राजिंदर सिंह महाराज का ब्लॉग: आध्यात्मिक संदेश को भी समझें
By राजिंदर सिंह महाराज | Published: November 5, 2020 12:06 PM2020-11-05T12:06:48+5:302020-11-05T12:08:16+5:30
करवा-चौथ एक पवित्र पर्व है. इसे हम सुहागिनों का त्यौहार भी कहते हैं. इस दिन हिंदू नारियां परमेश्वर से अपने पति की लंबी आयु और तंदुरुस्ती के लिए मंगल कामना करती हैं. यह जो व्रत है यह सबसे कठिन है क्योंकि इस व्रत के मौके पर सारा दिन निर्जल रहना पड़ता है, पानी भी नहीं पीते, कुछ खाते भी नहीं. यह जो व्रत है, सुबह तारों की छांव में रखा जाता है और शाम को चंद्रमा देखकर खोला जाता है. इस दिन हमारी जो हिंदू महिलाएं हैं वे सज-संवरकर रात को ईश्वर के सामने प्रण लेती हैं कि वे मन, वचन, कर्म से अपने पति के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना दिखाएंगी.
क्या कभी हमने विचार किया कि इस व्रत का अभिप्राय क्या है? इस व्रत का भी अन्य व्रतों की भांति एक आध्यात्मिक महत्व है. हमारे देश के र्जे-र्जे में आध्यात्मिकता रची हुई है. हमारे सारे त्यौहार, उत्सव और व्रत आत्म उन्नति के लिए ही बनाए गए थे, और ये व्रत आदि अंतत: मोक्ष व प्रभु-प्राप्ति के लिए ही रखे जाते थे, परंतु समय के साथ-साथ असलियत तो गायब हो जाती है और हम रस्मों-रिवाजों में उलझकर रह जाते हैं. परम संत कृपाल सिंहजी महाराज अक्सर कहा करते थे कि हमारे जितने भी व्रत हैं, जितने भी त्यौहार हैं उन सबकी बुनियाद में अध्यात्म है और यही हमारे मुल्क की विशेषता है कि सारे रस्मों-रिवाजों की तह में कोई न कोई रूहानी राज छुपा हुआ है. आइए हम देखें कि यह जो त्यौहार है करवा चौथ का, इसमें रूहानियत का कौन सा राज छुपा हुआ है.
करवा चौथ में सुबह तारों की छांव में व्रत रखते हैं और शाम को चांद देखकर व्रत खोलते हैं. यह वास्तव में प्रतीक है एक ऐसे फासले का जो हमें आध्यात्मिकता की एक मंजिल से दूसरी मंजिल तक ले जाता है. यह जो व्रत है करवा चौथ का यह तारों से लेकर चांद तक, आत्मा और परमात्मा के मिलन की एक अवस्था का वर्णन है. यह व्रत तभी मुबारिक है जबकि हम सुबह अपने अंतर में तारे देखें. सारा दिन प्रभु की याद में व्यतीत करें, ध्यान-अभ्यास में व्यतीत करें और शाम को अपने अंतर में चांद देखें और फिर अपना महबूब देखें जो हमारे दिल का चांद है. जो हमारा गुरु है उनके दर्शन करें. तो यही तरीका है करवा चौथ मनाने का.