द्वैत और अद्वैत की बुनियाद पर चलता है हिंदू दर्शन, डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉग
By डॉ एसएस मंठा | Published: July 18, 2021 07:03 AM2021-07-18T07:03:16+5:302021-07-18T09:31:50+5:30
नास्तिकता भगवान में अविश्वास या उसके अस्तित्व से इंकार नहीं बल्कि भगवान में विश्वास का अभाव है. आस्तिकवाद और नास्तिकवाद पर बहस की बजाय हिंदू दर्शन द्वैत और अद्वैत की सोच पर चलता है.
हिंदू दर्शनशास्त्र बहुआयामी है. कुछ वैदिक अभिधारणाओं को मानते हैं तो कुछ नहीं. ऐसे भी हैं जो हमें वही दिखाते हैं जो हम देखना चाहते हैं और कुछ ऐसे हैं जो हमें आईना दिखा देते हैं.
ईश्वरवाद या आस्तिकवाद कहता है कि भगवान वाकई है और वही सब बनाने वाला, उसे चलाने वाला है और कण-कण में मौजूद है. दूसरी ओर नास्तिकता भगवान में अविश्वास या उसके अस्तित्व से इंकार नहीं बल्कि भगवान में विश्वास का अभाव है. आस्तिकवाद और नास्तिकवाद पर बहस की बजाय हिंदू दर्शन द्वैत और अद्वैत की सोच पर चलता है.
जहां आत्मन या ‘आत्मा’ और ब्राह्मण यानी ‘असीमित’ द्वैत में दो अलग और अपरिवर्तनीय बातें हैं. अद्वैत के मुताबिक केवल ब्राह्मण ही अंतिम सत्य है. क्या भगवान और धर्म एक-दूसरे से संबंधित हैं? वेदांत में भगवान ब्राह्मण हैं और इसमें सबकुछ समाहित है. इसलिए धर्म आत्मज्ञान की खोज है, अपने भीतर बसे भगवान की खोज या चेतना की खोज.
एक अज्ञेयवादी आस्तिक भगवान में विश्वास करता है धर्म में नहीं. एक अज्ञेयवादी नास्तिक मानता है कि भगवान की मौजूदगी ही अनिश्चित है. यह सर्वश्रेष्ठ बौद्धिक तर्क हैं. सच में हकीकत यह है कि हर व्यक्ति को चेतना की अनुभूति होती है. तो फिर चेतना क्या है? हिंदू दर्शनशास्त्र की वक्त गुजरने के बाद भी कायम छह प्रमुख रूढ़िवादी विचारधाराएं हैं-न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा और वेदांत.
न्याय की सोच हमें कानून और आचरण की शिक्षा देती है जो हम पर और हमारे इर्द-गिर्द के माहौल पर नियंत्रण करती है. वैशेषिका परमाणुवाद समर्थक है यानी जिसमें दुनिया की सभी वस्तुएं छोटे-छोटे कणों से बनी हैं जिन्हें और अधिक छोटे कणों में बांटा जा सकता है. यह परमाणु भौतिकी से मिलता-जुलता है. संख्या यानी आंकड़े जो पुरुष और प्रकृति से उपजी है.
इसमें निर्माण की इस तरह से व्याख्या की जाती है कि अप्रत्यक्ष प्रत्यक्ष हो जाता है और न तो उत्पादन होता है न विनाश. पुरुष यानी विशुद्ध चेतना और प्रकृति यानी कुदरत. यह द्रव्यमान के संरक्षण का नियम है. योगा हमें सीखाता है कि मन, शरीर और आत्मा एक हैं और इन्हें अलग नहीं किया जा सकता. यह ऊर्जा के संरक्षण का नियम है.
मीमांसा में हमें प्रतिबिंब या बारीकी से जांच सिखाई जाती है. यानी एक तरह से चेतना का चिंतन. यह दर्शनशास्त्र की भौतिकी है या क्वांटम मैकेनिक्स. वेदांत मतलब वेदों की अंतिमता. इसमें उपनिषदों में मौजूद तमाम सिद्धांतों की सोच का खुलासा होता है, खासतौर पर ज्ञान और मुक्ति. यह सभी विज्ञानों का निचोड़ है जो एक सच पर समाप्त होते हैं, चेतना का सत्य.
आधुनिक प्रौद्योगिकी वेदांत के मेटा-फिजिक्स की तरह है. यह सब हमें अंतिम सत्य से जोड़ते हैं. जैन, बौद्ध, आजीविका, अज्ञान और चार्वक का उदय हुआ ताकि हमें सत्य का दूसरा पहलू भी पता चले. यह सभी हमें चेतना के सफर पर ले जाकर प्रकृति से एकरूप कर देते हैं. ईसाइयत एक भगवान में विश्वास करती है और चेतना और आध्यात्मिक जागृति की बात करती है.
वेद और गीता हमें बताते हैं कि उच्च चेतना ईश्वर की चेतना या मानव मन का हिस्सा है और पाश्विक प्रवृत्ति पर काबू करने में सक्षम है. हम कई बार स्पष्ट सपने देखते हैं और कई बार हमें असामान्य घटनाओं की अनुभूति होती है. कई बार यह अनुभव मौत जैसा होता है तो कई बार रहस्यमय. यह क्यों होता है कोई सिद्धांत नहीं बता पाता.
संज्ञानात्मक वैज्ञानिक और दार्शनिक डेविड चालमर्स ने 1995 में प्रकाशित पेपर ‘फेसिंग अप टू द प्रॉब्लम आॅफ कॉन्शसनेस’ में लिखा था कि सचेत अनुभव से ज्यादा हम किसी बात को नहीं जानते,लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं जिसे समझाना कठिन हो. कई बार हम व्यक्तिपरक सचेत अनुभव करते हैं, जैसे सूर्यास्त, पेंटिंग, संगीत, लेकिन साथ ही हमें दुख, तनाव का भी अहसास होता है.
तर्क चाहे जो भी हों, वेदांत दर्शनशास्त्र और आधुनिक भौतिकी दोनों ही मानव चेतना से संबंधित हैं और मानव मन में निवास करते हैं. चेतना मन का दर्शन है. इसकी व्याख्या आयाम धर्म के दर्शन हैं. बात वेदांत की हो या फिर भौतिक शास्त्र की, चेतना को समझें और आप भगवान को समझ लेंगे. इसके बारे में सोचिए. क्या हमने कभी किसी समस्या को चेतना के उसी स्तर से हल किया है, जिससे वह तैयार हुई हो?