अश्वनी कुमार का ब्लॉग: शिंजो आबे गरिमा और विनम्रता की मिसाल

By अश्वनी कुमार | Published: September 8, 2020 03:20 PM2020-09-08T15:20:04+5:302020-09-08T15:20:04+5:30

प्रधानमंत्री आबे के साथ मेरा जुड़ाव उस समय शुरू हुआ था, जब मुझे भारत की उनकी राजकीय यात्रा की अवधि के लिए उनके साथ रहने वाला मंत्री नियुक्त किया गया. मुझे उनके भारत आगमन से लेकर यहां से जाने तक उनके साथ रहना था और इसलिए यह उन्हें करीब से जानने का अवसर था.

Ashwani Kumar's blog: Shinzo Abe exemplifies dignity and humility | अश्वनी कुमार का ब्लॉग: शिंजो आबे गरिमा और विनम्रता की मिसाल

शिंजो आबे (फाइल फोटो)

जापान के सबसे लंबे समय तक सेवारत प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने स्वास्थ्य कारणों से 28 अगस्त को इस्तीफा दे दिया. वह कई वर्षों से अल्सरेटिव कोलाइटिस से पीड़ित थे. एक ऐसे समय में जब जापान कोविङ-19 सहित कई चुनौतियों का सामना कर रहा है और चीन के साथ तनाव बढ़ा हुआ है, वह अपना सर्वश्रेष्ठ दे पाने में असमर्थ महसूस कर रहे थे.

यह प्रधानमंत्री आबे का स्वास्थ्य के आधार पर दूसरा इस्तीफा है. इससे पहले 2007 में, अगस्त में भारत की अपनी अत्यधिक सफल राजकीय यात्रा के तुरंत बाद सितंबर में उन्होंने इस्तीफा दिया था.

प्रधानमंत्री आबे के साथ मेरा जुड़ाव उस समय शुरू हुआ था, जब मुझे भारत की उनकी राजकीय यात्रा की अवधि के लिए उनके साथ रहने वाला मंत्री नियुक्त किया गया. मुझे उनके भारत आगमन से लेकर यहां से जाने तक उनके साथ रहना था और इसलिए यह उन्हें करीब से जानने का अवसर था.

एक छोटे बच्चे के रूप में, प्रधानमंत्री आबे अपने दादा प्रधानमंत्री नोबुसुके किशी से कहानियां सुनकर बड़े हुए थे, जिन्होंने 1957 में भारत का दौरा किया था. तब जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें एक विशाल सार्वजनिक स्वागत समारोह में भारतीय लोगों से परिचित कराया था. इसकी स्मृति प्रधानमंत्री आबे के भीतर भारत के बारे में एक व्यक्तिगत और भावनात्मक जुड़ाव के रूप में विद्यमान थी, जैसा कि 2007 में संसद सदस्यों के लिए उनके यादगार संबोधन से स्पष्ट था.

इस यात्रा के दौरान भी, प्रधानमंत्री आबे उसी बीमारी से पीड़ित थे, जिसके कारण उनके व्यस्त आधिकारिक कार्यक्रम को कुछ इस तरह से समायोजित किया गया था कि उन्हें बैठकों के बीच राहत के लिए कुछ मिनटों का समय मिल सके. कई मौकों पर, मैं उनके चेहरे की अभिव्यक्ति से उनके भीतर की बेचैनी और तकलीफ महसूस कर सकता था. ऐसे अवसरों पर श्रीमती आबे की उपस्थिति राहत के साथ आश्वस्त करने वाली होती थी.

नई दिल्ली आने पर, प्रधानमंत्री आबे को राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया. प्रभावशाली समारोह के बाद, आधिकारिक कार में युगल के साथ यात्रा करते समय, मैं समझ सकता था कि प्रधानमंत्री आबे स्वागत की भव्यता और प्रभावपूर्णता से प्रसन्न हैं.

यात्रा का मुख्य आकर्षण 22 अगस्त को भरे हुए सेंट्रल हॉल में संसद के संयुक्त सदन के लिए उनका उल्लेखनीय संबोधन था. भाषण का शीर्षक ‘कान्फ्लुएंस ऑफ द टू सीज’ था, जिसमें एक खुले, समृद्ध और शांतिपूर्ण इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के साथ ‘व्यापक एशिया’ के आबे के दृष्टिकोण का खुलासा किया गया था. उनके शक्तिशाली भाषण का ऐसा उदार प्रभाव था कि उनके सेंट्रल हॉल से बाहर जाने के दौरान संसद सदस्यों में से हर कोई उनसे हाथ मिलाना चाहता था.

