अवधेश कुमार का ब्लॉग: बांग्लादेश में सांप्रदायिक हिंसा की गहरी हैं जड़ें

By अवधेश कुमार | Published: October 22, 2021 02:14 PM2021-10-22T14:14:26+5:302021-10-22T14:14:26+5:30

शेख हसीना उदारवादी हैं किंतु इन कट्टरपंथियों के सामने वह भी कमजोर नजर आई हैं. यह कोई छिटपुट हिंसा या अचानक हो गई वारदात नहीं है. इसके पीछे एक विचार और योजना है, जिसको खत्म करने की जरूरत है.

Awadhesh Kumar Blog Communal violence has deep roots in Bangladesh | अवधेश कुमार का ब्लॉग: बांग्लादेश में सांप्रदायिक हिंसा की गहरी हैं जड़ें

बांग्लादेश में सांप्रदायिक हिंसा की गहरी हैं जड़ें (फाइल फोटो)

बांग्लादेश में हिंदुओं के विरुद्ध जारी हिंसा ने पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के खिलाफ अत्याचार की यादें ताजा की हैं. 13 अक्टूबर, 2021 को कोमिल्ला के नानुआर दिधी के दुर्गा मंडप पर आरंभ हमले ने कुछ ही समय में देशव्यापी एकपक्षीय दंगे का रूप ले लिया. एक तस्वीर फेसबुक पर वायरल हो रही थी जिसमें कहा गया था कि पवित्र कुरान की अवमानना की गई. 

सात दर्जन से ज्यादा पूजा के पंडाल तहस-नहस किए गए, पूजा में लगे हुए करीब 100 लोग घायल हुए और कोमिल्ला से तब दो शव बरामद हुए. धीरे-धीरे चांदपुर, नोआखाली, रंगपुर, चटगांव, कॉक्स बाजार, मौलवीबाजार, गाजीपुर, फेनी जैसे क्षेत्र भयानक हिंसा की चपेट में आ गए. आज की स्थिति में 64 में से 22 प्रशासकीय जिलों में दंगा रोधी पुलिस तैनात है.  

नोआखाली के इस्कॉन मंदिर पर भी हमला हुआ. हमलावरों ने वहां उपस्थित लोगों के साथ मारपीट की. अबुल अला मौदुदी  द्वारा स्थापित कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी  सहित अन्य संगठनों का हाथ इसके पीछे माना जा रहा है. पिछले दिनों प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा भी था कि जमात फिर से वही स्थिति लाना चाहती है जिसमें कत्लेआम हो. जमात और ऐसे दूसरे संगठन हिंदुओं पर हमले करते रहे हैं, मंदिर और हिंदू घर तोड़े और जलाए जाते रहे हैं. 

शेख हसीना उदारवादी हैं किंतु इन कट्टरपंथियों के सामने वह भी कमजोर नजर आई हैं. बांग्लादेश के एक अखबार ब्लिट्ज ने आबादी का विश्लेषण करते हुए बताया है कि 1947 में विभाजन के समय पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश में 30 प्रतिशत से ज्यादा हिंदू थे. 2011 की जनगणना में वहां हिंदुओं की आबादी 8 प्रतिशत रह गई है. ऐसा क्यों हुआ कैसे हुआ, इस पर काफी कुछ कहा जा चुका है.  

नोआखाली और कोमिल्ला दोनों महत्वपूर्ण जगह हैं. नोआखाली वह स्थान है, जहां  15 अगस्त, 1947 के पूर्व और बाद में हुए भीषण दंगों के बाद महात्मा गांधी को जाना पड़ा था. कोमिल्ला वह जगह है जहां आठवीं सदी में त्रिपुरा के देव राजवंश का शासन था. सन् 1400 के बाद माणिक वंशी राजाओं ने शासन किया. किंतु 16वीं सदी आते-आते स्थितियां बदलने लगीं. 1764 में शमशेर गाजी के नेतृत्व में वहां बड़ा आंदोलन हुआ और राजवंश का अंत हो गया. 

