्सर्जित कार्बन को सोख कर ग्लोबल वार्मिग को कम करने में सहायता करते हैं. हमने बिजली बनाने के लिए भाखड़ा और टिहरी जैसे बांध बनाए हैं जिनकी तलहटी में पेड़ पत्तियों के सड़ने से मीथेन गैस का उत्पादन होता है. यह गैस कार्बन डाइऑक्साइड से 20 गुना अधिक ग्लोबल वार्मिग को बढ़ावा देती है.
इस संकट का मूल अर्थशास्त्न का सिद्धांत है कि अधिक भोग से व्यक्ति सुखी होता है. जैसे अर्थशास्त्न में कहा जाता है कि जिस व्यक्ति के पास एक केला खाने को उपलब्ध है उसकी तुलना में वह व्यक्ति ज्यादा सुखी है जिसके पास दो केले खाने को उपलब्ध हैं. लेकिन हमारा प्रत्यक्ष अनुभव बताता है कि जिन लोगों को भारी मात्ना में भोग उपलब्ध है, जो एयर कंडीशन लक्जरी कारों में घूमते हैं अथवा फाइव स्टार होटलों जैसे घरों में रहते हैं वे प्रसन्न नहीं दिखते. उन्हें ब्लड प्रेशर और शुगर जैसी बीमारियां पकड़ लेती हैं. उन्हें नींद नहीं आती है. इसलिए यह स्पष्ट है कि भोग से सुख नहीं मिलता है, लेकिन अर्थशास्त्न इस बात को नहीं मानता. अर्थशास्त्न यही कहता है कि ऐसे व्यक्ति को किसी रिसोर्ट में भेज दो. दूसरी तरफ यह भी सही है कि जिन्हें दो टाइम भोजन नहीं मिलता है उन्हें हम दुखी देखते हैं. अथवा जो कर्मी अपनी बाइक से दफ्तर आता है वह बस से आने वाले की तुलना में ज्यादा सुखी दिखता है. भोग के इन दोनों परस्पर अंतर्विरोधी प्रभावों को समझने के लिए हमें मनोविज्ञान में जाना होगा.
मनोविज्ञान में मनुष्य की चेतना के दो स्तर-चेतन एवं अचेतन-बताए गए हैं. मनोविज्ञान के अनुसार यदि चेतन और अचेतन में सामंजस्य होता है तो व्यक्ति सुखी होता है. उसे रोग इत्यादि कम पकड़ते हैं. लेकिन हमारा अर्थशास्त्न केवल चेतन स्तर पर कार्य करता है और चेतन स्तर पर अधिक भोग को ही अर्थव्यवस्था का अंतिम उद्देश्य मानता है. अत: हमें नया अर्थशास्त्न बनाना होगा. नए अर्थशास्त्न के दो सिद्धांत होने चाहिए. पहला सिद्धांत यह कि मनुष्य के अंतर्मन में छुपी इच्छाओं को पहचाना जाए और तदनुसार भोग किया जाए. जैसे यदि व्यक्ति की इच्छा आइसक्रीम खाने की हो और उसे केला खिलाया जाए तो उस भोग से सुख नहीं मिलता है. इसलिए वर्तमान अर्थशास्त्न के चेतन स्तर को पलटकर अचेतन से जोड़ना होगा. परिणाम होगा कि यदि अचेतन की इच्छा सितार बजाने की है अथवा प्रकृति में सैर करने की है तो उसे उस दिशा में भोग उपलब्ध कराया जाए.
अर्थशास्त्न में मार्केटिंग के माध्यम से हम जनता के चेतन में नए-नए भोग की इच्छाएं पैदा करते हैं. अत: अर्थशास्त्न का उद्देश्य ही बदलना होगा. अधिक भोग को उत्तरोत्तर बढ़ाने के स्थान पर हमें व्यक्ति को वह भोग उपलब्ध कराना होगा जो उसके अंतर्मन के अनुकूल हो. वर्तमान अर्थशास्त्न में यदि व्यक्ति बीमार पड़ जाए और अस्पताल में भरती हो जाए तो जीडीपी बढ़ जाता है. इस व्यवस्था को बदलना होगा.
नए अर्थशास्त्न का दूसरा सिद्धांत है कि दीर्घकालीन उत्पादन को बढ़ावा दिया जाए जिसे सस्टेनेबल डेवलपमेंट कहते हैं. यह सिद्धांत ठीक है और इसे और प्रभावी ढंग से लागू करने की जरूरत है. जैसे यदि व्यक्ति के अचेतन मन में आइसक्रीम खाने की इच्छा है तो आइसक्रीम का उत्पादन इस प्रकार होना चाहिए कि उसमें बिजली की खपत कम हो और वह स्वास्थ्य को हानि न पहुंचाए. यानी पर्यावरण के अनुकूल उत्पादन होना चाहिए. अपने अंतर्मन की तीव्र यात्ना की इच्छा को पूरा करने के लिए बुलेट ट्रेन चलाना ठीक है लेकिन बुलेट ट्रेन को चलाने के लिए मैंग्रोव जंगलों को काटना अर्थशास्त्न के दीर्घकालिक सिद्धांतों के विपरीत है.
हमें नए अर्थशास्त्न को अपनाना होगा जिसके दो सिद्धांत हैं. पहला सिद्धांत कि भोग से सुख नहीं मिलता है बल्कि अचेतन और चेतन के सामंजस्य से अथवा अचेतन में निहित इच्छाओं की पूर्ति मात्न से सुख मिलता है. इस सिद्धांत की परिभाषा करनी होगी और इसके अनुसार भोग का नया फार्मूला बनाना पड़ेगा. दूसरी बात कि अचेतन में निहित इच्छाओं की पूर्ति भी उत्पादन की ऐसी प्रक्रिया से करनी होगी जो टिकाऊ तथा दीर्घकालिक विकास यानी सस्टेनेबल डेवलपमेंट के अनुकूल हो. एयर कंडीशन कमरों में रहने की अंतर्मन की इच्छा हो लेकिन एयर कंडीशनिंग लगाने के लिए ऊर्जा की उपलब्धता न हो तो अचेतन को समझाना होगा कि एयर कंडीशनिंग के स्थान पर वाटर कूलर से काम चलाया जाए. जब तक हम अर्थशास्त्न के इन दो सिद्धांतों को परिवर्तित नहीं करेंगे तब तक आने वाले समय में ग्लोबल वार्मिग बढ़ेगी और संकट आते रहेंगे.