दिशाहीन समाज को दिशा दे सकता है धार्मिक नेतृत्व

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: October 29, 2021 02:14 PM2021-10-29T14:14:01+5:302021-10-29T14:14:01+5:30

अगर धर्म और अध्यात्म का सही दिशा में इस्तेमाल किया जाए तो दुनिया में शांति स्थापित की जा सकती है। वैश्विक सौहार्द केवल सपना नहीं बल्कि हकीकत बन सकता है।

religious leadership may give good direction to Society | दिशाहीन समाज को दिशा दे सकता है धार्मिक नेतृत्व

दिशाहीन समाज को दिशा दे सकता है धार्मिक नेतृत्व

लोकमत के नागपुर संस्करण की स्वर्ण जयंती के अवसर पर आयोजित राष्ट्रीय अंतरधर्मीय सम्मेलन में ‘धार्मिक सौहाद्र्र के लिए वैश्विक चुनौतियां और भारत की भूमिका’ विषय पर हुई परिषद में बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था के धर्मगुरु ब्रह्मविहारी स्वामी के संबोधन के संपादित अंश

दुनिया के सामने अनेक सवाल होते हैं। जवाब खोजने की जिम्मेदारी अपनी ही होती है। सही सवाल पूछने की क्षमता और हिम्मत हो तो ही समस्या का उत्तर हासिल किया जा सकता है। अधिकांश मर्तबा तो लोग सही सवाल ही नहीं पूछते। इसी संदर्भ में मैं आस्तिक और नास्तिक व्यक्ति के बीच का संवाद आपके समक्ष पेश करना चाहूंगा। सही उत्तर कैसे हासिल किए जा सकते हैं, इस संवाद से आपको समझ आ जाएगा।

एक मर्तबा दो दोस्त बातचीत में मशगूल थे। एक आस्तिक, भगवान का परम भक्त, तो दूसरा नास्तिक, भगवान पर बिल्कुल भी यकीन नहीं रखने वाला। बातचीत के दौरान नास्तिक दोस्त ने आस्तिक से पूछा, बता सकते हो कि हम इस धरती पर कबसे हैं? एक हजार, दो हजार, तीन हजार, पांच हजार निश्चित तौर पर कितने बरस हुए और दुनिया में कितने बरस से धर्म है? आस्तिक जवाब देता है कि धर्म और भगवान तो अनादिकाल से अस्तित्व में हैं।

नास्तिक दोस्त तत्काल दूसरा सवाल करता है, दोस्त अगर धर्म अनादि काल से है तो दुनिया में जंग, हिंसा क्यों होती है? द्वेष, अपराध, धार्मिक भेदभाव आज भी क्यों मौजूद है? अगर ऐसा है तो फिर इस दुनिया को भगवान का, धर्म का क्या फायदा? क्या उत्तर दिया जाए आस्तिक को समझ नहीं आ रहा था, वह चुप हो गया। बात करते-करते दोनों एक गली में घुसे। गली में बच्चे अपने खेल में मस्त थे। कीचड़ से लथपथ बच्चों को किसी भी बात का होश नहीं था।

यह देखकर आस्तिक दोस्त ने नास्तिक से पूछा, अपनी धरती पर कितने वक्त से साबुन है? साबुन की खोज तो पांच हजार साल पहले हो गई थी। अगर साबुन को इतना वक्त हो गया तो यह बच्चे इतने गंदे और कीचड़ से सने हुए क्यों है? नास्तिक बोला, क्योंकि उन्होंने साबुन का इस्तेमाल किया ही नहीं।

आस्तिक हंसकर बोला, अब तुम्हें तुम्हारे सवाल का जवाब मिल गया? दुनिया में द्वेष, हिंसा है, जंग छिड़ी हुई है क्योंकि लोगों ने धर्म और अध्यात्म का इस्तेमाल किया ही नहीं। अनेक मर्तबा हम संकुचित सोच के आधार पर धर्म, अध्यात्म का मजाक उडाते हैं। इससे बेवजह अनावश्यक विवाद हो जाते हैं, लेकिन अगर धर्म और अध्यात्म का सही दिशा में इस्तेमाल किया जाए तो दुनिया में शांति स्थापित की जा सकती है। वैश्विक सौहार्द केवल सपना नहीं बल्कि हकीकत बन सकता है।

