पीयूष पांडे का ब्लॉग: विचारधारा के नाम ख़ुला खत

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 20, 2019 11:53 PM2019-12-20T23:53:16+5:302019-12-20T23:53:16+5:30

जिस तरह मौसम बदलते हैं, विचारधारा तुम भी बदल गईं. मैं तो राजनीति में हूं, पार्टियां बदलना मजबूरी है. टिकट बंटते वक्त एक पार्टी में रहना पड़ता है. टिकट कट जाए तो दूसरी पार्टी की तरफ भागना पड़ता है. कभी-कभी एक ही दिन में दो-चार पार्टियां बदलनी पड़ती हैं.

piyush pandey blog: open letter in the name of ideology | पीयूष पांडे का ब्लॉग: विचारधारा के नाम ख़ुला खत

पीयूष पांडे का ब्लॉग: विचारधारा के नाम ख़ुला खत

Highlightsएक दिन तुम हांफने लगीं. मुझे डर लगा कि कहीं हांफते-हांफते तुम्हें अस्थमा न हो जाए.मेरी राय उस दिन सही निकली, जिस दिन मैंने 111 वीं पार्टी बदली थी. विचारधारा, तुम्हें याद है कि उस दिन तुम बेहोश हो गई थीं.  

पीयूष पांडे
प्रिय विचारधारा,
तुम कहां चली गई हो? अरसे से तुम्हारा कोई अता-पता नहीं. एक जमाने में तुम चौबीस घंटे हमारे साथ रहा करती थीं. तुम्हें याद है विचारधारा, दो-चार बार तो लोगों ने तुम्हें सरेआम छेड़ा तो हमारी उन लोगों से कितनी लड़ाई हुई थी. तुम हमेशा हमारे सिर पर सवार रहती थीं.

जिस तरह मौसम बदलते हैं, विचारधारा तुम भी बदल गईं. मैं तो राजनीति में हूं, पार्टियां बदलना मजबूरी है. टिकट बंटते वक्त एक पार्टी में रहना पड़ता है. टिकट कट जाए तो दूसरी पार्टी की तरफ भागना पड़ता है. कभी-कभी एक ही दिन में दो-चार पार्टियां बदलनी पड़ती हैं. तुम्हें शायद बिल्कुल अंदाजा नहीं है कि कितना हेक्टिक जॉब है पॉलिटिक्स अब. शुरुआत में मैंने जब पार्टियां बदलनी शुरू कीं तो तुम भी मेरे साथ इधर-उधर भागीं.

एक दिन तुम हांफने लगीं. मुझे डर लगा कि कहीं हांफते-हांफते तुम्हें अस्थमा न हो जाए. मेरी राय उस दिन सही निकली, जिस दिन मैंने 111 वीं पार्टी बदली थी. विचारधारा, तुम्हें याद है कि उस दिन तुम बेहोश हो गई थीं.  

मजेदार बात तो यह कि पहला चुनाव भी मैं तुम्हारे ही भरोसे जीता था. तुम 24 घंटे मेरे साथ हर इलाके में गईं. लोगों को समझाया कि विपक्षी चोर है. पता है, चुनाव हारने के बाद वो ‘चोर’ हमारी ही पार्टी में आ गए थे. मैं नेक दिल आदमी हूं. मैंने भी सबको क्लीन चिट दे दी.

मैं जानता हूं विचारधारा कि तुम मेरे पार्टी बदलने की वजह से कार्यकर्ताओं को होने वाली परेशानी से खफा थीं. कई बार कार्यकर्ता सुबह भगवा झंडा खरीदकर लाते और शाम होते होते मैं उन्हें भगवा को हरा करने का आदेश दे देता. रात होते होते मैं उसमें कोई दूसरा रंग मिलाने को कहता. यह गड़बड़

पोस्टर-बैनर को लेकर भी होती. कुछ कार्यकर्ता सुबह सुबह विपक्षी दल के कार्यकर्ताओं की ठुकाई कर दफ्तर आते ताकि मैं उन्हें शाबाशी दूं लेकिन मैं नए गठबंधन के तहत विपक्षी दल के कार्यकर्ताओं को गले लगाने का आदेश देता, इससे कार्यकर्ता झुंझलाते तो थे.

लेकिन वो पुरानी बातें हैं विचारधारा. अब कहां हो तुम? ठीक हो? जीवित हो या नहीं, मुङो कुछ पता नहीं. कभी-कभी तुम्हारी बहुत याद आती है. लेकिन एक पल बाद ही सत्ता, ठेके, मलाई, पद और पैसे की भी याद आती है तो फिर तुम्हें भूल जाता हूं. खैर! आज अचानक तुम्हारी याद आ गई तो खत लिख रहा हूं. इंटरनेट के दौर में विचारधारा, तुम तक मेरा खुला खत वायरल होकर पहुंचे- यही कामना.
तुम्हारा पूर्व साथी

English summary :
piyush pandey blog: open letter in the name of ideology


Web Title: piyush pandey blog: open letter in the name of ideology

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