Bangladesh-Pakistan: पास में कौड़ी नहीं और बांटने चले हैं रेवड़ी?, बिछड़ा भाई कहा...
By विजय दर्डा | Updated: January 13, 2025 06:13 IST2025-01-13T06:13:43+5:302025-01-13T06:13:43+5:30
Bangladesh-Pakistan: बांग्लादेश को बिछड़ा भाई कहा और इतिहास में दर्ज कत्लेआम और बलात्कार की उन वीभत्स घटनाओं को भूल गए जो 1971 में पाकिस्तानी सेना ने उस भाई के घर में किया था जो तब बिछड़ा नहीं था.

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Bangladesh-Pakistan: नए साल का सबसे बड़ा मजाक सुना आपने..? पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार साहब ने फरमाया है कि पाकिस्तान हर लिहाज से बांग्लादेश की मदद करेगा! क्या कहूं? मुझे तो बस वो तस्वीरें याद आ गईं कि पिछले साल आटे के लिए पाकिस्तान में कितनी लंबी-लंबी कतारें लग रही थीं और साथ में एक कहावत याद आ गई.. ‘पास में कौड़ी नहीं और बांटने चले हैं रेवड़ी!’ इशाक डार दरअसल अगले महीने बांग्लादेश जाने वाले हैं और इस समय अनाप-शनाप उत्साह में चल रहे हैं. वे इतने उत्साह में हैं कि उन्होंने बांग्लादेश को बिछड़ा भाई कहा और इतिहास में दर्ज कत्लेआम और बलात्कार की उन वीभत्स घटनाओं को भूल गए जो 1971 में पाकिस्तानी सेना ने उस भाई के घर में किया था जो तब बिछड़ा नहीं था.
अब चूंकि शेख हसीना सत्ता में नहीं हैं और बांग्लादेश एक ऐसी सत्ता के हवाले है जो भारत से नफरत के बीज बोने में लगी है तो पाकिस्तान को लगने लगा है कि वह बांग्लादेश से गलबहियां करने में कामयाब होगा. इसीलिए वह हर तरह से मदद करने की शेखी बघार रहा है. हकीकत यह है कि बांग्लादेश इतना आगे है कि चाहे तो पाकिस्तान को खरीद ले.
पिछले एक दशक में पाकिस्तान की आर्थिक विकास दर तीन से चार प्रतिशत के बीच में रही है. बीच के दो साल तो एक फीसदी से भी कम थी. इसके ठीक विपरीत पिछले दशक में बांग्लादेश की आर्थिक विकास दर छह प्रतिशत से ऊपर ही रही है. शेख हसीना को जब अपदस्थ किया गया, उस वक्त बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था का आकार 454 अरब डॉलर था.
जबकि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था उससे 114 अरब डॉलर कम यानी 340 अरब डॉलर थी. शायद अब भी हालात कुछ ऐसे ही होंगे. अब जरा दोनों देशों में गरीबी पर गौर कीजिए. विश्व बैंक के 2022 के आंकड़े बताते हैं कि बांग्लादेश में गरीबी की दर 11 प्रतिशत से भी कम थी जबकि पाकिस्तान में गरीबी की दर 39 प्रतिशत से ऊपर पहुंच चुकी है.
पाकिस्तान का खुद का आर्थिक सर्वेक्षण कहता है कि बीते साल वहां प्रति व्यक्ति सालाना औसत आय 1568 डॉलर रही जबकि बांग्लादेश में यह आंकड़ा 2687 डॉलर है. जरा सोचिए कि पाकिस्तान के विदेश मंत्री डार कौन सी मदद की बात कर रहे हैं? जिसे वे बिछड़ा हुआ भाई कह रहे हैं, उसकी तब की आर्थिक स्थिति के आंकड़े देख लें डार साहब, जब वह आपके साथ था.
1960 में पश्चिमी पाकिस्तान की प्रति व्यक्ति कमाई पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के लोगों से 30 प्रतिशत ज्यादा थी जो 1970 में बढ़कर 80 प्रतिशत ज्यादा हो गई थी. मदद की शेखी बघारते समय डार साहब यह भूल गए कि जिस बांग्लादेश में कपास की ज्यादा खेती नहीं होती वह कपड़ा निर्यात में दुनिया में दूसरे क्रमांक पर पहुंच चुका है.
