ब्लॉग: कालगणना की वैज्ञानिक प्रस्तुति है विक्रम संवत आधारित पंचांग

By प्रमोद भार्गव | Published: April 9, 2024 11:33 AM2024-04-09T11:33:20+5:302024-04-09T11:40:49+5:30

विक्रम संवत का पहला महीना है चैत्र। इसका पहला दिन गुढ़ी पाड़वा कहलाता है। ब्रह्म-पुराण में कहा गया है कि इसी दिन ब्रह्माजी ने सूर्योदय के समय सृष्टि की रचना का आरम्भ किया था, इसलिए इसे नया दिन कहा जाता है।

Blog: Almanac based on Vikram Samvat is a scientific presentation of time calculation | ब्लॉग: कालगणना की वैज्ञानिक प्रस्तुति है विक्रम संवत आधारित पंचांग

फाइल फोटो

Highlightsविक्रम संवत का पहला महीना है चैत्र, इसका पहला दिन गुढ़ी पाड़वा कहलाता हैब्रह्म-पुराण में कहा गया है कि इसी दिन ब्रह्माजी ने सूर्योदय के समय सृष्टि की रचना का आरम्भ किया थाइस दिन कालगणना का प्रारंभ हुआ, भगवान श्री राम ने इसी दिन बालि का वध किया था

विक्रम संवत का पहला महीना है चैत्र। इसका पहला दिन गुढ़ी पाड़वा कहलाता है। ब्रह्म-पुराण में कहा गया है कि इसी दिन ब्रह्माजी ने सूर्योदय के समय सृष्टि की रचना का आरम्भ किया था, इसलिए इसे नया दिन कहा गया और कालगणना का प्रारंभ हुआ। भगवान श्री राम ने इसी दिन बालि का वध करके दक्षिण भारत की प्रजा को आतंक से छुटकारा दिलाया था। इस कारण भी इस दिन का विशेष महत्व है लेकिन दुर्भाग्यवश कालगणना का यह नए साल का पहला दिन हमारे राष्ट्रीय पंचांग का हिस्सा नहीं है।

कालमान या तिथिगणना किसी भी देश की ऐतिहासिकता की आधारशिला होती है किंतु जिस तरह से हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं को विदेशी भाषा अंग्रेजी का वर्चस्व धूमिल कर रहा है, कमोबेश यही हश्र हमारे राष्ट्रीय पंचांग, मसलन कैलेंडर का भी है। किसी पंचांग की कालगणना का आधार कोई न कोई प्रचलित संवत होता है। हमारे राष्ट्रीय पंचांग का आधार शक संवत है। शक परदेशी थे और हमारे देश में हमलावर के रूप में आए थे।

यह अलग बात है कि शक भारत में बसने के बाद भारतीय संस्कृति में ऐसे रच-बस गए कि उनकी मूल पहचान लुप्त हो गई। बावजूद शक संवत के लागू होने के बाद भी हम इस संवत के अनुसार न तो कोई राष्ट्रीय पर्व व जयंतियां मनाते हैं और न ही लोक परंपरा के पर्व। इसके बनिस्बत हमारे संपूर्ण राष्ट्र के लोक व्यवहार में विक्रम संवत के आधार पर तैयार किया गया पंचांग है।

हमारे सभी प्रमुख त्यौहार और तिथियां इसी पंचांग के अनुसार लोक मानस में मनाए जाते हैं। इस पंचांग की विलक्षणता है कि यह ईसा संवत् से तैयार ग्रेगोरियन कैलेंडर से भी 57 साल पहले वर्चस्व में आ गया था, जबकि शक संवत की शुरुआत ईस्वी संवत के 78 साल बाद हुई थी। प्राचीन भारत और मध्य-अमेरिका दो ही ऐसे देश थे, जहां आधुनिक सेकेंड से सूक्ष्मतर और प्रकाशवर्ष जैसे उत्कृष्ट कालमान प्रचलन में थे।

अमेरिका में मय सभ्यता का वर्चस्व था। मय संस्कृति में शुक्र ग्रह के आधार पर काल-गणना की जाती थी। विश्वकर्मा मय दानवों के गुरु शुक्राचार्य का पौत्र और शिल्पकार त्वष्टा का पुत्र था। मय के वंशजों ने अनेक देशों में अपनी सभ्यता को विस्तार दिया। इस सभ्यता की दो प्रमुख विशेषताएं थीं, स्थापत्य-कला और दूसरी सूक्ष्म ज्योतिष व खगोलीय गणना में निपुणता।

रावण की लंका का निर्माण इन्हीं मय दानवों ने किया था। प्राचीन समय में युग, मन्वन्तर, कल्प जैसे महत्तम और कालांश लघुतम समय मापक विधियां प्रचलन में थीं। ऋग्वेद में वर्ष को 12 चंद्रमासों में बांटा गया है। हरेक तीसरे वर्ष चंद्र और सौर वर्ष का तालमेल बिठाने के लिए एक अधिकमास जोड़ा गया। इसे मलमास भी कहा जाता है।

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