कुछ लोग उसे काजी नजरुल इस्लाम की कर्मभूमि के रूप में याद करते हैं जहां उन्होंने प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आने के विरुद्ध अपनी चर्चित कविता की रचना की थी. वहां 1931 में मालगुजारी के खिलाफ भी किसान आंदोलन हुआ था और उसमें भी कुछ मजहबी अंश थे. तब महात्मा गांधी और रवींद्रनाथ टैगोर दोनों वहां गए थे. नोआखाली का दंगा कोई भूल नहीं सकता. 

1946 का यही अक्टूबर महीना था जब वहां हिंदुओं पर हमले आरंभ हुए थे. गांधीजी वहां नवंबर 1946 में पहुंचे थे. उन्होंने उस समय सात सप्ताह तक क्षेत्र की पैदल यात्रा की. उस समय बंगाल में मुस्लिम लीग की सरकार थी. उनके रास्ते न जाने कितनी बाधाएं मुस्लिम लीग और उनके कट्टरपंथियों ने खड़ी कीं. गांधीजी गांव-गांव घूमते रहे.

काफी लोग इस समय नोआखाली के साथ गांधीजी को भी याद कर रहे हैं. यह स्वाभाविक है. अमेरिका में हिंदुओं की सक्रियता के कारण संयुक्त राष्ट्र ने भी संज्ञान लिया और सरकार से तुरंत इसे रोकने को कहा है. अमेरिका ने भी निंदा की है. अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि दुनिया का प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वह किसी भी धर्म या पंथ को मानने वाला हो, उसको अपने महत्वपूर्ण पर्व मनाने के लिए विश्वास दिलाना जरूरी है कि वह सुरक्षित है. 

हम जानते हैं कि इतने से ही बांग्लादेश हिंदुओं के लिए सुरक्षित नहीं होने वाला. बांग्लादेश के साथ हमारे संबंधों को देखते हुए देश के विरुद्ध कुछ बोलना राजनयिक दृष्टि से विपरीत परिणामों वाला माना जा रहा है. मरणासन्न हो चुकी पार्टी बीएनपी यानी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी अचानक सक्रि य हो गई है. उसने दंगों की जांच के लिए दो समानांतर कमेटियों का गठन कर दिया है. 

सब जानते हैं कि बेगम खालिदा जिया के शासनकाल में किस तरह से हिंदुओं पर हमले हुए, कट्टरपंथ और आतंकवाद तेजी से फैला. बांग्लादेश ने उनकी पार्टी को नकार दिया लेकिन उन्हें लगता है कि मजहबी उन्मादियों के साथ खड़े होकर वो अपना समर्थन वापस पा सकती हैं. इसलिए भारत सरकार इस मामले पर अंदर भले सक्रि य हो, स्पष्ट रूप से कुछ बोलने से बच रही है.

वास्तव में इस प्रकार की हिंसा अपने आप नहीं होती. इसकी जड़ें गहरी हैं. लंबे समय से हिंदुओं और अल्पसंख्यक समुदाय के विरु द्ध पैदा की गई घृणा तथा बांग्लादेश को सम्पूर्ण इस्लामिक राज बनाने का प्रचार चलता रहा है. यह इन सबकी परिणति तो है ही, पाकिस्तान की इसमें भूमिका से भी इनकार करना कठिन है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी साल 26-27 मार्च को बांग्लादेश की यात्रा पर गए थे और उन्होंने वहां हिंदू मंदिरों में पूजा की थी उससे एक बेहतर वातावरण बना था. 

शेख मुजीबुर रहमान यानी बंगबंधु की याद में तब भारत-बांग्लादेश के संबंधों में भावुकता और संवेदनशीलता देखी गई थी. जाहिर है, पाकिस्तान को और बांग्लादेश के कट्टरपंथियों को यह स्वीकार नहीं हो सकता था. यानी यह कोई छिटपुट हिंसा या अचानक हो गई वारदात नहीं है. इसके पीछे एक विचार और योजना है, जिसको खत्म करने के लिए बांग्लादेश सरकार को जो कुछ संभव हो सकता है, करना पड़ेगा. साथ ही विश्व के प्रमुख देशों को आगे आना होगा.

Web Title: Awadhesh Kumar Blog Communal violence has deep roots in Bangladesh

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