लाइव न्यूज़ :

कांग्रेसी असंतुष्टों के भगवा पगड़ी पहनने के मायने, हरीश गुप्ता का ब्लॉग

By हरीश गुप्ता | Updated: March 4, 2021 13:08 IST

गुलाम नबी आजाद का राज्यसभा सदस्य के तौर पर कार्यकाल पूरा होने पर उन्हें सम्मानित करने के लिए कुछ ‘जी-23’ नेताओं ने एक रैली को संबोधित किया था.

Open in App
ठळक मुद्देदिलचस्प बात यह है कि असंतुष्ट नेतागण भगवा भाजपा या राहुल गांधी के खिलाफ युद्ध नहीं छेड़ रहे थे.आजाद ने ही कांग्रेस पर पहला हमला किया, जिन्होंने गांधी परिवार के साथ चार दशकों तक काम किया थाग्रुप-23 के नेता पार्टी में पूर्णकालिक अध्यक्ष की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे थे.

जम्मू में असंतुष्टों के शक्ति प्रदर्शन में कई चीजें पहली बार हुईं, जिसमें सबसे प्रमुख था उनकी पगड़ी का रंग. चाहे वे गुलाम नबी आजाद हों, भूपिंदर सिंह हुड्डा, कपिल सिब्बल या आनंद शर्मा- सब ने केसरिया पगड़ी पहन रखी थी.

आजाद ने ही कांग्रेस पर पहला हमला किया, जिन्होंने गांधी परिवार के साथ चार दशकों तक काम किया था. लेकिन वे भगवा की ओर क्यों मुड़े? सतही जवाब तो यही आया - यह युद्ध का रंग है. दिलचस्प बात यह है कि असंतुष्ट नेतागण भगवा भाजपा या राहुल गांधी के खिलाफ युद्ध नहीं छेड़ रहे थे.

उन्होंने कांग्रेस पार्टी को दाएं, बाएं और मध्य से निशाना बनाया. इसके पहले ग्रुप-23 के नेता पार्टी में पूर्णकालिक अध्यक्ष की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे थे, चाहे वे राहुल गांधी ही बनें. यहां तक कि पिछले माह 10 जनपथ में सोनिया गांधी के साथ मुलाकात के दौरान भी वे पांच राज्यों के आगामी विधानसभा चुनाव तक इंतजार करने को तैयार थे.

लेकिन लगता है उन्होंने धैर्य खो दिया और जम्मू में रैली आयोजित करके पहला गोला दाग दिया. उनकी योजना देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसी रैलियां आयोजित करने की है. जिस चीज ने राजनीतिक पर्यवेक्षकों को आश्चर्यचकित किया वह यह कि आजाद ने प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा की और अन्य असंतुष्टों ने भाजपा की एक बार भी आलोचना नहीं की.

शायद जी-23 के नेता चाहते थे कि हाईकमान उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए उसी तरह पार्टी से निकाल दे जैसे शरद पवार और अन्य को 1999 में बाहर का रास्ता दिखाया गया था. लेकिन मोदी की तारीफ करते हुए असंतुष्ट नेता वैसी सहानुभूति हासिल नहीं कर पाए जैसी पवार 1999 में पा सके थे. विश्लेषकों का कहना है कि यह पूरी तरह से उलझन का संकेत है.

संघ परिवार की बेचैनी

ऐसे संकेत हैं कि संघ परिवार भी बेचैनी महसूस कर रहा है, हालांकि उसके कारण अलग हैं. कहने की जरूरत नहीं है कि  आरएसएस नेतृत्व कई कामों के लिए मोदी सरकार से बहुत ज्यादा खुश है जैसे धारा 370 हटाना, राम मंदिर का निर्माण, सीएए, ट्रिपल तलाक, महत्वपूर्ण पदों पर आरएसएस के कार्यकर्ताओं की नियुक्ति आदि. लेकिन वह सरदार पटेल स्टेडियम को नरेंद्र मोदी का नाम दिए जाने से नाखुश है.

आरएसएस हमेशा से ‘व्यक्ति पूजा’ का विरोधी रहा है. हालांकि आरएसएस में कोई भी इस पर टिप्पणी करने का इच्छुक नहीं है लेकिन व्यक्तिगत तौर पर उनको लगता है कि इससे अच्छा उदाहरण स्थापित नहीं हुआ है, खासकर तब जब मोदी आरएसएस के दर्शन और संस्कृति के सच्चे अनुयायी हैं.

मोदी ने सार्वजनिक जीवन में कई पहलकदमियां कीं और कई मायनों में अटल-आडवाणी युग से ऊपर उठे. लेकिन तथ्य यह है कि किसी भी स्मारक, संस्थान या परिसर का नाम किसी जीवित हस्ती के नाम पर नहीं रखा गया है.

