क्या अखिलेश-माया के इस कदम को हिंदुत्ववादी ताकतों के दूरगामी हार के तौर पर देखा जाना चाहिए?

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: June 20, 2018 03:12 PM2018-06-20T15:12:07+5:302018-06-20T15:44:55+5:30

भाजपा इस गठजोड़ की संभावनाओं को न केवल स्वीकार कर चुकी है, बल्कि अब उसी तर्ज पर सोच रही है व प्रतिक्रिया कर रही है।

Is Mayawati Akhilesh Yadav Alliance Beat Beat in 2019 loksabha | क्या अखिलेश-माया के इस कदम को हिंदुत्ववादी ताकतों के दूरगामी हार के तौर पर देखा जाना चाहिए?

क्या अखिलेश-माया के इस कदम को हिंदुत्ववादी ताकतों के दूरगामी हार के तौर पर देखा जाना चाहिए?

-अभय कुमार दुबे
उत्तर प्रदेश में मायावती और अखिलेश यादव की दिलचस्प जुगलबंदी जारी है और इन दोनों के संयुक्त आलाप भाजपा के कानों में पिघला हुआ सीसा उंडेल रहे हैं। इस जुगलबंदी की सबसे ताजा उठान मायावती का एक कथन और उसका अखिलेश द्वारा दिया गया जवाब है। पहले मायावती ने कहा कि अगर उन्हें सम्मानजनक सीटें नहीं मिलीं तो वे गठबंधन नहीं करेंगी। जवाब में अखिलेश ने कह दिया कि वे कुछ सीटों का नुकसान उठा कर भी भाजपा को हराने के लिए बसपा के साथ गठजोड़ करने को तैयार हैं। बात केवल यहीं तक नहीं है, बल्कि अंदरखाने यह तक कहा जा रहा है कि दोनों पार्ट‌ियों के बीच सीटों के तालमेल पर अनौपचारिक चर्चा भी होने लगी है। इसी की एक झलक तब मिली जब अखिलेश ने इशारा किया कि वे कन्नौज से लड़ेंगे और उनके पिता मुलायम सिंह मैनपुरी से। गठजोड़ की संभावनाओं से नित्य-प्रति आहत होने वाली भाजपा ने फौरन आरोप लगा दिया कि अखिलेश का यह वक्तव्य गठजोड़-धर्म का उल्लंघन है क्योंकि उन्होंने सीटों के तालमेल की औपचारिक घोषणा के बिना ही दो निर्वाचन-क्षेत्रों को अपना बताने की जुर्रत की है। भाजपा का यह इल्जाम ही बताता है कि वह भी गठजोड़ की संभावनाओं को न केवल स्वीकार कर चुकी है, बल्कि अब उसी तर्ज पर सोच रही है व प्रतिक्रिया कर रही है।

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मेरे जैसे प्रेक्षक यह मानते रहे हैं कि उप्र में इस तरह के गठजोड़ की आवाज जमीन से उठ रही है। यानी सपा के मुख्य जनाधार (यादव/अहीर) और बसपा के मुख्य जनाधार (जाटव/चमार) की तरफ से अपने-अपने नेताओं के ऊपर ऐसा गठजोड़ करने का दबाव है। इस दबाव की व्याख्या इस तरह की जाती है कि प्रदेश की इन दोनों संख्यात्मक और राजनीतिक रूप से शक्तिशाली बिरादरियों को सत्ता का स्वाद लग चुका है। 2007 में जाटव समुदाय और 2012 में यादव समुदाय बहुमत की सरकार देख चुका है। लेकिन 2014 और फिर 2017 में भाजपा ने जिस तरह इन दोनों की धुलाई की, उससे चौंक कर अब उनमें मिलजुल कर भाजपा को पराजित करने की रणनीतिक चेतना आ गई है। इसीलिए नेतागण आपसी मतभेद थोड़ी देर के लिए भुला कर गठबंधन करने के लिए तैयार बैठे हैं। यह परिदृश्य तीन तरह के प्रश्नों को हमारे सामने पेश करता है। पहला, क्या यह गठजोड़ केवल लोकसभा चुनाव जीतने के परिप्रेक्ष्य के साथ होगा? दूसरा, क्या यह गठजोड़ 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी जारी रह सकता है? और तीसरा, क्या भाजपा की इस संभावित राजनीतिक पराजय को ¨हंदुत्ववादी ताकतों की दूरगामी पराजय के तौर पर देखा जाना चाहिए? आइए, एक-एक कर इन तीनों प्रश्नों पर गौर किया जाए।

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जहां तक लोकसभा चुनाव का सवाल है, यह गठजोड़ होना बहुत आसान है। मैं पहले भी दलील दे चुका हूं कि इस चुनाव में मुख्यमंत्री पद दांव पर नहीं है, इसलिए न तो मायावती को प्रदेश की गद्दी का त्याग करना है और न अखिलेश को। दोनों में से कोई सीधे-सीधे प्रधानमंत्री पद का भी दावेदार नहीं है। लोकसभा के लिए हो सकने वाले गठजोड़ में केवल एक ही पेंच है: कांग्रेस का। कांग्रेस की उत्तर प्रदेश में कोई खास हैसियत नहीं है, पर संसदीय चुनावों से पहले और उसके तुरंत बाद बसपा को कई विधानसभा चुनावों में उसके साथ गठजोड़ करना है। मसलन, बहुत संभावना है कि बसपा पहले राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश का चुनाव कांग्रेस के साथ लड़े, और लोकसभा के बाद हरियाणा का चुनाव उसे कांग्रेस के साथ मिल कर लड़ना पड़ सकता है। ऐसे में कांग्रेस मायावती पर दबाव डाल सकती है कि उप्र में उसे भी कुछ हिस्सा मिलना चाहिए। कांग्रेस दस से बीस सीटों के बीच में किसी संख्या पर संतुष्ट होगी। लेकिन, सपा-बसपा को छोटी-छोटी पार्टयिों को भी कुछ न कुछ देना है। तभी वे भाजपा को कोने में धकेल पाएंगी। मसलन, उप्र में अगर अपना दल, सुहैलदेव पार्टी और निषाद पार्टी जैसे संगठनों को भाजपा के पाले में रहने दिया गया, तो वह उतनी कमजोर नहीं हो पाएगी जितना समझा जा रहा है। भाजपा को एक बार फिर ब्राह्मण-बनिया पार्टी में घटाने के लिए जरूरी है कि पटेल परिवार और ओमप्रकाश राजभर जैसे नेताओं की मदद उसे न मिले। ऐसा सपा-बसपा के रणनीतिकारों का सोचना है। इस लिहाज से कांग्रेस का मामला उप्र में फंसा हुआ है।

(अभय कुमार दुबे वरिष्ठ पत्रकार व चुनाव विश्लेषक हैं)

Web Title: Is Mayawati Akhilesh Yadav Alliance Beat Beat in 2019 loksabha

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