यंग जनरेशन को प्यार की भाषा सिखा रहे हैं समीर और नैना, रिश्तों के मायने दिला रहे हैं याद
By मेघना वर्मा | Published: June 24, 2018 10:05 AM2018-06-24T10:05:39+5:302018-06-24T10:05:39+5:30
इस शो के प्रति थोड़ी मेरी दीवानगी को किनारे करके देखा जाए तो इस समाज को ये उन दिनों की बात है सीरियल की बहुत जरूरत थी।
ये उन दिनों की बात है...जब इश्क सच्चा हुआ करता था...जी हां, आजकल यही गाना दोहराती रहती हूं। मोबाइल की रिंग टोन भी यही है और यू-ट्यूब सजेशन्स में भी सबसे ज्यादा इसी गाने को देखती हूं। सोनी टेलीविजन के इस सबसे पॉपुलर शो की चर्चा आज हर घर में होती है। 90 के दशक की स्टोरीज के कॉन्सेपट के साथ लोगों के बीच आया ये शो आज के लोगों को प्यार का सही मायने बता रहा है। मोबाइल और इंटरनेट से जुड़े हुए प्यार के धागे को किस तरह पिरोकर उसे खूबसूरत माला में बदला जाता है, इसी बात की झलक शो में दिखाई दे जाती है। प्यार करने वालों के बीच रूठने-मनाने का सिलसिला हो या घरवालों से छिपकर एक-दूसरे से पुराने लैंडलाइन फोन पर बात करना, मंदिर के बहाने अपने प्रेमी से मिलने जाना हो या सारी दुनिया से झूठ बोलकर अपनी प्रेमिका के लिए तोहफे खरीदना इन सभी चीजों को बड़ी ही खूबसूरती और उसी इमोशन के साथ हमारे सामने रखने में सफल रही है सोनी चैनल की पूरी टीम।
मैं मेट्रो में टकराई थी इस शो से
दिल्ली मेट्रो के अनुभव किसी से पूछेंगे तो वह शायद यही बताएगा कि बहुत भीड़ होती है, खड़े होने की भी जगह नहीं मिलती ये वो, मगर मेरे साथ जरा सा चीजें उल्टी हुई। घटना कुछ ऐसी घटी की मई की भीषण गर्मी में मैं मेट्रो से घर लौट रही थी। मेरे बगल में बैठी एक खूबसूरत सी महिला अपने मोबाइल में कुछ देख कर बड़ी मीठी सी हंसी हंस रही थीं। अब दिमाग मेरा हमेशा से ही खुरापाती रहा है। मैंने जरा खुद को एडजस्ट किया और तपाक से मोबाइल की ओर झांक लिया। मोहतरमा सोनी लाइव के एप पर कोई शो देख रही थीं। जिसमें किसी स्कूल का सीन चल रहा था। रहा नहीं गया तो मैंने पूछ ही डाला "आप क्या देख रही हैं।" सामने से जवाब आया " ये उन दिनों की बात है" बस घर आकर मैंने सबसे पहले जो काम किया वो था सोनी लाइव का एप डाउनलोड करना और उस पर इस शो को ढूंढना।
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रात 3 बजे, जब आंखे कहती बस करो तब लगता बस एक एपिसोड और...
हां सुबह की मॉर्निंग शिफ्ट थी मेरी लेकिन मजाल है ये शो मुझे सोने देता। शाम 7 बजे ऑफिस से आते ही मैं जो अपने मोबाइल और इस शो से चिपकती तो रात 3 बजे तक मुझे कोई हिला नहीं पाता। सुबह जल्दी उठने के कारण रात 3 बजे आंख इतनी दर्द होती कि जैसे किसी ने मिर्च डाल दी हो लेकिन मैंने इस शो के 200 एपिसोड में एक के साथ भी धोखा नहीं किया। एक-एक एपिसोड एक-एक डायलॉग के साथ पूरा देखा है। सुबह ऑफिस उठ भी जाती थी साढ़े पांच बजे तक। इस बाद का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि एक साल का पूरा 200 एपिसोड मैंने सिर्फ 20 दिनों में खत्म कर दिया है।
इस समाज को सच में जरूरत है इस शो की
इस शो के प्रति थोड़ी मेरी दीवानगी को किनारे करके देखा जाए तो इस समाज को ये उन दिनों की बात है सीरियल की बहुत जरूरत थी। आज के इस वन नाइट स्टैंड के जमाने में लोग प्यार और रिश्तों के मायने भूल गए हैं। फेसबुक के इस दौर में आज घरवाले, आप से बड़े नहीं बल्कि आपके दोस्त बन गए हैं। रिश्तों की जो गरिमा, रिश्तों की जो सीमा इस शो में दिखती है शायद वैसा अब टेलीविजन पर ही देखा जा सकता है। असल जिंदगी में ना तो रिश्ते वैसे है और ना ही प्यार।
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समीर और नैना का रिश्ता ही नहीं इस शो की सादगी खिंचती हैं लोगों को
शो के लीड कैरेक्टर समीर(रनदीप राय) और नैना(आशी सिंह) का प्यार इन दिनों कॉलेज के गलियारों में घूम रहा है। मगर जहां तक मैं समझती हूं इस शो को समीर-नैना का प्यार नहीं बल्कि सभी कैरेक्टर्स की सादगी खींच लाती है। चाचा जी का नैना को समझाना हो या बड़ी ताई जी की डांट, चाची की दोस्त वाला नेचर हो या स्वाती, अंजली और मुन्ना-पंडित की दोस्ती। इस शो की यूनिकनेस ही इसमें दिखाए गए रिश्ते हैं। इस शो को बनाने का मकसद 1990 के उस समय का प्यार दिखाना था जो ये शो बखूबी कर भी रहा है लेकिन जाने-अनजाने यह शो समाज को प्यार और रिश्तों की डोर को बांधना भी सिखा रहा है जो आज के लोगों के बीच कहीं टूट सी गई है।