भाजपा में इस विषय पर ट्वीट करने वाले एकमात्र नेता भाजपा के राज्यसभा सांसद डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी थे, जो आरएसएस के नजदीक समझे जाते हैं. हालांकि आरएसएस इस बात से संतुष्ट है कि शिक्षा और विदेश मामलों के मंत्रलयों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभागियों वाले वेबिनारों के आयोजन के लिए पूर्व अनुमति लिए जाने के बारे में जारी अधिसूचनाओं को वापस ले लिया गया है. संघ परिवार के रुख को देखते हुए दोनों मंत्रलयों ने इसे हिचकिचाते हुए वापस ले लिया. लेकिन वह सरकार द्वारा दिखाई गई ‘जल्दबाजी’ से आहत है.

अलग-अलग रास्ते

दो प्रमुख औद्योगिक घराने पिछले कुछ समय से राहुल गांधी के ‘हम दो हमारे दो’ नारे की बदौलत चर्चा में हैं. लेकिन दोनों बड़े औद्योगिक घरानों की राह अलग-अलग है. अदानी जबकि उनके रास्ते में जो भी आए, उसे खरीदने की होड़ में हैं, चाहे वह बिजली संयंत्र, बंदरगाह हो या हवाई अड्डे, सौर, पवन ऊर्जा संयंत्र आदि. लेकिन अंबानी किसी भी सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी या संपत्ति को नहीं खरीद रहे हैं.

वे दिन गए जब वाजपेयी के शासनकाल में अंबानी ने आईपीसीएल जैसे कुछ सरकारी उपक्रमों पर बड़ा दांव खेला था. लेकिन उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और उनकी अचल संपत्ति से खुद को दूर रखा है. इसके बजाय अंबानी एफडीआई ला रहे हैं और निजी कंपनियों को खरीद रहे हैं.

अस्थायी नियुक्तियां

यह शायद पहली बार है जब अधिकांश जांच एजेंसियां अस्थायी मालिकों के अधीन हैं. उदाहरण के लिए, सीबीआई का नेतृत्व एक अस्थायी प्रमुख प्रवीण सिन्हा कर रहे हैं. हालांकि सरकार के पास पूर्णकालिक निदेशक चुनने के लिए पर्याप्त समय था. फिर भी उसने एक गुजरात कैडर के अधिकारी को कुछ समय के लिए चुना. क्यों? कोई जवाब नहीं!!

प्रवर्तन निदेशक संजय मिश्र को पूर्वव्यापी प्रभाव के साथ अभूतपूर्व विस्तार दिया गया है. सरकार की एक और शीर्ष जांच शाखा महानिदेशक (जांच) आयकर पी.सी. मोदी के अधीन है, जिन पर दोहरा प्रभार है. उन्हें सीबीडीटी प्रमुख के रूप में तीसरा विस्तार दिया गया था.

नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, जो राकेश अस्थाना के कारण चर्चा में रहा है, उन्हीं राकेश अस्थाना के अधीन है जो बीएसएफ के डीजी हैं. इसके अलावा, केंद्र को भारत के सबसे बड़े अर्धसैनिक बल, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के नए प्रमुख की नियुक्ति भी करना है, जिसके डीजी रविवार को सेवानिवृत्त हो गए.

टॅग्स :कांग्रेसगुलाम नबी आजादसोनिया गाँधीराहुल गांधीनरेंद्र मोदीभारतीय जनता पार्टी
Open in App

संबंधित खबरें

भारतमहाराष्ट्र शीतकालीन सत्र: चाय पार्टी का बहिष्कार, सदनों में विपक्ष के नेताओं की नियुक्ति करने में विफल रही सरकार

भारतकांग्रेस के मनीष तिवारी चाहते हैं कि सांसदों को संसद में पार्टी लाइन से ऊपर उठकर वोट देने की आजादी मिले, पेश किया प्राइवेट मेंबर बिल

ज़रा हटकेपाकिस्तानी महिला ने पीएम मोदी से लगाई मदद की गुहार, पति के दिल्ली में दूसरी शादी करने का किया दावा

भारतगोवा के नाइट क्लब में भीषण आग, 25 लोगों की गई जान; जानें कैसे हुआ हादसा

भारतGoa Fire: गोवा नाइट क्लब आग मामले में पीएम ने सीएम सावंत से की बात, हालातों का लिया जायजा

राजनीति अधिक खबरें

राजनीतिDUSU Election 2025: आर्यन मान को हरियाणा-दिल्ली की खाप पंचायतों ने दिया समर्थन

राजनीतिबिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी से मिलीं पाखी हेगड़े, भाजपा में शामिल होने की अटकलें

राजनीतिBihar voter revision: वोटरों की सही स्थिति का पता चलेगा, SIR को लेकर रूपेश पाण्डेय ने कहा

राजनीतिबिहार विधानसभा चुनावः बगहा सीट पर बीजेपी की हैट्रिक लगाएंगे रुपेश पाण्डेय?

राजनीतिगोवा विधानसभा बजट सत्रः 304 करोड़ की 'बिना टेंडर' परियोजनाओं पर बवाल, विपक्ष का हंगामा