श्वेता गोयल
Merry Christmas wishes 2025: क्रिसमस का नाम सुनते ही बच्चों के मन-मस्तिष्क में सफेद तथा लंबी दाढ़ी वाले लाल और सफेद रंग के वस्त्र तथा सिर पर फुनगी वाली टोपी पहने पीठ पर खिलौनों का झोला लादे बूढ़े बाबा ‘सांता क्लॉज’ की तस्वीर उभर आती है. क्रिसमस वाले दिन तो बच्चों को सांता क्लॉज का खासतौर से इंतजार रहता है क्योंकि इस दिन वह बच्चों के लिए ढेर सारे उपहार और तरह-तरह के खिलौने जो लेकर आता है. ईसाई समुदाय के बच्चे तो सांता क्लॉज को एक देवदूत मानते रहे हैं क्योंकि उनका विश्वास है कि सांता क्लॉज उनके लिए उपहार लेकर सीधा स्वर्ग से धरती पर आता है और टॉफियां, चॉकलेट, फल, खिलौने तथा अन्य उपहार बांटकर वापस स्वर्ग में चला जाता है. बच्चे प्यार से सांता क्लॉज को ‘क्रिसमस फादर’ भी कहते हैं.
सांता क्लॉज के प्रति न केवल ईसाई समुदाय के बच्चों का बल्कि दुनिया भर में अन्य समुदायों के बच्चों का आकर्षण भी पिछले कुछ समय में काफी बढ़ा है और इसका एक कारण यही है कि विभिन्न शहरों में 25 दिसंबर के दिन सांता क्लॉज बने व्यक्ति विभिन्न सार्वजनिक स्थलों अथवा चौराहों पर खड़े हर समुदाय के बच्चों को बड़े प्यार से उपहार बांटते देखे जा सकते हैं.
लेकिन सांता क्लॉज से उपहार पाकर अधिकांश बच्चों के दिमाग में यह सवाल जरूर उमड़ता है कि उन्हें उपहार देने और इतना प्यार करने वाला यह सांता क्लॉज आखिर है कौन, यह कहां से आता है और बच्चों को उपहार क्यों देकर जाता है? बच्चों का दिल रखने के लिए कुछ माता-पिता उन्हें कह देते हैं कि वह एक देवदूत है,
जो क्रिसमस की रात अपने आठ रेंडियर वाले स्लेज पर बैठकर स्वर्ग से आता है और बच्चों को उपहार बांटकर स्वर्ग वापस चला जाता है जबकि कुछ बच्चों के माता-पिता यह कहकर उनकी जिज्ञासा शांत कर देते हैं कि सांता क्लॉज बहुत दूर स्थित एक बर्फीले देश से आता है. सांता क्लॉज चौथी शताब्दी में मायरा के निकट एक शहर (जो अब तुर्की के नाम से जाना जाता है) में जन्मे संत निकोलस का ही रूप है.
संत निकोलस के पिता एक बहुत बड़े व्यापारी थे, जिन्होंने निकोलस को अच्छे संस्कार देते हुए दूसरों के प्रति सदा दया भाव रखने और जरूरतमंदों की सहायता करने को प्रेरित किया. निकोलस पर इन सब बातों का इतना असर हुआ कि वे हर समय जरूरतमंदों की सहायता करने को तत्पर रहते. बच्चों से तो उन्हें खास लगाव हो गया था.
अपनी ढेर सारी दौलत में से बच्चों के लिए वे ढेर सारे खिलौने खरीदते और खिड़कियों से उनके घरों में फेंक देते. संत निकोलस की याद में कुछ जगहों पर हर वर्ष छह दिसंबर को ‘संत निकोलस दिवस’ भी मनाया जाने लगा. इसके पीछे यही धारणा थी कि वे इसी दिन गरीब लड़कियों की शादी के लिए धन व तोहफे दिया करते थे लेकिन वे बच्चों को 25 दिसंबर को ही तोहफे बांटते थे.
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि संत निकोलस की लोकप्रियता से जलने वाले कुछ लोगों ने छह दिसंबर के दिन ही उनकी हत्या करवा दी थी, इसीलिए छह दिसंबर को ‘संत निकोलस दिवस’ मनाया जाने लगा था लेकिन वर्तमान में बच्चे सांता क्लॉज का इंतजार 25 दिसंबर को ही करते हैं.