वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: सराहनीय है ई-उपवास का अभियान

By वेद प्रताप वैदिक | Published: September 7, 2021 01:43 PM2021-09-07T13:43:16+5:302021-09-07T13:44:40+5:30

ई-फास्टिंग अभियान सबसे ज्यादा हमारे देश के नौजवानों के लिए लाभदायक है. हमारे बहुत-से नौजवानों को मैंने खुद देखा है कि वे रोजाना कई घंटे अपने फोन या कम्म्यूटर से चिपके रहते हैं.

Ved Pratap Vaidik blog what is e fasting and how it is getting popular | वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: सराहनीय है ई-उपवास का अभियान

ई-फास्टिंग का बढ़ता चलन (प्रतीकात्मक तस्वीर)

जो काम हमारे देश में नेताओं को करना चाहिए, उसका बीड़ा नागरिकों ने उठा लिया है. सूरत, अहमदाबाद और बेंगलुरु के कुछ जैन सज्जनों ने एक नया अभियान चलाया है, जिसके तहत वे लोगों से निवेदन कर रहे हैं कि वे दिन में कम से कम तीन घंटे अपने इंटरनेट और मोबाइल फोन को बंद रखें. 

इसे वे ई-फास्टिंग कह रहे हैं. यों तो उपवास का महत्व सभी धर्मो और समाजों में है लेकिन जैन लोग बहुत कठोर उपवास रखते हैं. जैन-उपवास केवल शरीर के विकारों को ही नष्ट नहीं करते, वे मन और आत्मा का भी शुद्धिकरण करते हैं. 

जैन संगठनों ने यह जो ई-उपवास का अभियान चलाया है, यह करोड़ों लोगों के शरीर और चित्त को बड़ा विश्रम और शांति प्रदान करेगा. 

इस अभियान में शामिल लोगों से कहा गया है कि ई-उपवास के हर एक घंटे के लिए एक रुपया दिया जाएगा यानी जो भी व्यक्ति एक घंटे तक ई-उपवास करेगा, उसके नाम से एक रुपए प्रति घंटे के हिसाब से वह संस्था दान कर देगी. क्या कमाल की योजना है! 

आप सिर्फ अपने इंटरनेट संयम की सूचना-भर दे दीजिए, वह राशि अपने आप दानखाते में चली जाएगी. इस अभियान को शुरू हुए कुछ हफ्ते ही बीते हैं लेकिन हजारों की संख्या में लोग इससे जुड़ते चले जा रहे हैं.

यह अभियान सबसे ज्यादा हमारे देश के नौजवानों के लिए लाभदायक है. हमारे बहुत-से नौजवानों को मैंने खुद देखा है कि वे रोजाना कई घंटे अपने फोन या कम्म्यूटर से चिपके रहते हैं. उन्हें इस बात की भी चिंता नहीं होती कि वे कार चला रहे हैं और उनकी भयंकर टक्कर भी हो सकती है. वे मोबाइल फोन पर बात किए जाते हैं या फिल्में देखे चले जाते हैं. 

भोजन करते समय भी उनका फोन और इंटरनेट चलता रहता है. खाना चबाने की बजाय उसे वे निगलते रहते हैं. उन्हें यह पता ही नहीं चलता कि उन्होंने क्या खाया और क्या नहीं? और जो खाया, उसका स्वाद कैसा था. इंटरनेट के निरंकुश दुरुपयोग पर सर्वोच्च न्यायालय भी नाराज था. आपत्तिजनक कथनों और अश्लील चि्त्रों पर कोई नियंत्रण नहीं है. 

कमोबेश यही हाल हमारे टीवी चैनलों ने पैदा कर दिया है. हमारे नौजवान घर बैठे-बैठे या लेटे-लेटे टीवी देखते रहते हैं. इंटरनेट और टीवी के कारण लोगों का चलना-फिरना तो घट ही गया है, घर के लोगों से मिलना-जुलना भी कम हो गया है. इन साधनों ने आदमी का अकेलापन बढ़ा दिया है. उसकी सामाजिकता सीमित कर दी है. 

इसका अर्थ यह नहीं कि इंटरनेट और टीवी मनुष्य के दुश्मन हैं. वास्तव में इन संचार-साधनों ने मानव-जाति को एक नए युग में प्रवेश करवा दिया है. उनकी उपयोगिता असीम है लेकिन इनका नशा हानिकारक है. जरूरी यह है कि मनुष्य इनका मालिक बन इस्तेमाल करे, न कि गुलाम बन जाए.

Web Title: Ved Pratap Vaidik blog what is e fasting and how it is getting popular

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