विनीत नारायण का ब्लॉग: राष्ट्रीय सरकार क्यों न बने?
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 22, 2019 07:03 PM2019-01-22T19:03:07+5:302019-01-22T19:03:07+5:30
इससे यह स्पष्ट है कि चुनाव के पहले मतदाताओं को भ्रमित करने के लिए जो भी राजनैतिक आतिशबाजी की जाती है, वो मात्र छलावा होता है. अंदर से सब एक ही हैं.
संसदीय चुनाव दस्तक दे रहा है. सत्ता पक्ष खम ठोक कर अपने वापस आने का दावा कर रहा है और साथ ही विपक्षी दलों के गठबंधन को अवसरवादियों का जमावड़ा बता रहा है. आने वाले दिनों में दोनों ओर से हमले तेज होंगे. कुछ अप्रत्याशित घटनाएं भी हो सकती हैं जिनसे मतों का ध्रुवीकरण किया जा सके. पर चुनाव के बाद की स्थिति अभी स्पष्ट नहीं है.
हर दल अपने दिल में जानता है कि इस बार किसी की भी बहुमत की सरकार बनने नहीं जा रही. जो दूसरे दलों को अवसरवादी बता रहे हैं, वे भी सत्ता पाने के लिए चुनाव के बाद किसी भी दल के साथ गठबंधन करने को तत्पर होंगे.
इतिहास इस बात का गवाह है कि भजपा हो या कांग्रेस, तृणमूल हो या सपा, तेलुगूदेशम हो या डीएमके, शिवसेना हो या राष्ट्रवादी कांग्रेस, रालोद हो या जनता दल, कोई भी दल, अवसर पड़ने पर किसी भी अन्य दल के साथ समझौता कर लेता है. तब सारे मतभेद भुला दिए जाते हैं. चुनाव के पहले की कटुता भी याद नहीं रहती.
इससे यह स्पष्ट है कि चुनाव के पहले मतदाताओं को भ्रमित करने के लिए जो भी राजनैतिक आतिशबाजी की जाती है, वो मात्र छलावा होता है. अंदर से सब एक ही हैं.
क्या जो सरकार बनेगी, वो मतदाताओं की आकांक्षाओं के अनुरूप काम करेगी? अगर उत्तर है नहीं, तो फिर ये सब हंगामा और नाटकबाजी क्यों? क्यों न एकबार राष्ट्रीय सरकार के गठन का प्रयोग किया जाए. जो भी राजनैतिक दल आज चुनाव के मैदान में उतर रहे हैं, उन सबके जीते हुए सांसद मिलकर लोकतांत्रिक प्रक्रिया से एक साझी सरकार का गठन करें.
राष्ट्रीय सरकार का ढांचा लगभग उसी तरह होगा, जैसा ई.पू. की सदियों में भारत के गणराज्यों में होता था. वो प्रथा कई शताब्दियों तक सुचारू रूप से चली. रोमन साम्राज्य में भी इसी को बहुत दिनों तक सफलतापूर्वक चलाया गया. बाद में गणराज्य व्यवस्था में जो दोष उभर आए थे और जिनके कारण वह व्यवस्था क्र मश: लुप्त हो गई, उन दोषों पर भी मंथन कर लिया जाए.
यह विषय राजनैतिक दलों के लिए ही नहीं देश के बुद्धिजीवी वर्ग, राजनैतिक चिंतक व आम आदमी के लिए भी विचार करने योग्य है. हो सकता है कि हम सबके सामूहिक चिंतन, सद्भावना और भगवतकृपा से कुछ ऐसा स्वरूप निकलकर सामने आए कि हम राजनीति की वर्तमान दलदल से बाहर निकलकर सुनहरे भारत का निर्माण कर सकें जिसमें हर नागरिक को सम्मान से जीने का अवसर हो. भारतवासी सुखी, संपन्न व संतुष्ट हो सके