पहले क्रमांक पर चीन है. वस्तु तथा सेवा क्षेत्र में बांग्लादेश ने पिछले साल 64 अरब डॉलर का निर्यात किया जबकि पाकिस्तान का आंकड़ा केवल 35 अरब डॉलर था. बांग्लादेश ने यह मुकाम शेख हसीना के नेतृत्व में तय किया है. मैं मानता हूं कि शेख हसीना में तल्खी रही होगी लेकिन इस बात से कौन इनकार कर सकता है कि यदि मुल्क को विकास के रास्ते पर ले जाना है तो उपद्रवी तत्वों से सख्ती से निपटना भी जरूरी होता है. शेख हसीना ने कट्टरपंथियों की नकेल कसी और मुल्क को बेहतर रास्ते पर ले गईं लेकिन उन्हें षड्यंत्रपूर्वक बेदखल कर दिया गया.
विदेशी ताकतों ने षड्यंत्र रचा कि शेख हसीना को बेदखल कर ऐसे लोगों को बिठा दिया जाए जो भारत को परेशान करें. लेकिन ऐसी ताकतों से मैं कहना चाहता हूं कि दो-दो फुट के तीन लोग इकट्ठा करने से वे छह फुट के नहीं हो जाते! भारत बहता हुआ दरिया है, इसे कोई नहीं रोक सकता. भारत जानता है कि प्रवाह रुकने पर ही गंदगी जमा होती है.
अब पाकिस्तान को लग रहा है कि भारत के कुछ पड़ोसी नाराज हैं तो उसने मुगालता पाल लिया है कि वह मौके का फायदा उठा सकता है और बांग्लादेश के कंधे पर बंदूक रखकर चला सकता है. लेकिन सवाल यह है कि पाकिस्तान के रास्ते पर चल कर यदि बांग्लादेश भी आर्थिक बदहाली का शिकार होने लगा तो क्या वहां की अवाम यह बर्दाश्त कर पाएगी?
यह सवाल गंभीर इसलिए है क्योंकि भारत के बगैर बांग्लादेश का काम चल ही नहीं सकता. भारत के साथ उसकी 94 प्रतिशत सीमा लगी हुई है और वह करीब-करीब लैंड लॉक्ड है. ऐसी स्थिति में कितने दिनों तक बांग्लादेश के मौजूदा नेतृत्वकर्ता भारत विरोध का बिगुल बजाते रहेंगे? भारत के साथ साझेदारी के बगैर बांग्लादेश की आर्थिक स्थिति कितने दिनों तक ठीक रह पाएगी?
दुर्भाग्य से बांग्लादेश में धार्मिक कार्ड खेलने की कोशिश की जा रही है मगर बांग्लादेश के मौजूदा नेताओं को यह बात समझ में आनी चाहिए कि वहां नौ प्रतिशत आबादी हिंदुओं की भी है. सरकारी नौकरी में तो यह संख्या 15 प्रतिशत के आसपास है. पाकिस्तान लाख कोशिश कर ले, भारत इस पूरे परिदृश्य से गायब नहीं हो सकता.
लेकिन एक शंका पैदा हो रही है कि क्या मोहम्मद यूनुस मुल्क को तानाशाही की ओर ले जा रहे हैं? शेख हसीना वहां हैं नहीं और जल्दी चुनाव कराने की मांग करने वाली खालिदा जिया भी लंदन जा चुकी हैं. यानी राजनीतिक नेतृत्व का पूरी तरह अभाव है! लेकिन शेख हसीना राख से भी पैदा हो जाने वाली राजनेता हैं. उनका दल भूमिगत है लेकिन वजूद खत्म नहीं हुआ है.
जाहिर सी बात है कि पाक सेना और आईएसआई बांग्लादेश को पाकिस्तानी रास्ते पर ले जाना चाहती है. ध्यान रखिए मोहम्मद यूनुस! पाकिस्तान की जिस सेना को आप बांग्लादेश की सेना को ट्रेनिंग देने के लिए बुला रहे हैं उसी सेना ने और आईएसआई ने पाकिस्तान को जहन्नुम में पहुंचा दिया है. क्या आप भी बांग्लादेश को जहन्नुम की ओर ले जाना चाहते हैं?