हरीश गुप्ता का ब्लॉग: सोनिया गांधी ने फिर से संभाली जिम्मेदारी

By हरीश गुप्ता | Published: January 28, 2021 02:38 PM2021-01-28T14:38:16+5:302021-01-28T14:40:00+5:30

2004 में, राहुल गांधी अपने साथ पार्टी का कायाकल्प करने की उम्मीद लेकर आए थे. फिर भी, सोनिया ने असंतुष्टों सहित कार्यसमिति के सभी सदस्यों से एक भावुक अपील की थी कि पहली प्राथमिकता भाजपा को आगामी विधानसभा चुनावों में हराना है.

Harish Gupta's blog: Sonia Gandhi again takes over the responsibility | हरीश गुप्ता का ब्लॉग: सोनिया गांधी ने फिर से संभाली जिम्मेदारी

सोनिया गांधी (फाइल फोटो)

सोनिया गांधी वह करने की कोशिश कर रही हैं जिसके लिए वे जानी जाती हैं अर्थात गठबंधन. उन्होंने गठबंधन करके 2004 में वाजपेयी को सफलतापूर्वक सत्ता से बाहर किया. लेकिन 2021 अब 2004 नहीं है.

उन्होंने अपने सबसे विश्वसनीय सहयोगी अहमद पटेल को खो दिया है और राहुल गांधी कार्यकर्ताओं व लोगों को व्यापक रूप से उत्साहित करने में विफल रहे हैं.

2004 में, राहुल अपने साथ पार्टी का कायाकल्प करने की उम्मीद लेकर आए थे. फिर भी, सोनिया ने असंतुष्टों सहित कार्यसमिति के सभी सदस्यों से एक भावुक अपील की कि पहली प्राथमिकता भाजपा को आगामी विधानसभा चुनावों में हराना है.

पार्टी के भीतर शांति कायम करने के बाद, सोनिया गांधी ने अब पुडुचेरी और असम व केरल पर ध्यान केंद्रित किया है. कांग्रेस और वाम दल प्रतिद्वंद्वी हो सकते हैं लेकिन दोनों का पश्चिम बंगाल में गठबंधन है.

तमिलनाडु में, कांग्रेस द्रमुक के साथ सहयोगी की भूमिका में है. जिस तरह से सोनिया गांधी ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को असम के पर्यवेक्षक के रूप में प्रतिनियुक्त किया और उन्होंने कुछ ही समय में पांच अन्य विपक्षी दलों के साथ गठबंधन किया, उसने भाजपा को चिंतित कर दिया है.

भाजपा और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट के रास्ते पहले ही अलग-अलग हो गए हैं. पार्टी के सबसे बड़े नेता तरुण गोगोई की मृत्यु के बाद बघेल गुटबाजी में फंसी राज्य इकाई को संगठित रखकर सकारात्मक तरीके से आगे बढ़ रहे हैं. सोनिया ने भी राहुल के परिवर्तन के विचार को परे रखकर पश्चिम बंगाल में कांग्रेस-वाम गठबंधन की मंजूरी दी.

इन महत्वपूर्ण राज्यों में कांग्रेस के लिए नुकसान सोनिया के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है क्योंकि भाजपा पश्चिम बंगाल को जीतने, असम में सत्ता बरकरार रखने और तमिलनाडु, पुडुचेरी व केरल में अपनी पकड़ मजबूत करने में कोई कसर बाकी नहीं रख रही है.

सचमुच ही स्वतंत्र है सीबीआई?

सीबीआई की स्वतंत्रता पर संदेह करने वालों को अपनी राय बदलने की जरूरत है. उसने हाथरस बलात्कार और हत्या के मामले की जांच पूरी करने में बहुत तत्परता दिखाई. योगी आदित्यनाथ ने इन आरोपों से इनकार करते हुए कहा था कि यह उनकी सरकार को अस्थिर करने की साजिश थी.

सितंबर 2020 की घटना ने देश को हिलाकर रख दिया था और सीबीआई को जांच सौंपी गई थी. यह अनुमान लगाया गया था कि सीबीआई महीनों या वर्षो तक जांच जारी रखेगी. आखिरकार, ऐसे कई मामले हैं जहां सीबीआई फॉरेंसिक सबूत, विसरा रिपोर्ट आदि का इंतजार कर रही है.

