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संपादकीय: बच्चों को स्मार्टफोन से दूर रखने की वकालत

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: February 19, 2019 05:54 IST

स्मार्टफोन निश्चित रूप से मनुष्य के लिए एक वारदान है लेकिन उसका दुरुपयोग उसे अभिशाप में तब्दील कर दे रहा है. बच्चे जिस तरह स्मार्टफोन से दिन-रात जुड़े रहते हैं, उसके कारण एक गंभीर सामाजिक संकट पैदा होने लगा है. 

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जर्मनी के मनोवैज्ञानिकों तथा समाजशास्त्रियों के एक समूह द्वारा 14 साल से कम उम्र के बच्चों को स्मार्टफोन से दूर रखने की वकालत करने पर पूरे यूरोप में इस विषय पर तीखी बहस छिड़ गई है. जर्मनी के मनोवैज्ञानिकों तथा समाजशास्त्रियों का तर्क है कि स्मार्टफोन का इस्तेमाल बच्चों से उनका बचपन छीन लेता है, वे अंतमरुखी हो जाते हैं, उनमें मानवीय संवेदनाएं खत्म होने लगती हैं, वे समाज एवं परिजनों से कटने लगते हैं तथा ईल एवं हिंसक सामग्री देखने के आदी हो जाते हैं. देर से ही सही, बच्चों तथा किशोरवयीन विद्यार्थियों में पनप रही स्मार्टफोन की लत पर एक सार्थक बहस तो छिड़ी है. 

बहस इस बात पर केंद्रित नहीं है कि स्मार्टफोन के रेडिएशन से बच्चों के स्वास्थ्य को खतरा पैदा हो सकता है. बहस का मुद्दा बच्चों के मानसिक विकास, उनकी आदतों, स्वभाव एवं सामाजिक स्थिति से जुड़े मसले हैं. स्मार्टफोन निश्चित रूप से मनुष्य के लिए एक वारदान है लेकिन उसका दुरुपयोग उसे अभिशाप में तब्दील कर दे रहा है. बच्चे जिस तरह स्मार्टफोन से दिन-रात जुड़े रहते हैं, उसके कारण एक गंभीर सामाजिक संकट पैदा होने लगा है. 

स्मार्टफोन के चक्कर में वह अपने माता-पिता, भाई-बहनों, परिवार के अन्य सदस्यों से कटते जा रहे हैं. उनकी सारी जानकारी स्मार्टफोन में उपलब्ध सामग्री तक सिमटती जा रही है, इससे उनका बौद्धिक विकास अवरुद्ध हो रहा है. चूंकि ये बच्चे मानवीय रिश्तों से कटते जा रहे हैं इसीलिए उनमें मानवीय संवेदनाएं खत्म होने का खतरा भी पैदा हो गया है. स्कूल जानेवाले ये बच्चे अपनी शालेय किताबों को ही ज्ञान का एकमात्र स्नेत मान बैठे हैं.

 दुनिया में क्या गतिविधियां चल रही हैं इसका उन्हें ज्ञान ही नहीं रहता. नए प्रयोग करने या दुनिया से जुड़ने की उनकी इच्छा समाप्त होती जा रही है. चूंकि ये बच्चे पारिवारिक तथा सामाजिक संबंधों के महत्व से दूर होते जा रहे हैं इसीलिए उनमें रूखापन एवं हिंसक भाव पैदा होने लगे हैं. फ्रांस ने इस खतरे को समझा और स्कूलों में स्मार्टफोन के उपयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है. पिछले चार-पांच दशकों में संचार क्रांति ने दुनिया को बदल दिया है लेकिन साथ ही साथ उसने कई विकृतियों को भी जन्म दिया है. 

स्मार्टफोन एक ऐसा आविष्कार है जो अब बच्चों एवं किशोरवयीन युवक-युवतियों को ही नहीं बल्कि हर उम्र के लोगों को मानसिक विकृति का शिकार बनाने लगा है. विभिन्न वैज्ञानिक अध्ययनों से यह निष्कर्ष निकला है कि स्मार्टफोन का ज्यादा इस्तेमाल करने वाले छोटी-छोटी बात पर हिंसक हो जाते हैं या हताशा के गर्त में जाकर आत्महत्या की ओर प्रेरित होने लगते हैं. यूरोपीय देशों में अपराधों के अध्ययन से पता चला है कि किशोरवयीन बच्चे तेजी से अपराध की दुनिया में कदम रख रहे हैं क्योंकि स्मार्टफोन पर वे ज्यादातर पोर्न या हिंसक सामग्री ही देखते हैं. जर्मनी के मनोवैज्ञानिकों तथा समाजशास्त्रियों की स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने से 14 साल तक के बच्चों को रोकने की मांग उचित है. पूरी दुनिया को इस विषय पर गंभीरता से विचार करना चाहिए.

टॅग्स :स्मार्टफोनडिजिटल इंडिया
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