जापान लौटने के बाद जल्दी ही प्रधानमंत्री आबे ने 26 सितंबर 2007 को अपना इस्तीफा दे दिया था. टीवी स्क्रीन पर उनके इस्तीफे के दृश्य ने मेरे दिमाग पर एक अमिट छाप छोड़ी. जापान की सबसे शक्तिशाली राजनीतिक हस्ती द्वारा विनम्रता के साथ अपने इस्तीफे की घोषणा और वरिष्ठ सहयोगियों का और भी गहरे सम्मान के साथ वहां खड़े होना मुझे गहराई तक छू गया.

यहां एक ऐसे नेता का एक अनूठा उदाहरण था, जिन्होंने अंतरात्मा की पुकार पर सत्ता और चकाचौंध से दूर जाने का विकल्प चुना. 2007 और 2020 में उनके इस्तीफे के समय की उनकी विनम्रता हमेशा के लिए सार्वजनिक स्मृति में दर्ज रहेगी. ये शिष्टता, कृतज्ञता, विनम्रता और गरिमा की गहराई के संकेत थे जो आबे को आदमी और राजनेता के रूप में परिभाषित करते हैं. मैंने 2007 में टोक्यो की अपनी आधिकारिक यात्रा के दौरान शिष्टाचार मुलाकात के लिए उनसे मिलने का समय मांगा.

मैंने प्रधानमंत्री आबे से उनके पार्टी कार्यालय में मुलाकात की. यह मेरे लिए एक भावनात्मक मुलाकात थी और तय समय से ज्यादा चली. उनके प्रधानमंत्री का पदभार छोड़ते समय मैंने कहा था कि प्रधानमंत्री के रूप में एक बार फिर अपने देश का नेतृत्व करना उनकी नियति है, और ऐसा ही हुआ.

2012 में शिंजो आबे ने दूसरी बार प्रधानमंत्री का पद संभाला. इस बीच, मुझे नई दिल्ली में अपने निवास पर उनकी मेजबानी करने का सौभाग्य मिला. 2013 में, मुझे डॉ. मनमोहन सिंह ने जापान के अपने विशेष दूत के रूप में जापान के तत्कालीन सम्राट और महारानी की दिसंबर 2013 की भारत यात्रा की तैयारियों में सहायता करने के लिए नियुक्त किया था.

इस सिलसिले में मैंने टोक्यो का दौरा किया और शाही यात्रा पर चर्चा के लिए प्रधानमंत्री शिंजो आबे को फोन किया. सौहार्द्रपूर्ण बैठक लगभग चालीस मिनट तक चली और मैं उनके चेहरे की मुस्कुराहट से समझ सकता था कि प्रधानमंत्री दिल्ली और टोक्यो में हमारी पिछली बातचीत को याद कर रहे थे. 

2017 में, जापान के तत्कालीन सम्राट ने मुझे ‘द ग्रैंड कॉर्डन ऑफ द ऑर्डर ऑफ द राइजिंग सन’ से नवाजा. समारोह टोक्यो में इंपीरियल पैलेस में सम्राट और प्रधानमंत्री आबे की उपस्थिति में हुआ. स्पष्ट था कि प्रधानमंत्री आबे मुझे प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त करते हुए देखकर खुश थे. जब भी मैं उनसे मिला हूं, मैंने उनकी आंखों में गर्मजोशी महसूस की है, हालांकि वे शब्दों के साथ मितव्ययी बने रहते हैं.

इस परेशानी भरे समय में, जब दुनिया को हमारे दौर की असाधारण चुनौतियों का सामना करने वाले राजनेताओं की जरूरत है, शिंजो आबे की जापान के प्रधानमंत्री के रूप में अनुपस्थिति याद की जाएगी. हम उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करते हैं. इसमें संदेह नहीं है कि उनकी आवाज को हमारे समय की असाधारण चुनौतियों का सामना करने के लिए दुनिया के तमाम सत्ता केंद्रों में सम्मान के साथ सुना जाएगा. उनके इस्तीफे को इतिहास में विनम्रता और गरिमा के विनम्र कृत्य के रूप में याद किया जाएगा.

Web Title: Ashwani Kumar's blog: Shinzo Abe exemplifies dignity and humility

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