शक्ति से पहले शांति की स्थापना जरूरी
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: August 4, 2018 07:47 AM2018-08-04T07:47:54+5:302018-08-04T07:47:54+5:30
सबसे बड़ी शक्ति अध्यात्म है, आत्मा है। इंसान सबसे शक्तिशाली है। एक भी ऐसा प्राणी नहीं है जिसमें शक्ति न हो। यह सत्य भारत के अध्यात्म में ही उजागर हुआ है।
आचार्य लोकेश मुनि
विश्व के विभिन्न देशों की यात्ना के दौरान भौतिक विकास के शिखर पर पहुंचे लोगों से बातचीत से जो तथ्य सामने आया उससे यही निष्कर्ष निकला है दुनिया में सर्वत्न शक्ति की पूजा होती है। लेकिन विडंबना यह है कि हर कोई विध्वंस को शक्ति मान रहा है, कोई धन को तो कोई अस्त्न-शस्त्न को शक्ति का साधन मान रहा है। जबकि सबसे बड़ी शक्ति अध्यात्म है, आत्मा है। इंसान सबसे शक्तिशाली है। एक भी ऐसा प्राणी नहीं है जिसमें शक्ति न हो। यह सत्य भारत के अध्यात्म में ही उजागर हुआ है। दुनिया में अनेक शक्ति संपन्न लोगों से मिला, सबकी शिकायत है, और रहती है, क्या करें? हममें यह शक्ति नहीं है। अपने आपको अशक्त, अक्षम, कमजोर और दुर्बल अनुभव करते हैं। वे शक्ति-संपन्न होते हुए भी अपने आपको कमजोर एवं दुर्बल अनुभव करते हैं। शक्ति का अनुभव और शक्ति का उपयोग करना यह ध्यान और साधना के द्वारा संभव हो सकता है। मिल्टन ने कहा है कि शांति की अपनी विजयें होती हैं, जो युद्ध की अपेक्षा कम कीर्तिमयी नहीं होतीं।
हम लोगों ने दुनिया को योग का सूत्न दिया है, ध्यान का सूत्न दिया है। ध्यान करने का मतलब है अपनी शक्ति से परिचित होना, अपनी क्षमता से परिचित होना, अपना सृजनात्मक निर्माण करना, अहिंसा की शक्ति को प्रतिष्ठापित करना। जो आदमी अपने भीतर गहराई से नहीं देखता, वह अपनी शक्ति से परिचित नहीं होता। जिसे अपनी शक्ति पर भरोसा नहीं होता, अपनी शक्ति को नहीं जानता, उसकी सहायता भगवान भी नहीं कर सकता और कोई देवता भी नहीं कर सकता। अगर काम करने की उपयोगिता है और क्षमता भी है तो वह शक्ति सृजनात्मक हो जाती है और किसी को सताने की, मारने की उपयोगिता है तो वह शक्ति ध्वंसात्मक हो जाती है।
अस्त्न-शस्त्नों को सुरक्षा का विश्वसनीय साधन नहीं माना जा सकता। आज कोई भी राष्ट्र अध्यात्म की दृष्टि से मजबूत नहीं है इसलिए वह बहुत शस्त्न-साधन-संपन्न होकर भी पराजित है। हमें नए विश्व का निर्माण करना है, क्योंकि लेखिका एल.एम. मॉन्टगोमेरी के शब्दों में, ‘‘क्या यह सोचना बेहतर नहीं है कि आने वाला कल, एक नया दिन है, जिसमें फिलहाल कोई गलती नहीं हुई है।’’ नया चिंतन, नई कल्पना, नया कार्य-यह अहिंसा विश्व भारती की नए मानव एवं नए विश्व निर्माण की आधारशीला है। कभी बनी-बनाई लकीर पर चलकर बड़े लक्ष्य हासिल नहीं होते, जीवन में नए-नए रास्ते बनाने की जरूरत है। जो पगडंडियां हैं, उन्हें राजमार्ग में तब्दील करना होगा।
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