ब्लॉग: अहं के विसर्जन और प्रकृति के उल्लास का पर्व

By गिरीश्वर मिश्र | Published: March 25, 2024 07:05 AM2024-03-25T07:05:15+5:302024-03-25T07:05:47+5:30

वसंत का चरम उत्कर्ष तब होता है जब शीत काल की ठिठुरन बीतने के बाद परिवेश में ऊष्मा का संचार होता है. खिलखिलाते रंग-बिरंगे फूलों के गहनों से लदी सजी प्रकृति सबके स्वागत के लिए सजीव हो उठती है।

holi 2024 Festival of dissolution of ego and joy of nature | ब्लॉग: अहं के विसर्जन और प्रकृति के उल्लास का पर्व

ब्लॉग: अहं के विसर्जन और प्रकृति के उल्लास का पर्व

भारतीय पर्व और उत्सव अक्सर प्रकृति के जीवन क्रम से जुड़े होते हैं। ऋतुओं के आने-जाने के साथ ही वे भी उपस्थित होते रहते हैं इसलिए भारत का लोक-मानस उसके साथ विलक्षण संगति बिठाता चलता है जिसकी झलक गीत, नृत्य और संगीत की लोक-कलाओं और रीति-रिवाजों -सबमें दिखती है। थोड़ा विचार करें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि हमारा अस्तित्ववान होना प्रकृति की ही देन है।

यह अलग बात है कि प्रकृति या दूसरे आदमियों के साथ रिश्तों को लेकर कृतज्ञता का भाव अब दुर्लभ होता जा रहा है। होली का सामुदायिक उत्सव हमें अपने समग्र अस्तित्व को जाग्रत करने वाला होता है। वह हमें हमारे व्यापक अस्तित्व की याद दिलाता है। 
गौरतलब है कि मनुष्य समाज में पैदा होता है और उसी में पलता-बढ़ता भी है।

सामाजिकता उसकी रगों में बसी रहती है और सामाजिक जीवन प्रकृति के समानांतर चलने को तत्पर रहता है। होली के दौरान उत्फुल्लता मन और वन दोनों में एक साथ निखर कर सामने आती है। वसंत का चरम उत्कर्ष तब होता है जब शीत काल की ठिठुरन बीतने के बाद परिवेश में ऊष्मा का संचार होता है. खिलखिलाते रंग-बिरंगे फूलों के गहनों से लदी सजी प्रकृति सबके स्वागत के लिए सजीव हो उठती है।

तब खुद को जीवन-कार्य में जोड़ने की तैयारी का अवसर मिलता है। खेती-किसानी के लिए भी होली एक प्रस्थान बिंदु जैसा होता है। इसके साथ कुछ दिन बाद चैत के महीने में वासंतिक नवरात्रि के साथ भारतीय नववर्ष शुरू होता है।

नए की भावना द्वंद्वों और संघर्षों से उबरते हुए नए समारंभ करने की प्रेरणा वाली होती है। रंगों और प्रेम भाव से सुवासित समानता और समता की गारंटी देने वाला होली का उत्सव ऊंच-नीच हर किसी को शामिल होने के लिए आमंत्रित करता है। वह आवाज देता है कि अपने-अपने अहं का विसर्जन कर आगे आओ।

होली के पहले रात को होलिका-दहन होता है जिसमें अपने सारे कल्मष जला कर नई शुरुआत करने का संकल्प लिया जाता है। यह बैर का दहन कर उल्लास का प्रसाद बांटने का अवसर होता है। होली का अवसर राधा-कृष्ण के स्मरण के साथ भी अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है।

अबीर, गुलाल, कुंकुम और रंग की पिचकारी से सराबोर ब्रज-क्षेत्र (मथुरा, वृंदावन, नंद गांव, बरसाना और गोकुल) की होली दुनिया भर में प्रसिद्ध है। संगीत और काव्य की दृष्टि से होली का अवसर सर्जनशीलता को आमंत्रित करता रहा है।

Web Title: holi 2024 Festival of dissolution of ego and joy of nature

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