एक धार्मिक व्यक्ति या नेतृत्व काफी-कुछ कर सकता है। आपातकालीन स्थिति में दिग्भ्रमित समाज को दिशा दे सकता है। 2002 में गुजरात धर्म के नाम पर हिंसा में बुरी तरह से झुलस रहा था। किसी का भी गलत बयान के आग में घी का काम करने जैसे हालात बन गए थे। ऐसे हालातों में अक्षरधाम मंदिर पर आतंकी हमला हुआ। समाज में नाराजगी फैल गई। न्याय, बदला, जवाबी हमले की बातें की जाने लगीं। लेकिन प्रमुख स्वामी महाराज ने सबसे शांति की अपील की। मैं उसी मंदिर में था।

स्वामी महाराज ने मुझसे कहा, तुम्हारी आंखों में एक भी आंसू नहीं दिखना चाहिए। क्षमा हमारा मार्ग है, बदला नहीं। हम उन्हीं के बताए मार्ग पर चले और हिंसा का जवाब क्षमा से देने की रीत ही आगे चलकर अक्षरधाम रिस्पांस मॉडल के नाम से मशहूर हुई। सामाजिक जीवन में ही नहीं व्यक्तिगत जीवन में भी क्षमा का मार्ग अपनाकर देखें। कई जटिल उलझनें देखते ही देखते हल हो जाएंगी।

अध्यात्म के जरिए समाज में शांति स्थापित की जा सकती है। धार्मिक आचार्यो का समाज में बड़ा प्रभाव होता है। इस बड़े प्रभाव के साथ आती है बड़ी जिम्मेदारी। धर्माचार्य जो बातें सार्वजनिक मंचों से बोलते हैं, अगर अनुयायियों के सामने कही बात को वास्तविकता में दिल से अपना लिया जाए, तो दुनिया के अधिकांश झगड़े सुलझ जाएंगे।

दुनिया में सौहार्द की इच्छा रखने वाले लोग अनेक बार कहते हैं, मानवता ही एक धर्म है। हम सब एक ही ईश्वर की संतान हैं। मुझे समझ नहीं आता कि सबके एक जैसा ही होने का आग्रह हम क्यों करते हैं? समानता का आग्रह करते हुए हम विविधता का सम्मान करना कब सीखेंगे? सौहार्द के साथ सबके एक साथ रहने के लिए सबका एक समान होना क्या पूर्व शर्त है?

हम सब एक समान नहीं हैं। हमारा दिखना, आचार-विचार एक-दूसरे से भिन्न हैं। यही तो जीवन को रसपूर्ण बनाता है। भगवान को भी तो विविधता ही पसंद है। वरना इतने रंग, इतने स्वाद, इतने आकार-प्रकार वाली दुनिया क्योंकर बनाता? भगवान को भी समानता ही पसंद होती तो दुनिया में एक ही रंग, सुगंध के फूल होते, है कि नहीं?

विवेकपूर्ण, बुद्धिमान लोग इस विविधता का सम्मान करते हैं। सबके एक समान होने का आग्रह आलसी और विचारशून्य इंसान के लक्षण हैं। सामाजिक सौहार्द के लिए तीन महत्वपूर्ण बातों की जरूरत होती है-लव, लॉ और लाइफ। सबके लिए, जीवन के प्रति अगाध प्रेम होना चाहिए..इसी प्रेम के आधार सबको पारस्परिक सौहार्द कायम रखने में मदद करने वाले कानून होने चाहिए और इस दुनिया में जीवन से ज्यादा कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं, इस बात का अहसास होना चाहिए।

यह सब स्वप्नवत और खोखला आशावाद लगता है क्या? हो सकता है हो भी, लेकिन इंसान का चांद पर पैर रखने का सपना भी तो लंबे अरसे तक केवल सपना ही था। शायद ही कभी पूरा हो सकेगा, इतने भरोसे वाला पहुंच से बाहर का सपना। लेकिन आज वह सच हो चुका है। दुनिया में सामाजिक सौहार्द होना चाहिए, यह सपना भी कुछ ऐसा ही है।

लेकिन वह निश्चित तौर पर पूरा होगा यह विश्वास मन में रखने में क्या आपित्त है? सौहार्द के लिए आवश्यक नियम और कानून बनने चाहिए। उसके लिए संजीवनी बने ऐसी जीवनशैली विकसित होनी चाहिए। प्रेम के प्रसार, नियमों के पालन और जीवनशैली के विकास के लिए अगर समूचे समाज ने सामूहिक प्रयास किए तो सामाजिक सौहार्द्र का सपना, हकीकत में तब्दील हो जाएगा।

Web Title: religious leadership may give good direction to Society

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