विनीत नारायण का ब्लॉग: युवाओं के राजनीति करने पर न उठे सवाल

By अनुराग आनंद | Published: December 23, 2019 04:59 AM2019-12-23T04:59:19+5:302019-12-23T04:59:19+5:30

रोचक बात ये है कि जो दल सत्ता में आकर छात्नों का दमन करते हैं, वही दल जब विपक्ष में होते हैं तो छात्न आंदोलनों को हवा देकर ही अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते हैं. इसमें कोई दल अपवाद नहीं है. अगर शिक्षा संस्थानों और अभिभावकों की दृष्टि से देखा जाए तो भी दो मत हैं.

vinit Narayan Blog: No questions raised about youth doing politics | विनीत नारायण का ब्लॉग: युवाओं के राजनीति करने पर न उठे सवाल

विनीत नारायण का ब्लॉग: युवाओं के राजनीति करने पर न उठे सवाल

Highlightsजो संस्थान या अभिभावक चाहते हैं कि उनके निर्देशन में युवा केवल पढ़ाई पर ध्यान दें, डिग्री हासिल करें और नौकरी करें, वे नहीं चाहते कि उनके पाल्य छात्न राजनीति में हिस्सा लें.अगर निष्पक्ष मूल्यांकन करें, तो हम पाएंगे कि जो छात्न केवल पढ़ाई पर ध्यान देते हैं और रट्ट तोते की तरह इम्तहान पास करते जाते हैं, उनके व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास नहीं होता.

विनीत नारायण

जब-जब छात्न राजनीतिक व्यवस्था के विरुद्ध सड़क पर उतरते हैं, तब-तब ये सवाल उठता है कि क्या छात्नों को राजनीति करनी चाहिए? जो राजनीतिक दल सत्ता में होते हैं, वे छात्न आंदोलन की भर्त्सना करते हैं. उसे हतोत्साहित करते हैं और जब छात्न काबू में नहीं आते तो उनका दमन करते हैं. फिर वो अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ स्वतंत्नता आंदोलन में कूदने वाले छात्न हों या 70 के दशक में गुजरात के नवनिर्माण आंदोलन से शुरू होकर जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति के आह्वान पर कूदने वाले छात्न हों या फिर अन्ना हजारे के आंदोलन में कूदने वाले छात्न हों.

रोचक बात ये है कि जो दल सत्ता में आकर छात्नों का दमन करते हैं, वही दल जब विपक्ष में होते हैं तो छात्न आंदोलनों को हवा देकर ही अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते हैं. इसमें कोई दल अपवाद नहीं है. अगर शिक्षा संस्थानों और अभिभावकों की दृष्टि से देखा जाए तो भी दो मत हैं.

जो संस्थान या अभिभावक चाहते हैं कि उनके निर्देशन में युवा केवल पढ़ाई पर ध्यान दें, डिग्री हासिल करें और नौकरी करें, वे नहीं चाहते कि उनके पाल्य छात्न राजनीति में हिस्सा लें. मगर एक दूसरा वर्ग उन शिक्षकों और अभिभावकों का है जो अपने छात्नों में पूर्ण विश्वास रखते हैं और जानते हैं कि चाहे वे छात्न राजनीति में कितना ही हिस्सा क्यों न लें, उनमेंं अपने भविष्य को लेकर पूरी स्पष्टता है. इसलिए वे पढ़ाई की कीमत पर आंदोलन नहीं करेंगे. ऐसे संस्थान और अभिभावक छात्नों को रचनात्मक राजनीति करने से नहीं रोकते.

अगर निष्पक्ष मूल्यांकन करें, तो हम पाएंगे कि जो छात्न केवल पढ़ाई पर ध्यान देते हैं और रट्ट तोते की तरह इम्तहान पास करते जाते हैं, उनके व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास नहीं होता. प्राय: ऐसे नौजवानों में सामाजिक सरोकार भी नहीं होते. उनका व्यक्तित्व एकांगी हो जाता है और जीवन के संघर्षो में वे उतनी मजबूती से नहीं खड़े हो पाते, जितना कि वे छात्न खड़े होते हैं, जिन्होंने शिक्षा के साथ सामाजिक सरोकारों को बनाए रखा हो. जो छात्न विज्ञान, शोध या तकनीकी के क्षेत्न में जाते हैं, उनकी बात दूसरी है. उनका ध्यान अपने विषय पर ही केंद्रित रहता है .

इसलिए मैं इस बात का समर्थक हूं कि छात्नों को राजनीति में सक्रि य रूप से भाग लेना चाहिए. प्रांतीय और केंद्र सरकार का ये दायित्व है कि वे छात्न राजनीति पर तब तक अंकुश न लगाएं, जब तक कि वह हिंसात्मक या विध्वंसात्मक न हो. ऐसी छात्न राजनीति समाज की घुटन को ‘सेफ्टी वाल्व’ के रूप में बाहर निकालती है और ये राजसत्ता के हित में है.

Web Title: vinit Narayan Blog: No questions raised about youth doing politics

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