गेस्ट हाउस कांड में ऐसा क्या हुआ जिसने मायावती के कपड़े पहनने का स्टाइल ही बदल दिया!
By आदित्य द्विवेदी | Published: January 15, 2018 04:23 PM2018-01-15T16:23:54+5:302018-01-15T18:23:30+5:30
2 जून 1995 का चर्चित गेस्ट हाउस कांड। क्या है उस उत्तर प्रदेश की राजनीति के 'ब्लैक डे' की पूरी कहानी।
2 जून 1995। उत्तर प्रदेश के राजनीतिक इतिहास का एक काला अध्याय। 'गेस्ट हाउस कांड' के नाम से चर्चित यह घटना इतनी भयावह थी कि इसने मायावती के कपड़े पहनने का स्टाइल ही बदल दिया। कहा जाता है कि इस कांड से पहले वो साड़ी पहनती थी लेकिन उसके बाद सलवार कुर्ता पहनने लगी। एक ऐसी घटना जिसमें लखनऊ के गेस्ट हाउस में मौजूद एक उन्मादी समूह बसपा सुप्रीमो मायावती की आबरू लूटने पर आमादा थी।
अजॉय बोस ने 'बहन जी' नाम से एक किताब लिखी है जिसमें लखनऊ के राजकीय गेस्ट हाउस में हुई घटना का वर्णन कुछ इस प्रकार है। अजय बोस कि किताब के हिंदी अनुवाद में पृष्ठ संख्या 104 और 105 के मुताबिक,
''...चीख-पुकार मचाते हुए वे अश्लील भाषा और गाली-गलौज का इस्तेमाल कर रहे थे। कॉमन हॉल में बैठे बसपा विधायकों ने जल्दी से मुख्य द्वार बंद कर दिया, लेकिन उन्मत्त झुंड ने उसे तोड़कर खोल दिया। फिर वे असहाय बसपा विधायकों पर टूट पड़े और उन्हें थप्पड़ मारने और लतियाने लगे। कम-से-कम पांच बसपा विधायकों को घसीटते हुए जबरदस्ती गेस्ट हाउस के बाहर ले जाकर गाड़ियों में डाला गया, जो उन्हें मुख्यमंत्री के निवास स्थान पर ले गईं। उन्हें राजबहादुर के नेतृत्व में बसपा विद्रोही गुट में शामिल होने के लिए और एक कागज पर मुलायम सिंह सरकार को समर्थन देने की शपथ लेते हुए दस्तखत करने को कहा गया। उनमें से कुछ तो इतने डर गए थे कि उन्होंने कोरे कागज पर ही दस्तखत कर दिए।
विधायकों को रात में काफी देर तक वहां बंदी बनाए रखा गया, जिस समय अतिथिगृह में बसपा विधायकों को इस तरह से धर कर दबोचा जा रहा था, जैसे मुर्गियों को कसाई खाने ले जाया जा रहा हो, कमरों के सेट 1-2 के सामने, जहां मायावती कुछ विधायकों के साथ बैठी थीं। एक विचित्र नाटक घटित हो रहा था। बाहर की भीड़ से कुछ कुछ विधायक बच कर निकल आए थे और उन्होंने उन्हीं कमरों मे छिपने के लिए शरण ले ली थी। अंदर आने वाले आखिरी वरिष्ठ बसपा नेता आरके चौधरी थे, जिन्हें सिपाही रशीद अहमद और चौधरी के निजी रक्षक लालचंद की देखरेख में बचा कर लाए थे। कमरों में छिपे विधायकों को लालचंद ने दरवाजे अंदर से लॉक करने की हिदायत दी और उन्होंने अभी दरवाजे बंद ही किए थे कि भीड़ में से एक झुंड गलियारे में धड़धड़ाता हुआ घुसा और दरवाजा पीटने लगा।
'...... (जातिसूचक शब्द) औरत को उसकी मांद में से घसीट कर बाहर निकालो' भीड़ की दहाड़ सुनाई दी, जिसमें कुछ निर्वाचित विधायक और थोड़ी सी महिलाएं भी शामिल थीं। दरवाजा पीटने के साथ-साथ चिल्ला-चिल्लाकर ये भीड़ गंदी गालियां देते हुए ब्योरेवार व्याख्या कर रही थी कि एक बार घसीट कर बाहर निकालने के बाद मायावती के साथ क्या किया जाएगा। परिस्थिति बहुत जल्दी से काबू के बाहर होती जा रही थी।
मायावती को दो कनिष्ठ पुलिस अफसरों की हिम्मत ने बचाया। ये थे विजय भूषण, और सुभाष सिंह बघेल, जिन्होंने कुछ सिपाहियों को साथ ले कर बड़ी मुश्किल से भीड़ को पीछे धकेला। फिर वे सब गलियारें मे कतारबद्घ होकर खड़े हो गए ताकि कोई भी उन्हें पार न कर सके। क्रोधित भीड़ ने फिर भी नारे लगाना और गालियां देना चालू रखा और मायावती को घसीट कर बाहर लाने की धमकी देती रही। बाद में कुछ पुलिस अफसरों की साहसपूर्ण कार्यवाही से भीड़ को तितर-बितर किया जा सका और देर रात मायावती को वहां से बाहर निकाला जा सका।''
सपा कार्यकर्ता और विधायकों में क्यों था इतना आक्रोश? क्यों उन्मादी भीड़ बसपा सुप्रीमो मायावती की आबरू लूटने पर आमादा थी? इन सवालों के जवाब जानने के लिए थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा।
1992 में बाबरी विध्वंस के बाद प्रदेश में राष्ट्रपति शासन चल रहा था। 1993 में ध्रुवीकरण से निपटने के लिए राजनीतिक के दो विपरीत ध्रुवों बसपा और सपा ने साथ में चुनाव लड़ा लेकिन दुर्भाग्य से किसी को बहुमत नहीं मिल सका। 4 दिसंबर 1993 को गठबंधन की सरकार बनी लेकिन आपसी मन-मुटाव के चलते 2 जून 1995 को बसपा ने सरकार से किनारा करने का फैसला किया। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को यह बात नागवार गुजरी। उन्होंने राजबहादुर समेत कुछ बीएसपी विधायकों को तोड़ लिया लेकिन बगावत के चलते उन विधायकों की सदस्यता पर खतरा मंडराने लगा। इसके लिए एक तिहाई बसपा विधायकों का टूटना जरूरी था।
2 जून 1995 को मायावती अपने विधायकों के साथ लखनऊ के सरकारी गेस्ट हाउस में ठहरी हुई थी। वहीं पर समाजवादी पार्टी के बाहुबली नेता पहुंचे और उस काले अध्याय को लिखा जिसे 'गेस्ट हाउस कांड' कहा जाता है। इस घटना के बाद कांशीराम ने कहा कि यह मायावती की सबसे बड़ी राजनीतिक परीक्षा थी जिसमें वो सफल रही हैं। इस घटना के बाद 3 जून 1995 को यूपी के तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल वोरा ने मायावती को देश के सबसे बड़े सूबे का मुख्यमंत्री नियुक्त किया और बाद में बीजेपी के समर्थन से बहुमत भी साबित हो गया।