ब्लॉग: आरोग्य के देवता धन्वंतरि का अवतरण दिवस है धनतेरस
By योगेश कुमार गोयल | Updated: November 10, 2023 11:43 IST2023-11-10T11:37:11+5:302023-11-10T11:43:28+5:30
पांच दिवसीय दिवाली महोत्सव की शुरुआत प्रतिवर्ष स्वास्थ्य चेतना जागृति के पर्व ‘धनतेरस’ से ही होती है। इन पांच दिनों को शास्त्रों में ‘यम पंचक’ कहा गया है और इन दिनों में यमराज, वैद्यराज धन्वंतरि, लक्ष्मी-गणेश, हनुमान, काली और भगवान चित्रगुप्त की पूजा का विधान है।

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प्रतिवर्ष दीवाली से पहले ‘धनतेरस’ त्यौहार मनाया जाता है। इसी दिन धनत्रयोदशी से शुरू होकर यम द्वितीया तक दिवाली के पंच पर्व की शुरुआत होती है। पांच दिवसीय दिवाली महोत्सव की शुरुआत प्रतिवर्ष स्वास्थ्य चेतना जागृति के पर्व ‘धनतेरस’ से ही होती है। इन पांच दिनों को शास्त्रों में ‘यम पंचक’ कहा गया है और इन दिनों में यमराज, वैद्यराज धन्वंतरि, लक्ष्मी-गणेश, हनुमान, काली और भगवान चित्रगुप्त की पूजा का विधान है।
‘धन्वंतरि जयंती’ आरोग्य के देवता धन्वंतरि का अवतरण दिवस है। भगवान विष्णु के 24 अवतारों में 12वां अवतार धन्वंतरि का माना गया है। धनतेरस के प्रचलन का इतिहास बहुत पुराना माना जाता है। यह त्यौहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है। धनतेरस को अब भारत में ‘राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस’ के रूप में भी मनाया जाता है। धन्वंतरि को आयुर्वेद का देवता और देवताओं का चिकित्सक माना गया है इसलिए धनतेरस को चिकित्सकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना गया है।
धन्वंतरि को आयुर्वेद का जन्मदाता माना जाता है, जिन्होंने विश्वभर की वनस्पतियों पर अध्ययन कर उनके अच्छे और बुरे प्रभावों व गुणों को प्रकट किया। इस दिन आरोग्य के देवता भगवान धन्वंतरि तथा धन एवं समृद्धि की देवी लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय इसी दिन धन्वंतरि आयुर्वेद और अमृत लेकर प्रकट हुए थे। दिवाली महापर्व का पहला दीप जलाकर शुरू हुए महोत्सव का एक अंग नए बर्तन खरीदना भी है, ताकि भगवान के लिए भोग-प्रसाद नए पात्र में तैयार किया जा सके।
दरअसल धन्वंतरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथों में अमृत से भरा कलश था और चूंकि भगवान धन्वंतरि कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसीलिए इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परंपरा है। धनतेरस मनाए जाने के संबंध में जो प्रचलित कथा है, उसके अनुसार कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन देवताओं और असुरों द्वारा मिलकर किए जा रहे समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से निकले नवरत्नों में से एक धन्वंतरि ऋषि भी थे, जो जनकल्याण की भावना से अमृत कलश सहित अवतरित हुए थे।
समुद्र मंथन की इस कथा का उल्लेख श्रीमद्भागवत पुराण, विष्णु पुराण, अग्नि पुराण, महाभारत इत्यादि विभिन्न पुराणों में मिलता है। समुद्र मंथन के दौरान कई प्रकार की औषधियां उत्पन्न हुईं और उसके बाद अमृत निकला। इसी अमृत कलश के लिए देवताओं और दानवों के बीच भयानक संग्राम हुआ था। धन्वंतरि ऋषि ने समुद्र से निकलकर देवताओं को अमृतपान कराया और उन्हें अमर कर दिया। यही वजह है कि धन्वंतरि को ‘आरोग्य का देवता’ माना जाता है और आरोग्य तथा दीर्घायु प्राप्त करने के लिए ही लोग इस दिन उनकी पूजा करते हैं।