कैराना उपचुनाव हारे तो BJP बदलेगी मूड, खतरे में पड़ सकती है योगी आदित्यानाथ की कुर्सी
By खबरीलाल जनार्दन | Published: May 28, 2018 11:54 AM2018-05-28T11:54:29+5:302018-05-28T11:54:29+5:30
गोरखपुर-फूलपुर हारने के बाद योगी आदित्यनाथ के तेवर कमजोर पड़ गए हैं।
योगी राज में गोरखपुर, फूलपुर लोकसभा उपचुनावों के बाद आज कैराना में लोकसभा उपचुनाव हो रहे हैं। यह सीट भारतीय जनता पार्टी के सांसद हुकूम सिंह की मृत्यु हो जाने खाली हुई है। यहां भी बीजेपी की भिड़ंत संयुक्त विपक्ष से है। लेकिन इस बार चुनाव प्रचार के दौरान एक बेहद खास बात नजर आई है कि योगी आदित्यानाथ ने उस लहजे में बुआ-बउआ कहते नजर नहीं जैसा उन्हें गोरखपुर और फूलपुर उपचुनावों के वक्त कहते देखा गया था।
कैराना की गोरखपुर-फूलपुर उपचुनाव से समानता
गोरखपुर सीट उपचुनाव से पहले बीजेपी के खाते में थी। योगी आदित्यनाथ वहां के सांसद थे। लेकिन यूपी सीएम बनने के लिए उन्होंने सीट खाली की थी। फूलपुर सीट भी उपचुनाव से पहले बीजेपी के पास थी। आजादी के बाद पहली बाद वहां 2014 के मोदी लहर में केशव प्रसाद मौर्य ने कमल खिलाया था। लेकिन उन्होंने यूपी डिप्टी सीएम बनने के लिए सीट खाली कर दी थी। कैराना सीट भी बीजेपी सांसद के निधन से खाली हुई है।
गोरखपुर-फूलपुर योगी आदित्यानाथ से उनकी भाषा में बुआ-बउआ ने छीन ली थी। इस बार फिर से यही जोड़ी योगी आदित्यानाथ के सामने है। इस बार जोड़ी ज्यादा मजबूत हो गई है क्योंकि 25 साल बाद साथ आई समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के साथ इसमें राष्ट्रीय लोकदल भी है।
कैराना उपचुनाव में भाजपा का मुकालबा संयुक्त विपक्ष से है। भाजपा सांसद हुकूम सिंह की मृत्यु हो जाने के चलते इस सीट पर चुनाव कराना आवश्यक हो गया था। उनकी बेटी मृगांका सिंह उपचुनाव में भाजपा की उम्मीदवार हैं। उनका सीधा मुकाबला राष्ट्रीय लोक दल की तबस्सुम हसन से है। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी तबस्सुम का समर्थन कर रही हैं।
योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने पर थी उहापोह की स्थिति
साल 2017 में उत्तर प्रदेश में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिलने के बाद सीएम तय करने में बीजेपी में उहापोह की स्थिति थी। बीजेपी के करीबी सूत्र बताते हैं कि मनोज जायसवाल का नाम करीब-करीब तय हो गया था। वे मोदी-शाह के करीबी भी थे। लेकिन योगी आदित्यनाथ ने अपनी गोरखपुर की छवि के आधार पर अड़ गए थे।
लेकिन गोरखपुर, फूलपुर हारने के बाद योगी आदित्यनाथ की साख का ऐसा बट्टा लगा कि कर्नाटक चुनावों में उनकी सक्रियता पर सवालिया चिह्न लग गया था। जबकि कर्नाटक में नाथ संप्रदाय के मठों के महंत योगी आदित्यनाथ हैं। लेकिन आखिरी वक्त में महज दो दिन की उनकी रैलियां लगाई गईं। उनमें भी बीच में वे छोड़कर लौट आए, क्योंकि यूपी में तूफान के चलते 70 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी।
वहां एक साफ संदेश मिला था कि योगी आदित्यनाथ को बीजेपी संगठन को देशभर में फैलाने के बजाए पहले यूपी बचाने की सलाह दे दी गई थी। उल्लेखनीय है सीएम बनने से पहले तक योगी आदित्यनाथ ने बीजेपी में शामिल नहीं हुए थे। वे बस बीजेपी से समान सोच रखने वाले हिन्दू युवा वाहिनी संगठन के सुप्रीमो थे।
मोदी के बरक्स खड़ा होने की योगी की तैयारी फेल ना हो जाए
बीते कुछ दिनों से बीजेपी में नेता के तौर पर नरेंद्र मोदी के बाद योगी आदित्यनाथ का नाम नंबर 2 पर आने लगा था। लेकिन पार्टी सूत्रों का कहना है कि इसमें संगठन की मर्जी कम योगी आदित्यनाथ की मर्जी ज्यादा थी। साथ ही बीजेपी को बाहर से समर्थन देने वाले कुछ संगठनों का दबाव भी। ऐसे में आलाकमान पहले से ही योगी के नाम पर एकमत नहीं और एक के बाद एक महत्वपूर्ण सीटों पर योगी विफल होते हैं तो यूपी की राजनीति कुछ बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि अगर बीजेपी 2019 में यूपी में अपना पिछला प्रदर्शन दोहराना चाहती है और योगी लगातार फेल होते रहे तो उससे पहले उनकी जगह कोई शाह-मोदी का पसंदीदा चेहरा यहां देखने को मिले।