यहां तक कि आखिरी उदाहरण जून 2020 में सुशांत सिंह राजपूत की कथित आत्महत्या का है. मुंबई पुलिस के पास हत्या का कोई सबूत नहीं था, एनसीबी को सुशांत की लिव-इन पार्टनर रिया चक्रवर्ती के खिलाफ ड्रग्स के बारे में कोई सबूत नहीं मिला, ईडी को कदम पीछे खींचने के लिए मजबूर किया गया और अन्य एजेंसियां शांत हो गईं.

फिर भी बिहार चुनाव खत्म होने के बाद भी सीबीआई ने असामान्य देरी का कोई कारण नहीं देते हुए इसकी जांच जारी रखी है. लेकिन हाथरस मामले में सीबीआई ने चार महीने के भीतर पुष्टि कर दी कि यह बलात्कार और हत्या का मामला था. यह योगी के लिए भारी झटका था.

जब योगी ने दिल्ली में राजनीतिक आकाओं से नाखुशी जाहिर की तो उनसे विनम्रता से कहा गया, ‘‘हम सीबीआई के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करते हैं. यह वास्तव में स्वतंत्र है.’’ इसमें कोई संदेह नहीं है कि भगवाधारी संन्यासी के लगातार बढ़ते कद ने दिल्ली में हलचल मचा दी है.

भगवा ब्रिगेड के लिए, वे एक आइकन और पसंदीदा नेता हैं और चुनाव प्रचार के लिए देश भर में उनकी बड़ी मांग है. सत्ता के गलियारों में, सीबीआई के हाथरस मामले को आदित्यनाथ के पर कतरने की राजनीति से भरी चाल के रूप में देखा जा रहा है. तब तक इंतजार करें!!

भाग्यशाली साबित होंगे सीबीआई प्रमुख! 

नए सीबीआई प्रमुख के चयन के लिए भारी कवायद चल रही है क्योंकि वर्तमान प्रमुख आर.के. शुक्ला एक फरवरी को सेवानिवृत्त होने वाले हैं. लेकिन नए प्रमुख के चयन के लिए चयन समिति की बैठक होने का कोई संकेत नहीं है, जिसमें प्रधानमंत्री, भारत के प्रधान न्यायाधीश और लोकसभा में सबसे बड़े दल (कांग्रेस) के नेता शामिल हैं.

बीएसएफ के डीजी राकेश अस्थाना और एनआईए के डीजी डॉ. वाई. सी. मोदी इस पद के लिए शीर्ष दावेदार हैं. दोनों पीएम के पसंदीदा लोगों में से हैं. लेकिन पीएमओ के एक अंदरूनी सूत्र का कहना है कि कुछ और भी पक रहा है. लो-प्रोफाइल और चमक-दमक से दूर रहने वाले आर. के. शुक्ला को एक सरप्राइज मिल सकता है.

उन्होंने पिछले दो वर्षो के दौरान सराहनीय काम किया है. वे मीडिया से नहीं मिलते, टीवी पर नहीं आते. बॉस ऐसे अधिकारियों को पसंद करता है. फिर ऐसी व्यवस्था से छेड़छाड़ की क्या जरूरत? उन्हें सेवा विस्तार क्यों न दिया जाए, ऐसा सूत्र का कहना है.

नौकरशाही सर्वोच्च

पीएमओ के तहत डीओपीटी ने अधिकारियों (आईएएस) से इस बात के आग्रह के लिए एक के बाद एक कई परिपत्र जारी किए हैं कि आचरण नियमावली, 1968 के तहत वे अपनी अचल संपत्ति का विवरण प्रस्तुत करें, जो उन्हें विरासत में मिली है या कमाई है या अपने अथवा परिवार के किसी सदस्य के नाम पर गिरवी रखी है.

तकरीबन आधे अधिकारियों ने तो जवाब देने तक की परवाह ही नहीं की. हालांकि इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है.

 

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