संत कृपाल सिंह जी महाराज का ब्लॉगः इंसान अपने आपको पहचाने

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: February 6, 2019 07:47 AM2019-02-06T07:47:38+5:302019-02-06T07:47:38+5:30

पूर्ण संतों की नजर में दूसरे साइंसों की तरह पराविद्या भी एक बाकायदा प्रैक्टिकल साइंस है जिसका आंतरिक-अनुभव केवल वर्तमान के जीते-जागते पूर्ण गुरु की शरण में जाकर ही मिल सकता है.

sant kripal singh blog: human should realize themselves | संत कृपाल सिंह जी महाराज का ब्लॉगः इंसान अपने आपको पहचाने

सांकेतिक तस्वीर

जब से यह दुनिया बनी, तब से इंसान इस सवाल को हल करने में लगा हुआ है कि मैं कौन हूं? इस दुनिया से मेरा क्या संबंध है? यह दुनिया कैसे बनी? और इसको बनाने वाला कौन है? इसके जवाब के लिए उसने हर तरह की खोज की, मगर ये सवाल हल न हुआ. समय की शुरुआत से अनेक संत-महात्मा इस संसार में आए और उन्होंने इंसान को आत्म-ज्ञान से रूबरू किया.

आत्म-ज्ञान वह है जो इस सवाल को हल करे कि आत्मा क्या है और उसका परमात्मा से क्या संबंध है? इसका अनुभव हम केवल अपने अंतर में जाकर ही कर सकते हैं. सभी संत-महात्माओं ने इसे पराविद्या कहा है. इसके अलावा और जितने भी बाहरी साधन हैं, जैसे कि जप-तप, पूजा-पाठ, हवन-दान और तीर्थ-यात्र आदि को अपराविद्या कहा गया है. इन सभी का संबंध सिर्फ हमारे शरीर के साथ है, न कि आत्मा के साथ. पूर्ण संतों की नजर में दूसरे साइंसों की तरह पराविद्या भी एक बाकायदा प्रैक्टिकल साइंस है जिसका आंतरिक-अनुभव केवल वर्तमान के जीते-जागते पूर्ण गुरु की शरण में जाकर ही मिल सकता है.

ऐसे गुरु जात-पांत व धर्म में कोई भेद नहीं करते. उनकी नजर में सारा समाज अलग-अलग स्कूलों और कॉलेजों की तरह है. जैसे स्कूलों और कॉलेजों की अलग-अलग वर्दियां और बिल्ले होते हैं, मगर उनकी शिक्षा एक है. ठीक ऐसे ही समाजों में अपने-अपने चिह्न्-चक्र हैं, पर आदर्श सबका एक ही है. इन सब समाजों से इंसान का दर्जा सबसे ऊंचा है. सभी महापुरुषों ने कहा है कि इंसान-इंसान सब एक हैं, चाहे हम किसी देश, जाति, धर्म, वर्ग या समाज से संबंध रखते हों, हम सब उस परमात्मा के बच्चे हैं. 

इंसान ने शरीर और बुद्धि के हिसाब से बड़ी तरक्की की है लेकिन आत्मा जो कि शरीर और मन दोनों को चलाने वाली ताकत है, उसके बारे में हम कुछ भी नहीं जानते. आत्म-विश्लेषण या आत्मा का मन-इंद्रियों से ऊपर उठकर उसके निजस्वरूप का दर्शन करना ही आत्मा का अनुभव करना है. लेकिन उस परमात्मा को जिसने इस सृष्टि की रचना की है, जिसमें हम विश्वास रखते हैं और उसको पूजते हैं, क्या हम उसे भी देख सकते हैं? क्या हम उससे बातें कर सकते हैं? इन सभी प्रश्नों के उत्तर हमें वर्तमान के पूर्ण गुरु देते हैं कि हां, हम उस परम सत्ता को देख भी सकते हैं और उससे बातें भी कर सकते हैं, यदि हम उतने ही ऊंचे उठ जाएं, जितना परमात्मा खुद है. इस विद्या को जीते-जी मरने की विद्या भी कहा जाता है. यह कोई अचरज की बात नहीं बल्कि कुदरत के नियमों के अनुसार है.

Web Title: sant kripal singh blog: human should realize themselves

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